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झारखंड का जनजातीय समाज -- जेबी तुबिद

झारखंड का जनजातीय समाज एक स्वाभिमानी समाज है. पीढ़ियों से समाज ने अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़कर अपनी पहचान को अक्षुण्ण रखा है. प्रकृति ने उन्हें लड़ने की क्षमता दी है. साथ ही प्रकृति के साथ सामंजस्य कर जीवन बसर करने के अलौकिक गुण भी दिये हैं.

सांस्कृतिक दृष्टि से समाज काफी धनी है. जनजातीय समाज अपनी दुनिया में जीता है एवं दूसरे समाज को अपने में समाविष्ट नहीं करता.


जल,जंगल,जमीन,अन्याय एवं अस्मिता की लड़ाई की अनेकों गाथाएं इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं. देश के किसी हिस्से और समाज ने शायद ही इतने वीर शहीद पैदा किए,जितने की जनजातीय समाज ने. इन्हीं कारणों से आज भी समाज अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए एकजुट हो जाता है.

जनजातीय समाज में आदिम जनजातियों का एक स्वाभिमानी समुदाय है. यह समुदाय देश के क्रांतिकारी इतिहास में अग्रणी भूमिका में रहा है. जनजातीय समाज का इतिहास इनकी गाथाओं के बिना अधूरा है. प्रारंभिक काल से आज तक जनजातीय समाज एक कृषक समाज रहा है.19वीं सदी के प्रारंभ में औद्योगिक गतिविधियों ने इस क्षेत्र में औद्योगिक श्रमिकों को जन्म दिया. नये औद्योगिक परिवेश ने शारीरिक श्रम करने वाले श्रमिकों के स्थान पर कुशल एवं कंप्यूटर ज्ञान वाले श्रमिकों की मांग बढ़ा दी है.

हम इसमें पिछड़ते नजर आते हैं. कतिपय सेवा एवं व्यापारिक गतिविधियों को छोड़कर उद्यमियों की संख्या नगण्य है. राज्य में आर्थिक एवं औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आने से युवाओं में इस ओर आकर्षण बढ़ा है. समाज की आर्थिक गतिविधियों में महिलाएं महत्वपूर्ण भागीदारी देती हैं. पुरुष एवं महिला के मध्य कार्यों का स्पष्ट विभाजन है. यह कहना अनुचित नहीं होगा कि जनजाति समाज में महिलाएं आर्थिक गतिविधि की धुरी हैं. महिलाओं को एक नये रूप में संगठित करने की आवश्यकता है.

देश की आजादी के बाद शिक्षा के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ा है. बालक की तुलना में बालिका शिक्षा, नीतिकारों का ध्यान आकर्षित करती है. खेल के प्रति जनजातीय समाज का स्वाभाविक आकर्षण है. गत दशकों में एक जागरूक एवं शिक्षित युवा पीढ़ी का उदय हुआ है.


यह पीढ़ी अपने अधिकारों एवं दायित्वों के प्रति सजग है. शिक्षित समाज के निर्माण में सरकारों ने प्रयास किये हैं, किंतु सफर अभी लंबा है. नयी पीढ़ी कृषि से इतर रोजगार खोजती है. सभी डाॅक्टर, इंजीनियर एवं प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते हैं, किंतु गुणवत्ता विहीन शिक्षा लक्ष्य की प्राप्ति में बाधक हो जाती है. सरकारों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना एक चुनौती है. इन्हीं कारणों से अधपके शिक्षित युवकों की भरमार है. कौशलयुक्त शिक्षित युवकों की कमी है. शिक्षित एवं सजग युवा समाज में परिवर्तन ला सकते हैं.

सरकार के कार्यक्रमों ने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा किया है, किंतु अभी अंधविश्वास की जड़ें काफी मजबूत हैं. स्वास्थ्य के क्षेत्र में चिकित्सा सुविधा के साथ चिकित्सा पद्धति पर विश्वास पैदा करना आवश्यक है. समाज कुपोषण की समस्या से पीड़ित है. यह एक नयी स्वस्थ पीढ़ी तैयार करने में बाधक है.

झारखंड में कुछ अपवादों को छोड़कर राजनीति एवं राजनीतिज्ञ अपरिपक्व हैं. भावना आधारित एवं टकराहट की राजनीति प्रचलन में है. सभी जानते हैं कि राजनीति दिशा एवं दशा बदलती है, किंतु 60-70 वर्ष की राजनीति समाज को बहुत कुछ नहीं दे पायी है. सभी राजनीतिक दलों को दिग्भ्रमित करने की राजनीति से बचना चाहिए. स्वस्थ राजनीति व मूलभूत समस्याओं के निदान के लिए संकल्पित रहना चाहिए.


यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि शासन-प्रशासन के प्रति लोगों के विश्वास में कमी आयी है. समाज में जागरूकता एवं नेतृत्व विकसित करने का कार्य प्राथमिकता में होना चाहिए.आज जनजातीय समाज की सांस्कृतिक अस्मिता को बचाने की आवश्यकता है.
आदिवासीयत समाप्त होने पर एक धरोहर का अंत होगा. हमें सजग रहने की आवश्यकता है.
लेखक सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी हैं.