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जेएनयू हिंसा: नए-नए दुश्मन की तलाश में सर्वनाशी सियासत

जेएनयू में हुई विस्मयकारी हिंसा से आपको यह आसान बात समझा आ जानी चाहिए कि भारत एक ऐसी सत्ता द्वारा शासित हो रहा है जिसके होने का एकमात्र कारण विरोध का ज़रिया ढूंढ़ना और उसे क्रूरता से कुचलना है. कायर ठगों का भारत के सबसे प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक में इस तरह घूमना, शिक्षकों और विद्यार्थियों का सर फोड़ देना, जेएनयू प्रशासन द्वारा मामूली हाथापाई बताकर दरकिनार करने वाली छोटी घटना नहीं है. यह समझने के लिए कि दांव पर क्या है, हमारे माननीय (वह जिनका नाम कतई नहीं लेना चाहूंगा) गृहमंत्री के भाषणों की पूरी श्रृंखला को सुना जाना आवश्यक है. एक चीज़ साफ़ हो जाएगी. नए दुश्मन की तलाश के बिना वर्तमान सत्ता अस्तित्व में नहीं रह सकती. यह अब अपने होने के औचित्य को अच्छे कामों से नहीं बल्कि दुश्मन को ज़रिया बनाकर सिद्ध करती है. दुश्मनों— अल्पसंख्यक, लिबरल, सेक्युलर, वामपंथी, अर्बन नक्सल, बुद्धिजीवी, साधारण प्रदर्शनकारी— की निशानदेही साधारण राजनीतिक समीकरण से नहीं उपज रही. शुद्ध और सरल, सीधी इच्छा, विचारधारा और नफरत से उपज रही है. जब आप अपने होने को पूरी तरह दुश्मनों की खोज द्वारा सिद्ध करते हैं तब सच अर्थहीन हो जाता है, इंसानियत के साधारण नियम और अदब अर्थहीन हो जाते हैं, सामान्य राजनीति के चेक और बैलेंस अर्थहीन हो जाते हैं. सिर्फ़ अर्थपूर्ण रह जाता है वास्तविक और काल्पनिक दुश्मन को हर हाल में कुचलना.

जेएनयू की घटनाएं इस सरकार द्वारा खेली जा रही सर्वनाशी राजनीति का एक और चिन्ह है. यह तिहरे अर्थ में सर्वनाशी है. मीडिया के सहयोग से गृहमंत्री के बढ़ावे से “टुकड़े टुकड़े गैंग” मुहावरे का सामान्यिकरण किये जाने से इस तरह की हिंसा की ज़मीन तैयार हुई है.

इसमें कोई शक-सुबहा नहीं है कि निहत्थे प्रोफ़ेसरों और छात्रों का सर फोड़ने वाले कायर हमलावर ख़ुद को राष्ट्रवादी योद्धा समझते हैं: राष्ट्रीय सम्मान का बदला वे विश्वविद्यालय में हिंसात्मक हमला करके ले रहे हैं. लेकिन तथ्य यह है कि वह ऐसा इसलिए समझते हैं क्योंकि मौजूदा विचारधारा के द्वारा इसके पक्ष में एक व्यापक माहौल दिया गया है. और ऐसा करने में सरकारी मशीनरी और उसके कारिंदों ने भी मदद की है.

इस तथ्य से अब कोई पीछा नहीं छुड़ा सकता कि राज्य द्वारा अपने ही नागरिकों को देशद्रोही करार देकर उनका शिकार करना इस सरकार की विचारधारा निर्माण का हिस्सा बन चुका है, जैसा कि गृहमंत्री के भाषणों से पता भी चलता है. यह तथ्य इस सच्चाई से उपजा है कि उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों पर राज्य ने जिस तरह से हिंसक प्रतिक्रिया दी उसके बरक्स पहले हुई लिंचिग की घटनाओं पर हुई नाममात्र कार्रवाइयों ने समाज के ऐसे असामाजिक तत्वों को प्रोत्साहन दिया है. राज्य हर उस इन्सान पर सीधे या फिर छद्म ताकतों द्वारा हमले को उकसायेगा जो उसके सुर में सुर नहीं मिलाएगा.
 
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