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झारखंडी बालिका वधु ने बदला माहौल- पंकज कुमार पाठक

रांची के एक गांव की मीना ( बदला हुआ नाम) का विवाह बचपन में ही हो गया था. बाल विवाह की शिकार हुई मीना को जब यह एहसास हुआ कि उसके साथ क्या हुआ है, तो उसने समाज की इस कुप्रथा से लड़ने का निर्णय लिया. मीना का यह फैसला इतना आसान नहीं था.

मुश्किलों का सामना करते हुए वह ससुराल से अपने घर  वापस आ गयी. अभी मीना 10वीं की छात्रा है. उसने अपनी  चार बहनों को इस कुप्रथा का शिकार होने से बचाया है. मीना समाज के लिए एक मिसाल है जो  सामाजिक बंधनों को तोड़ कर बाल विवाह जैसी कुप्रथा के खिलाफ लड़ रही है. उसने समाज की पुरानी सोच को बदलने का पूरा प्रयास किया है. मीना ने समाज के लिए एक मिसाल पेश किया है जो बेमिसाल है.

14 साल की उम्र में हुई शादी
मीना ने अभी खुलकर सांस लेना शुरू किया था. स्कूल में सातवीं की छात्रा थी. नयी-नयी चीजें हर रोज स्कूल से सीख रही थी. अपने दोस्तों के साथ स्कूल जाया करती थी. उसकी चार और बहनें हैं जो रोज साथ स्कूल जाती थीं. मीना सबसे बड़ी थी. अचानक उसके माता-पिता ने मीना की शादी तय कर दी. उस वक्त मीना शादी जैसे गंभीर फैसले और उसके बाद जीवन में आने वाले बदलाव का अंदाजा भी नहीं लगा सकती थी. अचानक बचपन की मस्ती से दूर होकर मीना के सर पर जिम्मेदारियों का भार आ गया.  मीना की शादी 14 साल की उम्र में हो गयी. वह और पढ़ना चाहती थी लेकिन उसके मां- बाप ने उसे समझाया कि उसकी और चार बहनें है, अगर उसने इस वक्त शादी नहीं की तो उसकी बहनों की शादी में दिक्कत होगी. माता-पिता के आगे मजबूर मीना कुछ न कर सकी और छोटी सी उम्र में उसकी शादी  हो गयी.

बचपन के खेल से पत्नी की जिम्मेदारियों तक का सफर
शादी के बाद मीना अपने ससुराल पहुंची तो उसने महसूस किया कि उसकी आजादी छिन चुकी है जो उसे पिता के घर में मिलती थी. धीरे-धीरे उसका रिश्ता पढ़ाई से टूटता चला गया. मीना घर के काम में व्यस्त रहने लगी. उसके  पति को शराब की लत थी. इस दौरान उसे घरेलू हिंसा का शिकार भी होना पड़ा. उम्र के इस पड़ाव में सबकुछ संभालना उसके लिये बहुत कठिन था. धीरे-धीरे मीना के लिए जिंदगी काटना मुश्किल होता गया. घर का काम करना, लोगों के ताने सुनना, पति से मार खाना अब उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मीना के ससुराल वाले अब दहेज की भी मांग करने लगे थे. आखिरकार मीना शादी के सिर्फ छह महीने बाद ही घर आ गयी.

