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जैव विविधता संरक्षण को अंतरराष्ट्रीय संधि संभव

नई दिल्ली। पर्यावरण और वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने शनिवार को कहा कि जैव विविधता से भरपूर संसाधनों तक पहुंच और उसके दोहन के लाभ में स्थानीय समुदाय की हिस्सेदारी सुनिश्चित कराने के उद्देश्य से दुनिया के 193 देशों के बीच आगामी अक्टूबर तक अंतरराष्ट्रीय संधि के आकार लेने की संभावना है।

रमेश ने यहां अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के मौके पर हुए समारोह में कहा कि जापान के नागोया में अक्टूबर मध्य में दुनिया के 193 देशों के प्रतिनिधियों की एक बैठक होनी है, जिसमें जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय संधि करने पर जोर दिया जाएगा। इससे पहले जुलाई में कनाडा के मांट्रियल में वार्ताकारों की एक बैठक होगी। उन्होंने कहा कि इस दिशा में भारत का योगदान काफी अहम रहेगा। क्योंकि हम उन चुनिंदा देशों में से एक हैं, जहां जैव विविधता वाले स्रोतों के दोहन के नियमन के लिए पृथक कानून है।

रमेश ने कहा कि भारत को नागायो में एक संधि होने को लेकर काफी उम्मीदें हैं, लेकिन अगर वहां प्रगति हासिल नहीं हुई तो नई दिल्ली में अक्टूबर 2012 में होने वाली कॉप-11 [कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज की 11वीं बैठक] में इस संधि पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रचुर जैव विविधता वाले संसाधनों के दोहन के नियमन पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि को आकार देने के मुद्दे पर विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद कायम हैं, जिन्हें दूर करने की जरूरत है। राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण करीब 80 कंपनियों के साथ जैव विविधता संरक्षण के मकसद से समझौते कर रहा है और पेप्सी के साथ हुए पहले करार के तहत समुद्री शैवाल के निर्यात के लिए उससे 38 लाख रुपये की रॉयल्टी भी हासिल की गई है।

पर्यावरण और वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने शनिवार को यहां एक कार्यक्रम में कहा कि जैव विविधता वाले संसाधनों के दोहन से हासिल होने वाले लाभ में स्थानीय समुदाय को हिस्सेदारी देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण 80 कंपनियों के साथ समझौते कर रहा है।

उन्होंने कहा कि सबसे पहले पेप्सी के साथ हुए समझौते का कार्यान्वयन हुआ है, जिसके तहत कंपनी ने प्राधिकरण को बतौर रॉयल्टी 38 लाख रुपये की राशि दी है। इस राशि को उस स्थानीय समुदाय के बीच वितरित किया जाएगा जहां से कंपनी समुद्री शैवाल का निर्यात करती है। गौरतलब है कि पेप्सी जैसी कंपनियां जिस समुद्री शैवाल का सिंगापुर, मलेशिया और अन्य देशों में निर्यात करती हैं, उसे भारत के दक्षिण पूर्व में स्थित मन्नार की खाड़ी से निकाला जाता है।

भारत ने चिकित्सकीय गुणों से भरपूर अर्जुन वृक्ष की छाल को यूरोप में पेटेंट कराने की एक कंपनी की कोशिश को नाकाम कर दिया है। पर्यावरण और वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने शनिवार को यहां बताया कि 10 करोड़ रुपये की लागत से विकसित किए गए पारंपरिक ज्ञान डिजिटल पुस्तकालय [टीकेडीएल] ने अर्जुन की छाल को पेटेंट कराने की कोशिशों को नाकाम करने में अहम भूमिका अदा की है। उन्होंने कहा कि अवेस्थाजेन कंपनी ने अर्जुन की छाल के इस्तेमाल के लिए यूरोपीय पेटेंट कार्यालय में अर्जी दी थी, लेकिन टीकेडीएल के जरिए यह साबित कर दिया गया कि कंपनी का दावा पूर्व से उपलब्ध ज्ञान पर आधारित है। इसके बाद गत छह अप्रैल को पेटेंट कार्यालय से कंपनी ने अपनी अर्जी वापस ले ली।

टीकेडीएल के मुताबिक, 15वीं शताब्दी की एक आयुर्वेदिक पुस्तक 'वृंदामाधव' में अर्जुन की छाल की खूबियों का जिक्र है। अर्जुन की छाल का इस्तेमाल मधुमेह, मोटापे और हृदय विकारों के इलाज के लिए किया जाता है। रमेश ने कहा कि टीकेडीएल में आयुर्वेद की 75, सिद्ध विज्ञान की 50, योग विज्ञान की 13 और यूनानी ज्ञान की 10 पुस्तकों को डिजीटल स्वरूप दिया गया है और 2,19,000 चिकित्सकीय नुस्खों का संकलन किया गया है। इसी से हल्दी, नीम और बासमती चावल का पेटेंट कराने की कोशिशों को भी नाकाम करने में मदद मिली है।

गौरतलब है कि टीकेडीएल और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद [सीएसआईआर] ने पिछले कुछ महीनों में यूरोपीय पेटेंट कार्यालय से भारतीय ज्ञान पर आधारित वस्तुओं का पेटेंट कराने की विभिन्न कंपनियों की 14 कोशिशें विफल की हैं।