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जीडीपी का तड़का और 20 करोड़ लोगों की भुखमरी- आशुतोष ओझा

नई दिल्‍ली। मोदी सरकार पर कॉरपोरेट की पैरोकार होने के आरोप लगते हैं। ये आरोप सही हैं या गलत, इस पर बहस हो सकती है। लेकिन,सरकार के एक साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित पूरी कैबिनेट जिस तरह उपलब्धियों का बखान और मीडिया के जरिए ढिंढोरा पीट रही है, वह संस्‍कृति निश्चित रूप से कॉरपोरेट जैसी ही लगती है। सरकार की बीते एक साल की उपलब्धियों के शोर में पिछले वित्‍त वर्ष के जीडीपी के आंकड़ों ने जोरदार ‘बिकाऊ तड़का' दिया है। इस अच्‍छे दिनों के जश्न में यदि संयुक्‍त राष्‍ट्र य‍ह रिपोर्ट जारी करता है कि भारत में करीब 20 करोड़ अभी भी भुखमरी की समस्‍या से जूझ रहे हैं तो सरकार के गरीबी कम करने की योजनाओं पर सवाल उठाना लाजमी है। सवाल इस बात को लेकर भी है कि सामाजिक सुरक्षा और देश के आखिरी व्‍यक्ति को वित्‍तीय रूप से मजबूत करने का दावा करने वाली सरकार में 2200 से अधिक लोग लू से मर गए। लेकिन इसकी चर्चा नहीं होती। प्रधानमंत्री ‘मन की बात' के जरिए भीषण गर्मी में लोगों को अपना ख्‍याल रखने की नसीहत जरूर देते हैं। हालांकि, इन मौतों को सरकार की नाकामी या अनदेखी नहीं कह सकते हैं। हां, हम संवेदनशीलता और प्रचार तंत्र का सदुपयोग नहीं करने का आरोप जरूर लगा सकते हैं। वित्‍त मंत्री अरुण जेटली जीडीपी के आंकड़ों से उत्‍साहित हैं और उसे अर्थव्‍यवस्‍था में तेज रिकवरी बता रहे हैं। बता दें, 2014-15 में देश की जीडीपी 7.3 फीसदी दर्ज की गई है।
 
नहीं बदले कृषि सेक्‍टर के हालात
 
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की ताजा रिपोर्ट में अहम खुलासा हुआ कि भारत में 19.4 करोड़ लोगों को अभी भी पेटभर खाना नसीब नहीं होता है और यह लोग भुखमरी की समस्‍या से जूझ रहे हैं। भुखमरी की विकराल स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। वित्‍त वर्ष 2014-15 के कृषि सेक्‍टर के जीडीपी के आंकड़े इसकी हकीकत को बखूबी बता रहे हैं। इस अवधि में कृषि सेक्‍टर की ग्रोथ रेट महज 0.2 फीसदी रही, जो 1.1 फीसदी के अग्रि‍म अनुमान से भी कम है। वहीं, यह कहा जा रहा है कि जनवरी-मार्च तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 7.5 फीसदी रहने से सरकार के साथ-साथ कॉरपोरेट दुनिया में भी अच्‍छा मैसेज गया है। बहरहाल, यह तय है कि भुखमरी पर काबू पाने का विकल्‍प उपज या खाद्यान्‍य भंडारण बढ़ाना ही नहीं है।
 
क्‍या है भंडारण की स्थिति
 
देश में यदि पर्याप्‍त अनाज भंडारण है तो करोड़ों लोगों के लिए भुखमरी की स्थिति मोदी सरकार केएक साल की सफलता को ढोल की पोल खोल रहा है। एफसीआई के आंकड़ों के मुताबिक 1 मई 2015 तक केंद्रीय पूल में 511.72 लाख टन अनाज का भंडार था। इसमें गेहूं 341.27 लाख टन और चावल 170.45 लाख टन था। एफसीआई के गोदामों में 257.41 लाख टन अनाज है। इसमें चावल 135.40 लाख टन और गेहूं 122.01 लाख टन है। वहीं, राज्‍य एजेंसियों के स्‍टॉक में 254.31 लाख टन अनाज है। इसमें गेहूं 219.26 लाख टन और चावल 35.05 लाख टन है। सरकारी गोदामों में इतनी मात्रा में अनाज भंडारण होने के बावजूद भुखमरी की इतनी विकराल तस्‍वीर चौंकाती है। दरअसल समस्‍या यह है कि सरकार गोदामों में पड़े भंडार का वितरण किस तरह किया जाए कि भुखमरी की समस्‍या न रहे, इसका कोई उचित मैकेनिज्‍म नहीं खड़ा हो पाया है। नतीजतन हजारों टन अनाज सड़कर बर्बाद हो जाता है और लाखों लोग भूख से मर जाते हैं।
 
सरकार और उद्योगों की खुशी की हकीकत
 
नई सीरीज के आधार पर आए वित्‍त वर्ष 2014-15 में मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर की ग्रोथ से वित्‍त मंत्री अरुण जेटली खुश हैं और इसे अर्थव्‍यवस्‍था में रिकवरी के तौर पर देख रहे हैं। 2014-15 में मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर की ग्रोथ रेट 7.1 फीसदी रही जबकि‍ 2013-14 में यह आंकड़ा 5.3 फीसदी था। दरअसल, मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर की ग्रोथ की एक हकीकत सरकार की तरफ से जारी जीडीपी की नई सीरीज भी है। नई सीरीज में मैन्‍युफैक्‍चरिंग का दायरा बढ़ाया गया है। अर्थशास्त्रियों की राय भी इस मसले पर अलग-अलग है। कुछ अर्थशास्‍त्री मैन्‍युफैक्‍चरिंग की ग्रोथ को अच्‍छी रिकवरी के तौर देख रहे हैं, वहीं कुछ की नजर में स्थिति अभी भी निराशाजनक है। एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष ने जीडीपी के नए आंकड़ों को निराशाजनक बताया। उनका मानना है कि चौथी तिमाही के आंकड़े उम्मीद से खराब रहे हैं। कुल मिलाकर आंकड़ों को तिमाही आधार पर देखें तो हकीकत पता चलती है। इनमें लगातार कमजोरी नजर आ रही है।
 
देश में अबतक की दूसरी जानलेवा गर्म हवाएं
 
सरकार को इस बात से खास मतलब नहीं कि भारत में लू का प्रकोप जारी है। क्‍योंकि लू प्राकृतिक ‘आपदा’ है और इस पर सरकार का वश नहीं है। लू से मरने वालों का आंकड़ा 2200 से पार हो गया है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में हालात बद से बद्तर हैं। एक विदेशी अध्ययन के मुताबिक, जानलेवा गरम हवाओं के मामले में यह अब तक दुनिया की पांचवीं सबसे खतरनाक गर्म हवाएं हैं, वहीं भारत में यह अब तक की दूसरी सबसे घातक जानलेवा गरम हवाएं हैं। देश के मौसम वैज्ञानियों का कहना है कि अगले कुछ दिनों में भी लू का कहर जारी रहेगा। आम शहरी यह सवाल पूछ सकता है कि सूचना प्रौद्योगिकी के डिजिटाइजेशन का दंभ भरने वाली मोदी सरकार जागरूकता और मौसम की सही और सटीक जानकारियां देने में कितनी सफल रही है।