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जुर्म का गढ़ बनता जा रहा है यूपी- फरजंद अहमद

राजनीति की केमिस्ट्री की एक खासियत है कि जो चीज जितनी तेजी से बदलती है, वह उतनी ही तेजी से अपने मूल की ओर लौट भी जाती है। इसीलिए उत्तर प्रदेश में लगातार सांप्रदायिक दंगों और फिर रेप जैसी शर्मनाक घटनाओं पर हो रहे हंगामे में अखिलेश यादव सरकार उलझ गई है। इसकी वजह भी है। हर घटना इसी बात की ओर इशारा करती है कि देश का सबसे बड़ा राज्य दंगों और रेप पर राजनीति के भंवर में उलझकर एक बार फिर आदिमकाल में जा पहुंचा है। लेकिन प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो मानते हैं कि 'यूपी बड़ा और शक्तिशाली राज्य है। विकास की ओर तेजी से चल पड़ा है, इसलिए कोई नहीं चाहता कि नई सोच के साथ कोई युवा मुख्यमंत्री प्रदेश की सूरत बदलने में कामयाब हो। बवाल इसी कारण है।"

मुजफ्फरनगर दंगे के पहले भी कोई एक सौ छोटे-बड़े दंगे हुए थे। जिस वरिष्ठ मंत्री को मुजफ्फरनगर में बैठकर दंगों पर काबू पाना था, वे रूठकर लखनऊ के अपने बंगले में बैठे रहे, क्योंकि उन्हें उपमुख्यमंत्री बनना था। जिला प्रशासन भी उदासीन रहा। लोकसभा चुनाव के बाद कोई एक दर्जन छोटे-छोटे दंगे और हुए। दूसरी ओर लगातार हो रही रेप की घटनाओं ने यूपी को शर्मसार कर दिया। यूपी के बदायूं में दो बहनों को 'गैंगरेप" के बाद पेड़ से लटका दिया गया। लोगों के रोंगटे खड़े हो गए। गर्दन शर्म से झुक गई। फिर त्रासदी की कहानी मूल की ओर लौटी।

लोगों को याद आया कि देश और दुनिया की नजर तब भी झुकी थी, जब मायावती के शासनकाल में जून 2011 में लखीमपुर खीरी में एक 14 वर्षीय किशोरी से गैंगरेप और हत्या के बाद उसका शव पेड़ पर लटका दिया गया था। सरकार ने जब 5 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की तो तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने कहा था यदि मुख्यमंत्री का रेप होता तो वह दुगना मुआवजा देतीं। उसी रात उनके बंगले, जो कि अति सुरक्षित क्षेत्र में था, को जलाकर राख कर दिया गया था।

इस बार बदायूं का मामला जब सीबीआई के पास पहुंचा तो लगा कि यह ऑनर किलिंग का मामला हो सकता है। अभी ये तय भी नहीं हुआ था कि यह मामला सामूहिक बलात्कार और हत्या या ऑनर किलिंग का है या नहीं, कि लखनऊ के मोहनलालगंज में बलात्कार और हत्या के मामले को लेकर सनसनी फैल गई। पुलिस ने जब कहा कि मामला सुलझ गया है, यह गैंगरेप नहीं बल्कि हत्या का मामला है, तब न तो मीडिया और न ही जनता ने इस पर यकीन किया।

कार्यवाहक राज्यपाल अजीज कुरैशी को भी यकीन नहीं हुआ तो उन्होंने पुलिस को दोबारा छानबीन करने का आदेश दे दिया। अब सब सीबीआई जांच चाहते हैं। मगर कुरैशी की इस बात पर बवाल जरूर हुआ कि 'रेप को भगवान भी नहीं रोक सकते"। दूसरी ओर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस कांड की जांच का आदेश दे दिया। सच्चाई यह भी है कि 21 करोड़ की आबादी वाले राज्य में कुल 1.2 लाख पुलिसकर्मी हैं (5 लाख के स्वीकृत पुलिस बल में कोई 65 फीसद पद खाली पड़े हैं)। इस तरह हर एक लाख व्यक्ति पर केवल एक ही पुलिस है।

