Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/जेटलीजी-तो-खेल-कर-गये-योगेन्द्र-यादव-12368.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | जेटलीजी तो खेल कर गये-- योगेन्द्र यादव | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

जेटलीजी तो खेल कर गये-- योगेन्द्र यादव

‘बधाई हो, आपकी मेहनत रंग लायी!' बजट के अगले दिन एक दोस्त से मिली इस बधाई से मैं हैरान था. ‘किस बात की बधाई?' मैंने पूछा. ‘अरे, अरुण जेटली ने आपकी मांग मान ली?' ‘कहां मानी?'

मैं अब भी हैरान था. 'भई आप यही मांग रहे थे न कि किसान को उसकी लागत का ड्योढ़ा दाम मिले? मैंने खुद सुना कि वित्त मंत्री ने घोषणा की और कहा कि सरकार इस सिद्धांत का पालन करेगी. हो सकता है कि आपकी दूसरी मांगें न मानी हों, लेकिन कम से कम इस घोषणा से तो आपको खुश होना चाहिए.'

मैं फिर भी खुश नहीं था: ‘भाईसाहब, जेटलीजी तो खेल कर गये. नाम के लिए घोषणा भी कर दी, और किसान को कुछ दिया भी नहीं. यह घोषणा तो हमारे किसानों के साथ धोखा है.' अब वे हैरान हुए. ‘इसका मतलब दिल्ली में किसानों की ऐतिहासिक संसद से कुछ असर नहीं हुआ?'

‘असर तो हुआ. देश भर से आये किसानों ने सरकार की आंख खोल दी, उन्हें चेताया कि किसान के लिए कुछ करना पड़ेगा. उनका मुंह भी खोल दिया. चार साल बाद अरुण जेटली को अपनी ही पार्टी के चुनावी वादे के बारे में बोलना पड़ा. लेकिन, अभी उनका दिल नहीं खुला, उनकी जेब भी नहीं खुली. जेटली जी ने खाली डाॅयलाग से किसानों का पेट भरने के कोशिश की है. जेब में हाथ नहीं डाला.' मेरा जवाब था.
‘ये गड़बड़झाला समझाइये.' उनका अनुरोध था.

‘देखिए, लागत का ड्योढ़ा दाम देने के वादे में सवाल यह है कि किसान की लागत क्या है? जब 12 साल पहले स्वामीनाथन आयोग ने ड्योढ़े दाम की सिफारिश की थी, तो उनकी समझ साफ थी.

उन्होंने कहा था कि किसान की संपूर्ण लागत पर 50 प्रतिशत बचत होनी चाहिए. सरकारी भाषा में इस संपूर्ण लागत को ‘सी-2 लागत' बोला जाता है. किसान संगठन भी इसी फॉर्मूले की मांग कर रहे थे. बीजेपी और संघ के किसान संगठन भी कई साल से यही मांग कर रहे हैं.

मोदीजी ने 2014 के चुनाव में यही वादा किया था. लेकिन, सत्ता में आने पर बीजेपी सरकार साफ मुकर गयी. सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर बोल दिया कि हम स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू नहीं कर सकते. किसान संगठनों ने इस पर सरकार को घेरा और इस बार गुजरात चुनाव के बाद बीजेपी को भी लगा कि किसान के गुस्से को ठंडा करने के लिए कुछ करना पड़ेगा. लेकिन, किसान की बात मानने के लिए जो पैसा खर्च करना पड़ता, उसकी तैयारी नहीं थी. इसलिए जेटली जी ने चतुराई का रास्ता सोचा, जिससे सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे. उन्होंने हाथ की सफाई दिखाते हुए लागत की परिभाषा बदल दी.

किसान की पूरी लागत गिनने की बजाय आंशिक लागत का फॉर्मूला लगा दिया. सरकारी भाषा में इस अधूरी लागत को 'ए2+एफएल लागत' बोला जाता है. इस अधूरी लागत के ऊपर 50 प्रतिशत बचत की घोषणा कर दी. आप जैसे सभी लोगों ने यही सोचा कि बीजेपी ने अपना वादा पूरा कर दिया. जेटली जी मन ही मन हंस रहे होंगे कि और एक बार फिर किसानों की आंख में धूल झोंक दी.'

