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जीएसटी पर बंदरबांट --- डा. भरत झुनझुनवाला

गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को लागू करने में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में ठनी हुई है. विवाद है कि जीएसटी की वसूली केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा की जायेगी अथवा राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा. विवाद बना हुआ है कि जीएसटी की वसूली कौन करेगा, चूंकि दोनों को घूस वसूलने के अवसर चाहिए. टैक्स वसूलने का कार्य पूरी तरह से केंद्र सरकार को दे दिया जाये, तो राज्य सरकारों को बचत होगी. आयकर अधिकारियों को दूसरे कार्यों में लगाया जा सकेगा. परंतु, राज्य सरकार के अधिकारियों और मंत्रियों को घूस वसूल करने के अवसर समाप्त हो जायेंगे. यही बात केंद्र सरकार पर भी लागू होती है. दोनों घूस को नहीं छोड़ना चाहते हैं, इसलिए जीएसटी पर अवरोध बना हुआ है.

इस मुद्दे पर अड़ कर राज्य सरकारें अपने मूल हितों की अनदेखी कर रही हैं. प्रस्तावित जीएसटी व्यवस्था केंद्र सरकार के अधीन है. राज्य सरकारों को मूक दर्शक बना दिया गया है. व्यवस्था है कि जीएसटी काउंसिल में किसी प्रस्ताव को पारित करने के लिए 75 प्रतिशत मत जरूरी होंगे. साथ ही यह कहा गया कि 33 प्रतिशत मत केंद्र सरकार के पास होंगे.

अतः सब राज्य एक जुट हों, तब भी किसी प्रस्ताव को पारित नहीं करा सकते हैं, चूंकि उनके पास कुल 67 प्रतिशत वोट होंगे, जो कि जरूरी 75 प्रतिशत से कम होंगे.


वर्तमान प्रस्ताव में राज्य सरकार को एक वोट दिया गया है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को एक-एक वोट दिये गये हैं, जबकि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या लगभग 20 गुना है. इससे केंद्र सरकार के लिए मनचाहे नियमों को राज्यों की इच्छा के विपरीत लागू करना आसान हो जायेगा. मान लीजिये, केंद्र सरकार चाहती है कि साइकिल तथा मर्सीडीज कार पर बराबर 18 प्रतिशत से जीएसटी वसूला जाये. वहीं राज्य सरकारें चाहती हैं कि साइकिल पर पांच प्रतिशत तथा मर्सीडीज पर 40 प्रतिशत से जीएसटी वसूला जाये. केंद्र को अपना प्रस्ताव पारित करने के लिए 25 प्रतिशत वोट देना चाहिए. 33 प्रतिशत केंद्र के पास अपने स्वयं के वोट हैं.

यदि 42 प्रतिशत और वोट के पक्ष में आ जायें, तो प्रस्ताव पारित हो जायेगा. 30 राज्यों में यदि 19 छोटे राज्य केंद्र के पक्ष में खड़े हो जायें, तो इनके पास 42 प्रतिशत वोट होंगे और वह प्रस्ताव पारित हो जायेगा. लेकिन, देश के 19 छोटे राज्यों के पास देश की केवल 23 प्रतिशत आबादी है, जबकि 11 बड़े राज्यों के पास 77 प्रतिशत. अतः 23 प्रतिशत आबादी वाले 19 छोटे राज्य केंद्र के साथ खड़े हो जायें, तो 11 बड़े राज्यों की 77 प्रतिशत आबादी के विपरीत प्रस्ताव पारित किया जायेगा. इस बात को तमिलनाडु ने कई बार उठाया है. पर, केंद्र सरकार एक राज्य एक वोट के अन्यायपूर्ण फाॅर्मूले को लागू करने पर अड़ी हुई है.

केंद्र और राज्य सरकार के बीच गतिरोध के दो आयाम हैं. एक आयाम घूस वसूलने का है. दूसरा आयाम जीएसटी काउंसिल में केंद्र के वीटो का है. दुर्भाग्य है कि राज्य सरकारें घूस वसूलने के अधिकार को लेकर अड़ी हुई हैं और केंद्र सरकार के वीटो के अन्याय को स्वीकार रही हैं. राज्य सरकारों को चाहिए कि घूस वसूल करने का अधिकार केंद्र को दे दें. अपने टैक्स अधिकारियों को केंद्र के अधिकारियों द्वारा वसूल की गयी घूस की धर-पकड़ करने पर लगायें. इसी प्रकार केंद्र तथा राज्य सरकार के बीच की लड़ाई से जनता को कुछ राहत मिल सकती है. राज्य सरकारों को केंद्र सरकार के वीटो का विरोध करना चाहिए.

जीएसटी लागू करने को केंद्र तथा राज्यों के बीच सहमति बन चुकी है. जीएसटी में राज्यों को हुई राजस्व की हानि की भरपाई केंद्र सरकार द्वारा पांच साल तक की जायेगी. मान लीजिये, किसी राज्य की जीएसटी से आय आधी रह जाती है. पांच साल तक केंद्र इस कमी की पूर्ति कर देगा. लेकिन पांच साल के बाद क्या होगा? उस राज्य की जीएसटी की दरों को बढ़ाया नहीं जा सकेगा, चूंकि इनका निर्धारण जीएसटी काउंसिल द्वारा किया जा रहा होगा.

अत: ऐसे राज्य के पास एकमात्र विकल्प अपने खर्चों में कटौती करना होगा.

जीएसटी व्यवस्था की दूसरी कमी राज्यों द्वारा प्रयोग पर ब्रेक लगाने की है. मान लीजिये, जीएसटी काउंसिल ने निर्णय लिया कि साइकिल तथा मर्सिडीज कार पर 18 प्रतिशत की एक दर से ही जीएसटी वसूल किया जायेगा. लेकिन, किसी राज्य के मुख्यमंत्री यह चाहते हैं कि साइकिल पर पांच प्रतिशत तथा मर्सीडीज कार पर 40 प्रतिशत से जीएसटी वसूल किया जाये. तब वे ऐसा नहीं कर सकेंगे.

 

जीएसटी का लाभ है कि पूरे देश में व्यापार सरल हो जायेगा. सब राज्यों द्वारा सभी माल का एक सामान्य श्रेणी में वर्गीकरण किया जायेगा और एक ही दर से जीएसटी वसूल की जायेगी.


इन दो लाभ में सामान्य वर्गीकरण का लाभ ज्यादा है. हर राज्य द्वारा अलग-अलग वर्गीकरण करने से बॉर्डर पर तमाम विवाद उत्पन्न हो जाते हैं. विकल्प है कि जीएसटी के अंर्तगत पूरे देश में सामान्य वर्गीकरण मात्र को लागू किया जाये, जबकि हर राज्य को अलग दर से जीएसटी आरोपित करने का अधिकार दिया जाये. इससे राज्यों की स्वायत्ता बनी रहेगी और अंतरराज्यीय व्यापार भी सरल हो जायेगा.