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जी-20 की राह--- रोहित कौशिक

जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में जी-20 का बारहवां शिखर सम्मेलन पिछले हफ्ते, कई तरह के द्वंद्वों का सामना करते हुए, संपन्न हो गया। एक द्वंद्व अमेरिका तथा बाकी सदस्य-देशों के बीच पेरिस जलवायु समझौते को लेकर था। एक दूसरा द्वंद्व रूस और अमेरिका के बीच था, अमेरिका की इस शिकायत की बिना पर, कि रूस ने राष्ट्रपति चुनाव के समय उसकी घरेलू राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश क्यों की। एक द्वंद्व अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच ट्रंप के संरक्षणवाद को लेकर भी था। एक द्वंद्व डोकलाम को लेकर भारत और चीन के बीच था। फिर, एक द्वंद्व सम्मेलन और सम्मेलन स्थल के बाहर लगातार हो रहे विरोध-प्रदर्शनों के बीच था। इतने द्वंद्वों से जी-20 की मुठभेड़ शायद पहले कभी नहीं हुई। इसमें कोई हैरत की बात नहीं है। शुरू में जी-20 का एजेंडा एकसूत्री था, पर अब उसमें कई नई मुद््दे शामिल हो गए हैं। इसलिए मतभेदों के उभरने की अधिक गुंजाइश रहती है, और न्यूनतम सहमति बनाने की कवायद में पहले से ज्यादा वक्त जाया होता है। कुछ लोग मानते हैं कि इस समूह की नींव पिछली सदी के आखिरी दशक में दक्षिण-पूर्व एशिया में आए वित्तीय संकट से पार पाने की कोशिशों के दौरान ही पड़ गई थी। पर जी-20 के मौजूदा स्वरूप ने आकार लिया था 2008 में। महामंदी से चिंतित अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इसकी पहल की थी। इसे जी-7 के विस्तार के तौर पर भी देखा गया।


दरअसल, उस वक्त यह महसूस किया गया कि विश्वव्यापी मंदी से पार पाने के लिए सिर्फ जी-7 की एकजुटता पर्याप्त नहीं है, भारत और चीन जैसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले अन्य देशों को भी जोड़ा जाना चाहिए। बहरहाल, जी-20 की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व के कुल जीडीपी का अस्सी से पचासी फीसद इसके अंतर्गत आता है और दुनिया की दो तिहाई आबादी का यह प्रतिनधित्व करता है। दरअसल, उन्नीस देश ही इसके सदस्य हैं, बीसवां सदस्य यूरोपीय संघ है। मुक्त व्यापार और वैश्विक आर्थिक वृद्धि की चिंता जी-20 पर हमेशा छाई रही है। पर अब आतंकवाद तथा जलवायु संकट से निपटने के उपाय आदि भी इसके एजेंडे का हिस्सा बन चुके हैं। मेजबान देश जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल की कोशिशों के चलते प्रवासियों तथा शरणार्थियों की मदद और संयुक्त राष्ट्र के सुझाए टिकाऊ विकास लक्ष्यों का मुद््दा भी एजेंडे में शामिल था।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने वक्तव्य में आतंकवाद से निपटने के मौजूदा वैश्विक प्रयासों को नाकाफी बताया, और लश्कर-ए-तैयबा तथा जैश-ए-मोहम्मद को अलकायदा व आइएस के समान बताया। यह पाकिस्तान का नाम लिये बगैर उसे कठघरे में खड़ा करना था। जी-20 के साझा बयान में आतंकवाद के वित्तीय स्रोतों को बंद करने तथा इंटरनेट पर आतंकवादी प्रचार सामग्री रोकने का आह्वान किया गया है। इससे भारत के रुख की पुष्टि हुई है। डोकलाम विवाद के चलते यह एक भारी उत्सुकता का विषय था कि मोदी की सीधी मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से होगी या नहीं। पर दोनों नेता सम्मेलन के दौरान अलग से न सिर्फ मिले, मुस्कराए, एक दूसरे की तारीफ की, बल्कि ब्रिक्स की अनौपचारिक बैठक में भी शामिल हुए। सितंबर में ब्रिक्स की शिखर बैठक चीन में होगी, जहां एक बार फिर मोदी और चिनफिंग मिलेंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि डोकलाम विवाद शांतिपूर्ण ढंग से सुलझ चुका होगा, और ब्रिक्स बैठक तनाव-मुक्त माहौल में संपन्न होगी।