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झारखंड की संभावनाओं भरी राह-- अलख नारायण शर्मा

एक राज्य के तौर पर झारखंड ने सोलह साल का सफर तय कर लिया है. इस दौरान एक अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने कई क्षेत्रों में प्रगति की है. लेकिन, नये राज्य के बनने के बाद से झारखंड से जैसी उम्मीद की जा रही थी, वैसा कुछ हो नहीं हो पाया. फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि इस दौरान राज्य कई मामले में आगे बढ़ा है. गरीबी उन्मूलन, अशिक्षा उन्मूलन, बेहतर स्वास्थ्य और इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में काफी काम हुआ है. मानव विकास सूचकांक के पैमाने पर राज्य के हालात बेहतर हुए हैं. लेकिन, झारखंड का आधार इतना कमजोर रहा है कि वहां विकास के लिए अब भी काफी मेहनत करने की जरूरत है. 

सोलह साल हो गये लेकिन झारखंड के सामने चुनौतियां अब भी कम नहीं हैं. शिक्षा के क्षेत्र की बात करें, तो राज्य में माध्यमिक शिक्षा की स्थिति काफी दयनीय है. माध्यमिक शिक्षा में बच्चों का नामांकन दर कम है. शिक्षा को मजबूत करने के लिए राज्य माध्यमिक शिक्षा को मजबूत बनाना होगा. इसके साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता भी एक बड़ी चुनौती है. अगर माध्यमिक शिक्षा बेहतर होगी, तो उच्च शिक्षा का आधार भी मजबूत होगा. इस पर काफी ध्यान देने की जरूरत है.

झारखंड की दूसरी बड़ी समस्या गरीबी को लेकर है. राज्य में गरीबी काफी अधिक है. इस स्थिति में कुछ सुधार तो हुआ है, लेकिन इसे और भी कम करने की जरूरत है. इसके अलावा बच्चों में कुपोषण की समस्या काफी गंभीर है. यह कुछ राज्यों को छोड़ कर राष्ट्रीय औसत से अधिक है. 
 
झारखंड में ग्रामीण क्षेत्रों का विकास सही तरीके से नहीं हुआ है. अन्य राज्यों की तुलना में झारखंड में छोटे गांव काफी अधिक हैं. छोटे गांवों में सारी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना भी बड़ी चुनौती है. सरकार को इस बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है. गांवों को विकास की मुख्यधारा में शामिल किये बिना राज्य का विकास संभव नहीं है. यह एक चुनौती तो है, लेकिन नामुमकिन नहीं है. गांवों में बुनियादी सुविधाओं को पहुंचाने के लिए सरकार को हरसंभव प्रयास करने चाहिए. 

राज्य की एक और बड़ी समस्या रोजगार की है. समाज के पिछड़े तबकों, खासकर ग्रामीण इलाकों में रोजगार के साधन नहीं हैं. समस्या शहरों में भी है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की 50 फीसदी शिक्षित महिलाएं बेरोजगार हैं. हालांकि, पुरुषों में रोजगार की स्थिति काेई बेहतर नहीं है. इसके लिए शिक्षा का विस्तार और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे. झारखंड में एक और गंभीर चुनौती है, वह है शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच असमानता. शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बीच प्रति व्यक्ति आय में काफी अंतर है. झारखंड के शहरों की प्रति व्यक्ति आय बिहार के शहरी लोगों से अधिक है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बिहार के लोगों के पास झारखंड के लोगों की तुलना में संपत्ति अधिक है. आदिवासी आबादी शहरों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक रहती है. ऐसे में सरकार को ग्रामीण क्षेत्र के विकास पर ध्यान देने की जरूरत है. 

यह सही है कि राज्य के विकास में उद्योगों की अहम भूमिका होती है. लेकिन, विकास के लिए सिर्फ बड़े उद्योग नहीं, बल्कि छोटे और मध्यम उद्योगों के विकास पर फोकस करने की आवश्यकता है. झारखंड के विकास के लिए ग्रामीण औद्योगिकीकरण पर जोर देने की जरूरत है. इसके लिए छोटे-छोटे शहराें के विकास की नीति को अमल में लाना चाहिए. गांवों में सड़कों का जाल बिछाया जाये, ताकि उसके रास्ते गांवों का विकास विस्तार ले सके. 

झारखंड में खनिज के अलावा वन संपदा भी काफी है. लेकिन, पहले की तुलना में इसमें कमी आयी है. क्लामेट चेंज के असर को देखते हुए राज्य को वन संपदा को बढ़ाने पर जोर देने की जरूरत है. मौजूदा हालात में झारखंड के लिए यह एक बड़ा अवसर है. वन संपदा बढ़ने से सिर्फ राज्य को ही नहीं, बल्कि देश को भी फायदा होगा. इस अभियान में केंद्र सरकार को भी सहयोग करना चाहिए. राज्य में वन संपदा के बढ़ने से स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और आदिवासी समुदाय को इसका सीधा लाभ भी मिलेगा. 

यह कहना उतना सही नहीं है कि झारखंड के साथ बने उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ ने अधिक प्रगति की है. जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश के साथ था, तब भी वह विकास के मामले में आगे था. हम उत्तराखंड को पिछड़ा राज्य नहीं कह सकते हैं. छत्तीसगढ़ में सड़कें और बिजली की स्थिति अच्छी है. 

वहां कृषि क्षेत्र का भी विकास हुआ है, लेकिन इस दौरान झारखंड में भी विकास के काफी काम हुए हैं. राज्य गठन के बाद उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में राजनीतिक स्थिरता रही है, जबकि राजनीतिक तौर पर झारखंड में ऐसी स्थिरता नहीं रही है. यह एक बड़ा कारण है, जिससे राज्य का विकास बाधित हुआ है. विकास के लिए राजनीतिक स्थिरता काफी जरूरी होती है. लेकिन पहली बार राज्य में एक स्थिर सरकार का गठन हुआ है और अब नीतियां भी अच्छी बन रही हैं. विकास के पैमाने पर आगे बढ़ने के लिए मौजूदा चुनौतियों से पार पाना होगा. 

देश के अन्य राज्यों की तुलना में झारखंड और बिहार में आबादी बढ़ने की गति अधिक है. इससे आनेवाले समय में इन राज्यों में युवाओं की संख्या अन्य राज्यों की तुलना में अधिक होगी. यानी डेमोग्राफिक डिवीडेंड का फायदा इन राज्यों को मिल सकता है, क्योंकि दक्षिण के राज्य इस मामले में पिछड़ रहे हैं. इसके लिए इन राज्यों में स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे. शिक्षा का विस्तार करना होगा. मनरेगा रोजगार का विकल्प नहीं हो सकता है. 

अब सभी राज्यों में स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराने की मांग जोर पकड़ रही है. ऐसे हालात में झारखंड को बड़े पैमाने पर पलायन रोकने के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने ही होंगे. इन कदमों को उठा कर झारखंड विकसित राज्य बन सकता है. सिर्फ खनिज संसाधनों की उपलब्धता ही विकास का पैमाना नहीं हो सकती है. इसके लिए बुनियादी सुविधाओं को बेहतर करना जरूरी होता है.