अब उन्हें कुछ समझ आने लगा था- ‘यह तो वही बात हुई कि पूरा तौल देने की बजाय बाट ही बदल दिया. लेकिन इन दोनों से फर्क क्या पड़ेगा?'

मैंने कहा- 'बहुत फर्क पड़ेगा. आंशिक लागत में सिर्फ नगदी लागत और परिवार की मजदूरी शामिल है. लेकिन, कोई भी व्यापारी अपनी लागत में जमीन का किराया और पूंजी का ब्याज भी जोड़ता है. जब किसान की लागत में इन दोनों को जोड़ा जाये, तो संपूर्ण लागत बनती है.

किसान को उस पर 50 प्रतिशत की बचत मिलनी चाहिए थी.'

‘बात तो आपकी सही है, लेकिन बाल की खाल उखाड़नेवाली लगती है. मुझे पैसे में बताओ की दोनों लागत से ड्योढ़े दाम में कितना फर्क पड़ेगा?' उन्होंने पूछा.

बजट के दिन से मैं जेब में एक परचा लेकर चल रहा था, मैंने उसे निकालकर उन्हें गिनाना शुरू किया- ‘गेहूं में स्वामीनाथन फॉर्मूले और जेटली फॉर्मूले में हर क्विंटल पर 659 रुपये का फर्क है, धान में 551 रुपये/क्विंटल का, सोयाबीन पर 1,200 रुपये/क्विंटल का तो मूंग दाल पर 2,121 रुपये/क्विंटल का फर्क है. जेटली के खेल से हर फसल पर किसान को हर क्विंटल पर 500 रुपये से लेकर 2000 रुपये तक का नुकसान हो गया है.'

‘यह तो बहुत बड़ा मामला है. मगर इससे वित्त मंत्री को क्या फायदा?' उसने पूछा. ‘सीधी बात है उनकी जेब से पैसे नहीं लगे. जेटली के फाॅर्मूले के अनुसार, उन्हें अधिकांश फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाना ही नहीं पड़ेगा. जो सरकार अभी से देती आ रही है, उसी में काम चल जायेगा. सच तो यह है कि इस फॉर्मूले के हिसाब से कांग्रेस की सरकार भी किसानों को अधिकांश फसलों पर यह दाम दे रही थी. इस नयी घोषणा से रबी की किसी फसल में किसानों को कुछ ज्यादा नहीं मिलेगा. समर्थन मूल्य में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी.

खरीफ की फसल में कुछ थोड़ी सी बढ़ोतरी करनी पड़ेगी. केवल धान में 125 रुपये बढ़ाने पड़ेंगे. इतना तो सरकार वैसे भी कर सकती थी. बाकी जिन फसलों में न्यूनतम बढ़ेगा, उससे जेटली की जेब को कोई फर्क नही पड़ेगा. क्योंकि सरकार उन फसलों की खरीदारी ही नहीं करती. इस फॉर्मूले के हिसाब से सरकार चाहे तो कुछ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य आज किसानों को मिल रहे दाम से कम भी कर सकती है.' ‘इसका सरकार पर असर यह है कि सरकार को खाद्यान की खरीदी में अतिरिक्त धन खर्च नहीं करना पड़ेगा.

स्वामीनाथन आयोग द्वारा सुझाये गये संपर्ण लागत में ड्योढ़ा जोड़कर देते, तो सरकार को 33,000 करोड़ और खर्च करना पड़ता. अरुण जेटली के फाॅर्मूले से सरकार को कुछ खर्च नहीं पड़ेगा. अगर सरकार चाहे, तो कुछ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घटा भी सकती है और आज जो किसान को मिल रहा है, उसमें से भी कोई 9,000 करोड़ छीन सकती है.' मेरा मित्र अब चिंतित था- ‘भाई ये तो धोखा हो गया, अब क्या करेंगे.'
मेरा जवाब सीधा था- ‘संघर्ष करेंगे. किसान को संघर्ष किये बिना कुछ नहीं मिलेगा. खरीफ की बिक्री के दौरान मंडी-मंडी जायेंगे, किसानों को जगायेंगे. और इस देश के हुक्मरानों को बतायेंगे कि अब किसानों की आंख में धूल झोंकना संभव नहीं है. ये किसान अब सांप तो नहीं, लेकिन तुम्हारी लाठी जरूर तोड़ देंगे.'