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जिसका खाता, बस उसी को लाभ - मोहन गुरुस्‍वामी

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन नई सामाजिक सुरक्षा योजनाएं लॉन्च की हैं। इनमें दुर्घटना बीमा, जीवन बीमा और पेंशन योजनाएं शामिल हैं, जिनके मार्फत समाज के ऐसे वंचित-असंगठित तबके को लाभान्वित करने का लक्ष्य है, जिन तक अभी तक ऐसी योजनाओं के लाभ नहीं पहुंच पाए थे। लेकिन इसमें एक पेंच है। योजनाओं का लाभ वे ही लोग उठा सकेंगे, जिनका अपना एक बैंक खाता हो। हकीकत यह है कि 1.2 अरब से भी अधिक लोगों के इस देश में केवल 15 करोड़ लोगों के पास बैंक खाते हैं और इनमें भी एक तिहाई खातों में कोई क्रेडिट बैलेंस ही नहीं है!

इस तरह की योजनाओं के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि 'विकास की यात्रा तब तक अधूरी ही रहेगी, जब तक कि उसके लाभ गरीबों तक नहीं पहुंचते। बैंकों का राष्ट्रीयकरण गरीबों को ध्यान में रखकर किया गया था, लेकिन क्या हमें बैंकों में गरीब लोग नजर आते हैं? आज देश के 80 से 90 प्रतिशत लोगों तक बीमा और पेंशन के लाभ नहीं पहुंच पाते हैं।" लेकिन अगर देश के 80 से 90 प्रतिशत लोगों के पास बैंक खाते ही नहीं हैं तो फिर सवाल उठता है कि इन योजनाओं के लाभ भी उन तक कैसे पहुंचेंगे?

दुर्घटना बीमा (प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना) दुर्घटना में मृत्यु या विकलांगता की स्थिति में 12 रुपए प्रतिवर्ष के प्रीमियम पर दो लाख रुपए का रिन्युएबल कवर देगी। जीवन बीमा योजना (प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना) 330 रुपए सालाना के प्रीमियम पर दो लाख रुपए का रिन्युएबल कवर देगी। वहीं अटल पेंशन योजना असंगठित क्षेत्र पर अपना ध्यान केंद्रित करेगी और 60 या उससे अधिक उम्र के अपने हितग्राहियों को एक से पांच हजार रुपए प्रतिमाह तक की पेंशन देगी। यह इस पर निर्भर करेगा कि 18 से 40 वर्ष की उम्र के बीच में आप इस योजना में सहभागिता करने के लिए किस विकल्प का चयन करते हैं। योजना में सहभागिता करने की अवधि 20 वर्ष या उससे अधिक की होगी। इसका मतलब तो यही है कि इसमें आपको अंतत: वही पैसा मिलेगा, जिसका आपने निवेश किया है।

सोचने वाली बात यह भी है कि इन सभी योजनाओं को कोई सरकारी इनपुट नहीं प्रदान किया गया है और न ही इनके लिए कोई बजटीय प्रावधान किया गया था। वित्त मंत्री के बजट भाषण में इन तीनों योजनाओं के बारे में एक शब्द भी नहीं था। इसलिए यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि ये योजनाएं न केवल उन लोगों के लिए हैं, जिनके अपने बैंक खाते हैं, बल्कि उनमें भी वे केवल उन्हीं के लिए हैं, जिनके बैंक खातों में पैसा है। वैसे ये तीनों योजनाएं अपने आपमें बुरी नहीं हैं और उनका स्वागत किया जाना चाहिए, बात केवल इतनी ही है कि जब उनके लिए सरकार की तरफ से कोई बजटीय इनपुट नहीं दिया जा रहा है और उसमें हम अंतत: अपनी ही धनराशि से स्वयं लाभान्वित होंगे तो फिर सरकार उसका श्रेय क्यों ले रही है? तीन में से दो योजनाएं प्रधानमंत्री के नाम से हैं और एक योजना भाजपा के पितृपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर है। अगर सरकार ने इन योजनाओं के लिए अपनी तरफ से वित्तीय प्रावधान किया होता तब तो ऐसा करना समझ में आ सकता था, लेकिन ऐसा है नहीं। गत यूपीए सरकार के साथ भी यही दिक्कत थी। योजनाओं का नामकरण गांधी परिवार के सदस्यों के नाम पर करने का उसका शगल था। यूपीए सरकार ने पं. नेहरू, इंदिरा, राजीव गांधी के अलावा मोतीलाल नेहरू, कमला नेहरू और यहां तक कि संजय गांधी के नाम से भी योजनाएं लॉन्च की थीं। हां, अपने महत्वाकांक्षी कार्यक्रम मनरेगा का नामकरण जरूर उसने महात्मा गांधी के नाम पर किया था।

