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जीने के लिए जूझते महात्मा फुले के परिजन

पुणे. देश में छात्राओं के लिए पहला स्कूल शुरू करने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले को सरकार और समाज के साथ जो संघर्ष उस समय करना पड़ा कमोवेश वैसा ही संघर्ष आज उनके परिजनों को करना पड़ रहा है।

अंतर सिर्फ इतना कि तब उन्होंने समाज को नई राह दिखाने के लिए किया था और उनके परिजन बेहतर जिंदगी के लिए कर रहे हैं। महात्मा फुले के पड़ पोते दत्तात्रेय होले की बहू नीता रमाकांत होले ने अपने परिवार की दुख भरी दास्तान दैनिक भास्कर को बयां की।

नीता होले बताती हैं-ससुर दत्तात्रेय होले को महात्मा फुले का पड़पोता होने के बावजूद न तो समाज से उचित सम्मान मिला और न ही सरकार ने उन पर ध्यान दिया।

जिस सरकार ने महात्मा फुले की बहू चंद्रभागाबाई व उनकी पुत्री लक्ष्मीबाई की सुध तक नहीं ली, उस सरकार से महात्मा फुले के पड़पोते को सम्मान मिलने की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है।

दत्तात्रेय होले को अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए खुद का घर तथा दुकानें भी बेचनी पड़ी थीं।

उन्होंने किलरेस्कर के बंगले में वाचमैन की नौकरी भी की थी। खुद का घर बेचने के बाद किराये के घर में रहना पड़ा, किंतु किराया देना भी मुश्किल हो रहा था। इसलिए दत्तवाड़ी क्षेत्र में खुद का एक कमरा उन्होंने लिया।

उसके पश्चात उन्होंने अपने तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों का विवाह किया। दत्तात्रेय होले के तीन पुत्रों में से दो के परिवार की आर्थिक स्थिति काफी नाजुकहै। दत्तात्रेय के बड़े पुत्र अशोक और उनकी पत्नी का तो देहांत हो गया है। उनका पुत्र रिक्शा चलाता है।

दत्तात्रेय के दूसरे पुत्र विनायक पेंटिंग का काम किया करते थे, किंतु कुछ साल पहले काम करते समय तीसरी मंजिल से गिरने से वह अब ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं। उनकी पत्नी ने काफी समय तक लोगों के घरों में काम किया।

विनायक का पुत्र किसी निजी कंपनी में काम कर रहा है। तीसरे पुत्र व नीता के पति रमाकांत के परिवार को भी लंबे समय तक आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा था। रमाकांत एसटी महामंडल में बतौर क्लर्क कार्यरत हैं।

उन्हें तीन पुत्रियां हैं जिनमें से दो उच्च शिक्षित हैं और तीसरी की पढ़ाई जारी है। फिलहाल वे आनंदनगर क्षेत्र में रह रहे हैं।

स्मारक नहीं, सभागृह बने

नीता का कहना है कि महात्मा फुले जहां रहते थे, उस गंजपेठ स्थित वाड़े को सरकार ने राष्ट्रीय स्मारक बनाया है। उन्होंने जिस भिड़ेवाड़े में लड़कियों के लिए पहला स्कूल शुरू किया, वहां भी स्मारक बनाने की योजना बनाई जा रही है।

नीता ने कहा कि इस वाड़े को स्मारक बनाने की बजाय एक सभागृह बनाया जाए। इस सभागृह को जय ज्योति, जय क्रांति नाम दिया जाए और इसका उपयोग सामाजिक कार्यो के लिए हो। इस बारे में नीता ने जिलाधिकारी कार्यालय में आवेदन भी दिया है।

साथ ही उन्होंने तहसीलदार कार्यालय से महात्मा फुले द्वारा लिखी वसीयत की प्रति भी मांगी है, जो मोडी भाषा में है।

हमारे महात्मा फुले

महात्मा फुले का परिवार मूलत: सातारा जिले के कटुगांव का रहने वाला था। उनके दादा शेतिबा गोर्हे पुणो आकर बस गए थे। 1827 में जन्मे ज्योतिबा फुले के पिता गोविंदराव पुणो में सब्जी बेचते थे। गोविंदराव और उनके दो भाई पेशवाओं के यहां माली का काम किया करते थे, इसलिए उन्हें फुले कहा जाने लगा।

1848 में एक घटना ने महात्मा फुले को इस कदर आहत किया कि उन्होंने कास्ट सिस्टम बदलने का बीड़ा उठा लिया। उनका मानना था कि महिलाओं और दलितों के लिए शिक्षा सवरेपरि है। इसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी सावित्राबाई को घर पर ही पढ़ाना शुरू किया और अगस्त 1848 में लड़कियों के लिए स्कूल खोला।

इसके लिए उन्हें जबर्दस्त विरोध भी झेलना पड़ा। बढ़ते दबाव के कारण उनके पिता ने उन्हें घर छोड़ने के लिए कह दिया। उन दिनों विधवा विवाह पर पाबंदी थी और बालविवाह आम बात थी।

कई विधवाएं मां बनने के बाद समाज के डर से बच्चों को सड़कों-गलियों में छोड़ देती थीं। महात्मा फुले ने ऐसे बच्चों के लिए अनाथालय शुरू किया। उन्होंने दलितों को समान अधिकार दिलाने के लिए जमकर संघर्ष किया।

सम्मान तो दिया पर मदद नहीं

भारत सरकार ने महात्मा के स्मृति दिवस के अवसर पर 28 नवंबर 1977 को डाक टिकट जारी किया। सरकार को पूरी जानकारी थी कि दत्तात्रेय, महात्मा फुले के परिजन हैं फिर भी सरकार ने कुछ नहीं किया। 14 मार्च 1977 को दत्तात्रेय होले का देहांत हो गया।

महात्मा फुले एवं सावित्रीबाई फुले के गोद लिए पुत्र डॉ. यशवंतराव की पुत्री लक्ष्मीबाई थी, जिनका विवाह बाबुरावजी होले के साथ हुआ था। बाबुरावजी के दो संतान दत्तात्रेय और मथुराबाई थीं। मथुराबाई कोद्रे के बारे में होले परिवार को किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं है।

दत्तात्रेय होले को तीन पुत्र अशोक, विनायक, रमाकांत तथा दो पुत्री चंद्रकला व लता हुईं। उनमें से अशोक और उनकी पत्नी का कुछ साल पहले ही देहांत हो गया।