Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/जीत-गईं-जातियां-हार-गईं-जातियां-जिल-वर्निस-13068.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | जीत गईं जातियां, हार गईं जातियां- जिल वर्निस | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

जीत गईं जातियां, हार गईं जातियां- जिल वर्निस

मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे प्रमुख हिंदी भाषी प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर कांग्रेस की जीत 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से भारत में हुआ सबसे बड़ा राजनीतिक उलटफेर है। मगर नवनिर्वाचित विधायकों का जातिगत विश्लेषण यह बताता है कि इन दोनों सूबों में सत्ता का बंटवारा जिन-जिन सामाजिक समूहों में है, उनके सियासी रुतबे में इस राजनीतिक बदलाव के बावजूद कोई बड़ा फेरबदल नहीं हुआ है। यहां ऐसे विधानसभा क्षेत्रों की संख्या चौथाई से भी कम है, जहां पिछली बार यानी 2013 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले किसी दूसरी जाति के विधायक चुने गए हों।


इन दोनों राज्यों के विधानसभा सदस्यों का सामाजिक वर्गीकरण कई अन्य सच्चाइयों को भी सामने लाता है। पहली यह कि विधानसभा में ऊंची और निचली जातियों के विधायकों की संख्या में अब भी संतुलन नहीं बन पाया है। भले ही, मध्य प्रदेश और राजस्थान, दोनों राज्यों की विधानसभाओं में ऊंची जाति के विधायक पहले की अपेक्षा कम हुए हैं, लेकिन इस बार भी ज्यादातर विधायक ऊंची जातियों के ही चुने गए हैं। राजस्थान और मध्य प्रदेश की विधानसभाओं में क्रमश: 27 फीसदी और 37 फीसदी नव-निर्वाचित विधायक ऊंची जातियों से हैं। इन ऊंची जातियों में भी राजपूतों ने दोनों ही राज्यों में अपना दबदबा बढ़ाया है। आंकड़ों की मानें, तो दोनों सूबों में कुल ऊंची जातियों के विधायकों में 40 फीसदी या इससे अधिक राजपूत जाति के हैं। राजपूतों का यह भाग्योदय ब्राह्मणों की कीमत पर हुआ है, जिन्होंने ऊपरी जाति-समूहों के बीच अपना ऐतिहासिक प्रभुत्व अब खो दिया है।


दूसरा निष्कर्ष जो इन चुनाव के नतीजों से निकलकर सामने आ रहा है, वह है प्रभावशाली जाति-समूहों के प्रति दोनों पार्टियों की पक्षधरता। दरअसल, ऊंची जातियां ही एकमात्र समूह नहीं हैं, जिनका प्रतिनिधित्व इन दोनों राज्यों में ज्यादा होता है। इसके बरअक्स चंद मध्यवर्ती जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) की भी अच्छी-खासी उपस्थिति विधानसभाओं में दिखती रही है, जो अपने-अपने इलाकों में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दबदबा रखते हैं। भाजपा और कांग्रेस, दोनों दल इन जातियों के उम्मीदवारों पर भरोसा करते हैं। दोनों पार्टियों से चुने गए प्रमुख जाति-समूहों के विधायकों का जातिवार विश्लेषण इसकी तस्दीक भी करता है। मसलन, राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के कुल विधायकों में से आधे ब्राह्मण, राजपूत, बनिया, जाट और मीणा जाति से आए हैं। मीणा जाति का इस तरह रसूख हासिल करना दिलचस्पी बढ़ाता है, क्योंकि यह यहां अनुसूचित जनजाति में शामिल है। हालांकि मध्य प्रदेश में प्रमुख समूहों का दबदबा राजस्थान से थोड़ा कम है, मगर इतना भी कम नहीं है कि उसे हल्के में लिया जाए। यहां भी कांग्रेस और भाजपा विधायकों की कम से कम 40 फीसदी संख्या ब्राह्मण, राजपूत, बनिया, कुर्मी, गुर्जर और यादवों की है।


इस जातिगत विश्लेषण की तीसरी बात यह है कि राजस्थान के उलट, मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) में ऐसी कोई अकेली जाति नहीं है, जो सत्ता पर अपनी पकड़ रखती हो। राजस्थान की बात करें, तो वहां ओबीसी और मध्यवर्ती जाति समूहों में जाटों का भारी दबदबा है। इन दोनों जाति-समूहों के 46-70 फीसदी नए विधायक जाट जाति के हैं। हालांकि मध्य प्रदेश में जाट कोई जाति नहीं है, पर वहां ओबीसी या मध्यवर्ती जाति समूहों में से ऐसी कोई जाति दिख भी नहीं रही है, जिसके इन दोनों जाति-समूहों में 30 फीसदी विधायक हों। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में जिस तरह से ओबीसी के हक-हुकूक की वकालत करती मजबूत पार्टियां दिखती हैं, वैसी मध्य प्रदेश में नहीं दिख रहीं। मध्य प्रदेश वास्तव में उत्तराखंड जैसा दिखता है, जहां की राजनीति में ऊंची जातियों का दबदबा है।

इन प्रदेशों में सत्ता परिवर्तन के बाद भी जातिगत प्रतिनिधित्व में कोई बदलाव न आना यह जाहिर करता है कि इन दोनों राज्यों की राजनीति में जातियों का कितना महत्व है? इससे यह भी पता चलता है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में दोनों बड़ी पार्टियां समाजशास्त्रीय रूप से अलग नहीं हैं। वे करीब-करीब एक सी हैं। भले ही दोनों पार्टियां ‘समावेश' यानी सबको साथ लेकर चलने की राग अलापती हों और छोटे-छोटे समुदायों के हितों की वकालत करने वाली भंगिमा अपनाती रही हों, मगर असलियत में दोनों पार्टियां अपने उम्मीदवारों का चयन अब भी स्थानीय प्रभुत्व वर्गों से ही करती हैं।

इसी कारण स्थानीय राजनीति में परंपरागत रूप से प्रमुख जातियों का कब्जा तो है ही, स्थानीय क्षत्रपों की दखलंदाजी के कारण राज्य-स्तरीय सियासत में भी ऐसा ही दिखने लगा है। दोनों राज्यों में किसी तरह की ‘वंचितों की क्रांति' यानी सर्वहारा का उत्थान नहीं हुआ है, जैसा उत्तर प्रदेश या बिहार जैसे हिंदी पट्टी के अन्य राज्यों में होता हुआ दिखता है। यह इन दोनों राज्यों में दो-ध्रुवीय जातिगत-व्यवस्था भी बनाए रखता है, और इसने उस तीसरी पार्टी के उदय की संभावना को भी खत्म कर दिया है, जिसका समर्थन प्रमुख दलों के अंतर्गत प्रतिनिधित्व पाने वाले ये जाति-समूह कर सकते थे।


जाहिर है, इन दोनों राज्यों के जाति समीकरणों का बड़ा असर संरक्षण की समझ, दबदबे के पैटर्न में लचीलापन लाने की सोच और नागरिकों को सार्वजनिक सेवाएं मुहैया कराने की राज्य की क्षमता पर पड़ा है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)