अटलजी के नेतृत्व में बनी पूर्व राजग सरकार ने भी बुजुर्ग नागरिकों के लिए वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना प्रस्तुत की थी। इस योजना से सालाना 3.16 लाख लोग लाभान्वित हो रहे हैं और इस पर 6095 करोड़ रुपए का व्यय हो रहा है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में प्रस्ताव रखा था कि 15 अगस्त 2014 से 14 अगस्त 2015 की अवधि में इस योजना का पुनरीक्षण किया जाए और इसके लिए उपयुक्त प्रावधान भी किया गया था।

अब इन तीनों योजनाओं को बारी-बारी से देखते हैं। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना में दुर्घटना में मृत्यु होने या विकलांगता की स्थिति निर्मित होने पर 2 लाख रुपए का कवर प्रदान किया गया है। चूंकि प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत प्रारंभ हुए 15 करोड़ बैंक खातों में से एक तिहाई में जीरो बैलेंस है, इसलिए माना जाना चाहिए कि सुरक्षा बीमा योजना केवल उन 10 करोड़ भारतीयों के लिए है, जिनके पास बैंक खाते हैं, शेष 110 करोड़ लोगों के लिए नहीं। अगर सरकार सभी देशवासियों को सुरक्षा बीमा कवर मुहैया कराती, तब भी उसे महज 1440 करोड़ रुपयों का सालाना व्यय करना पड़ता। दुनिया के तीसरे सबसे बड़े पीपीपी जीडीपी वाले देश के लिए यह कोई बड़ी रकम नहीं है। लेकिन 1440 करोड़ रुपए तो छोड़िए, सरकार अपनी जेब से इस योजना के लिए एक पैसा भी नहीं दे रही है, इसके बावजूद वह इसका श्रेय ले रही है।

शेष दो योजनाओं को भी नई बोतल में पुरानी शराब की संज्ञा दी जा सकती है। इस तरह की योजनाएं देश में पहले से मौजूद हैं। इस बात को देखते हुए कि देशवासियों की औसत आयु 65.5 वर्ष ही है, यह माना जा सकता है कि योजना में सहभागिता करने वाले व्यक्ति को अपनी लगभग समूची कार्यावधि यानी 30 से 40 वर्ष तक सरकार को भुगतान करने के बाद औसतन मात्र 5.5 वर्ष ही इसका लाभ प्राप्त होगा। याद रखें कि बीमा कोई परोपकार नहीं है, वह मूलत: मुनाफा कमाने का एक और तरीका है। याद रखा जाना चाहिए कि अगर धनराशि पर ब्याज को भी जोड़ा जाए तो बीमित व्यक्ति को उसकी योजना के समापन पर जो राशि मिलेगी, वह उससे कम ही होगी, जितना कि वह पहले ही चुका चुका होगा।

वास्तव में इस तरह की बीमा योजनाएं सरकार के लिए इसलिए फायदेमंद साबित होती हैं क्योंकि वे दीर्घकालिक होती हैं और उनसे सरकार को अपनी बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए काफी उपयोगी मदद मिल जाती है। यही कारण है कि जहां पॉलिसी लेने वाला यह सोचकर चैन की नींद सोता है कि उसकी मृत्यु हो जाने की स्थिति में उसके परिवार को महत्वपूर्ण आर्थिक मदद मिल सकेगी, वहीं सरकार तात्कालिक रूप से उसके पैसों से लाभ उठा रही होगी। जाहिर है, जितनी बड़ी संख्या में लोग इन योजनाओं से जुड़ेंगे, उतना ही सरकार को फायदा होगा। साथ ही इन योजनाओं का फायदा उठाने के लिए बड़ी संख्या में लोग अपने बैंक खाते खुलवाने को प्रेरित होंगे, जो कि प्रधानमंत्री जन-धन योजना की सफलता के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण साबित होगा।

(लेखक आर्थिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)