दूसरी ओर बदायूं और मोहनलालगंज के बीच भी कई रोंगटे खड़े करने वाले हादसे हुए हैं। आजमगढ़ के बरदह में घर के बाहर खेल रही सात वर्षीय बच्ची के साथ एक युवक ने दुष्कर्म किया। पुलिस ने यह कहकर रिपोर्ट दर्ज नहीं की कि आरोपी की गिरफ्तारी के बाद ही कार्रवाई की जाएगी। लखीमपुर के गोलागोकर्णनाथ में कुछ दबंगों ने खेत जा रही किशोरी के संग दुष्कर्म का प्रयास किया। नाकाम रहने पर किशोरी के घर पर धावा बोल उसके पिता व भाई को गंभीर रूप से घायल कर दिया।

जालौन के कालपी में तीन युवकों ने घर के बाहर खेल रही 13 वर्षीय किशोरी को अगवा कर सामूहिक दुष्कर्म किया फिर उसे जोल्हूपुर मोड़ के पास फेंककर फरार हो गए। किशोरी के अगवा होने के बाद पिता ने तहरीर दी थी, पर पुलिस ने कार्रवाई नहीं की। हरदोई के मल्लावां में शौच के लिए गई दो नाबालिग बहनों को अगवा कर पांच युवकों ने दो दिन तक उनसे सामूहिक दुष्कर्म किया। प्रतापगढ़ में कुछ दबंग घर से युवती को उठा ले गए। फिरोजाबाद के फरिहा में पड़ोसी ने छह वर्षीय बच्ची को दरिंदगी का शिकार बनाया। जौनपुर के बख्शा में दलित युवती की हत्या के मामले में सामूहिक दुराचार का खुलासा हुआ। अमेठी में हुए सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों में से एक दबोचा गया, पर चालान शांतिभंग में दर्ज हुआ। अलीगढ़ विवि के वीमेंस स्टडी सेंटर में तैनात महिलाकर्मी की शिकायत पर दो लोगों पर छेड़छाड़ व मानहानि का केस दर्ज हुआ।

प्रदेश में बच्चियों के साथ दुराचार की घटनाओं में बढ़ोतरी होना स्वीकार करते हुए सरकार ने वर्ष 2013 में पास्को एक्ट के तहत 1796 घटनाएं पंजीकृत होने की बात स्वीकारी। विधानसभा प्रश्नोत्तर में भाजपा के अरुण कुमार के सवाल पर मुख्यमंत्री की ओर से बताया गया कि नाबालिग बच्चों से दुराचार एवं जघन्य अपराधों में बढ़ोतरी हुई। वर्ष 2012 में 6033 केस दर्ज कराए गए, वहीं वर्ष 2013 में यह संख्या बढ़कर 9857 हो गई। इसके अलावा पास्को एक्ट के तहत 2013 में 1796 घटनाएं पंजीकृत हुईं, जबकि वर्ष 2012 में कोई मामला दर्ज नहीं हुआ। प्रदेश सरकार की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल हलफनामे में बताया गया, मई और जून 2014 के बीच छह सप्ताह में सूबे में महिलाओं के साथ अपराध की 4300 घटनाएं दर्ज हुई हैं।

लोग याद करते हैं कि बीजेपी ने फरवरी 2011 में 19 पृष्ठों की 'मायाराज का कच्चा-चिट्ठा" बांटी थी, जिसके अनुसार 7,800 रेप और 6.6 लाख अपराध के मामले दर्ज होने की बात कही गई थी। पार्टी का आरोप था कि एक तरफ लगातार रेप हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री मायावती नीरो की तरह चैन की बांसुरी बजा रही थीं। जाहिर है कि उत्तर प्रदेश भी दूसरे राज्यों की तरह हर बार जितनी तेजी से बदलता है, उतनी ही तेजी से अराजकता के अपने मूल की ओर लौट भी जाता है।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं)