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जैसा बताया जाता है, क्या नेताजी और महात्मा गांधी के बीच वैसी ही दूरियां थीं?

आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस पर जब आप ये शब्द पढ़ रहे होंगे, उसी समय सोशल मीडिया से लेकर अन्य मंचों पर नेताजी के बरक्स महात्मा गांधी की भी चर्चा चल रही होगी. ठीक है कि भारत की आज़ादी का कोई भी विमर्श महात्मा गांधी का नाम लिए बिना पूरा नहीं हो पाता. लेकिन आज नेताजी को महात्मा के खिलाफ ऐसे ही खड़ा किया जा रहा है मानो ये दोनों ही व्यक्तित्व आज के राजनेताओं की तरह एक-दूसरे के प्रति मनभेद और द्वेषभाव रखने वाले लोग हों.

तो आइये आज जान ही लेते हैं कि अहिंसा और हिंसा के प्रश्नों के साथ-साथ व्यक्तिगत रूप से नेताजी बोस और महात्मा गांधी एक-दूसरे के बारे में असल में क्या सोचते थे.

सुभाष चंद्र बोस को देशबंधु चित्तरंजन दास से मिलाने का काम महात्मा गांधी ने ही किया था. लेकिन असहयोग आंदोलन को अचानक समाप्त किए जाने से नाराज मोतीलाल नेहरू और चित्तरंजन दास ने जब कांग्रेस से अलग होकर स्वराज पार्टी बना ली, तो सुभाष बाबू भी स्वराजियों के साथ ही गए. लेकिन गांधी का व्यक्तित्व ऐसा था कि एक बार जब वे किसी व्यक्ति में गुणदर्शन कर लेते थे, तो फिर कोई भी वैचारिक मतभिन्नता उन्हें उनसे अलग नहीं कर सकती थी. और कमोबेश यह गुण सुभाष बाबू में भी था.

इसलिए हम आगे लिखे जाने वाले प्रसंगों में देखेंगे कि लगभग पच्चीस वर्षों के दरम्यान दोनों के संबंधों में तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद परस्पर प्रेम और ज्यादा प्रगाढ़ होता गया. दो पीढ़ियों के बीच वैचारिक स्तर पर होने वाले पारदर्शी और सम्मानजक बहस का यदि कोई सुंदर नमूना आपको देखना हो, तो वह आप नेहरू और सुभाष बाबू के साथ गांधी के हुए संवादों में देख सकते हैं. राजनीतिक संवाद या पॉलिटिकल कम्यूनिकेशन का आज जो स्वरूप हो गया है, उसे देखते हुए आज के युवाओं को ऐसे संवादों को बार-बार पढ़ना चाहिए.

4 जून, 1925 को ‘यंग इंडिया’ में महात्मा गांधी जब बाढ़ राहत के संदर्भ में एक लेख लिखते हैं, तो ऐसे कार्यों में सबसे दक्ष नेतृत्व के रूप में उन्हें सबसे पहले सुभाष चंद्र बोस की याद आती है. सितंबर, 1922 में उत्तर बंगाल में आई बाढ़ के दौरान सुभाष बाबू की भूमिका की प्रशंसा करते हुए गांधी लिखते हैं- ‘जिन्हें आपदा-राहत के काम का जरा भी ज्ञान है, वे जानते हैं कि केवल सेवा करने की इच्छा या रुपये होने से ही काम नहीं चल सकता. उसके लिए ज्ञान और योग्यता की भी जरूरत होती है. (1922 की बाढ़ राहत) के दौरान यथोचित कार्यप्रणाली के द्वारा दो बुराइयां रोकी जा सकीं — एक तो एक ही काम दोबारा करना और दूसरा अकुशल प्रबंधन. समूचे बाढ़ पीड़ित प्रदेश को 50 केन्द्रों में बांट दिया गया था. इस विशाल संगठन के अध्यक्ष और कोई नहीं श्रीयुत सुभाष चंद्र बोस थे, जो आज माण्डले के किले में सम्राट के मेहमान हैं.’

कलकत्ता नगर निगम के अध्यक्ष रहने के दौरान जब सुभाष बाबू को बिना कोई कारण बताए गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में उन्हें बहुत ही गंभीर बीमारी की हालत में रिहा किया गया, तो महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के इस रवैये के खिलाफ एक जबरदस्त आलेख लिखा था. 26 मई, 1927 को यंग इंडिया में लिखे इस आलेख में गांधी कहते हैं, ‘इस दुःखद मामले से भी अगर जनता कोई सांत्वना की चीज ढूंढ़ निकालना चाहे, तो उसे एक चीज जरूर मिल जाएगी और वह यह कि अंतिम क्षण तक श्रीयुत सुभाषचन्द्र बोस सरकार द्वारा समय-समय पर रखी गई उन अपमान भरी शर्तों को बड़ी जवांमर्दी के साथ मानने से इन्कार करते रहे. अब हमें आशा और प्रार्थना करनी चाहिए कि परमात्मा उन्हें ही फिर स्वस्थ करे और वे चिरकाल तक अपने देश की सेवा करते रहें.’
 
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