आजादी और उड़ान का लिया फैसला
छह महीने ससुराल में दर्द सहने के बाद मीना अपने पिता के घर चली आयी. उसने आगे पढ़ने और जिंदगी में कुछ कर दिखाने का फैसला लिया. उसने अपनी बहनों के साथ यह सब नहीं होने देने की शपथ ली. उसके लिए सबसे ज्यादा मुश्किल घरवालों को समझाना था. पुराने विचारों वाली मीना की दादी को समझाना बहुत मुश्किल था. मीना ने अपने विवाह के बाद के अनुभव को दादी से साझा किया. आज उनकी दादी स्वयं बाल विवाह के सख्त खिलाफ है. मीना ने अपने दम पर अपनी जिंदगी बनाने का फैसला लिया  साथ ही अपनी बहनों की जिंदगी भी उसने बेहतर कर दी. मीना आज अपनी पढ़ाई के साथ-साथ बाल विवाह के खिलाफ जंग लड़ रही है. आज उनकी जिंदगी कुछ और होती अगर उसने हालात से समझौता कर लिया होता. उसने न सिर्फ अपनी जिंदगी में खुशियों के रंग भरे हैं बल्किआज मीना के कारण उनकी बहनें अपनी जिंदगी में वही खुशी महसूस कर रही हैं जो मीना शादी से पहले करती थी. मीना बाल-विवाह के खिलाफ लड़ रही हैं. उसके माता-पिता उसे अपने पति के घर इसलिए नहीं भेज पा रहे थे क्योंकि उनकी मांग पूरी करना उनके बस में नहीं था. लेकिन आज मीना के माता पिता भी उसे खुश देखकर बहुत खुश हैं. उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया. उनकी बेटी की हिम्मत ने उन्हें अपने फैसले को गलत मानने की हिम्मत दी है.

दृढ़ निश्चय से लिया फैसला
आज मीना अपनी बहनों की पढ़ाई में मदद कर रही है. उसने अपनी मां-बाप की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिये ब्रेक थ्रू संस्था का सहारा लिया जो सरकारी योजनाओं से उन्हें सहायता दिलाने का प्रयास कर रही है. मीना ने अपने इस फैसले से न सिर्फ अपने परिवार की सोच बदली बल्कि उसने अपनी बहनों को इस कुप्रथा का शिकार होने से बचाया है.

मीना के लिये यह फैसला लेना आसान नहीं था. लेकिन उस पर हो रहे जुल्म और कच्ची उम्र में मिल रही तकलीफ ने उसे फैसला लेने की ताकत दी थी. ब्रेक थ्रू संस्था का उनकी आजादी में काफी योगदान रहा. उसने इस संस्था के जरिये अपनी सोच को समाज तक पहुंचाया है. ब्रेक थ्रु उनके स्कूल में बाल- विवाह पर कार्यक्र म प्रस्तुत करने आयी थी. एक नाटक मंचन में ही मीना ने अपनी आवाज बुलंद की. चंदा पुकारे नामक नाटक के मंचन में मीना ने अपनी आपबीती सबको बतायी थी. उनके लिये सबके सामने खुलकर आना इतना आसान नहीं था लेकिन दूसरों के साथ वो सब ना हो जो उसके साथ हुआ इसलिए मीना ने दृढ़ निश्चय किया.

मीना के ससुराल वालों को भी है अफसोस
मीना की हिम्मत ने उनके ससुराल वालों को भी उसके सामने झुकने पर मजबूर कर दिया है. अब वह चाहते हैं कि मीना अपनी पढ़ाई पूरी करे और जिंदगी मे कुछ कर दिखाये. भले ही कम उम्र में शादी करके उनसे गलती हुई लेकिन बहु के रूप में वह मीना को स्वीकार करना चाहते हैं. लेकिन सही उम्र और सही वक्त पर. उनके ससुराल वाले अब बाल विवाह के खिलाफ है. मीना की जिंदगी से जुड़े जितने लोग हैं अब समझते है बाल विवाह एक अपराध तो है ही पर इसके कारण बच्चों की जिंदगी भी बर्बाद हो जाती है. बाल विवाह बहुत पुरानी परंपरा है.

सरकार ने इसके लिए कई योजनाएं बनायी पर आकड़े बताते हैं कि आज भी झारखंड में लगभग 50 फीसदी बाल विवाह होते हैं. इसका कारण अशिक्षा और गरीबी है. अभिभावकों के पास उम्र का कोई प्रमाण नहीं होता. उन्हें जब भी महसूस होता है कि उन्हें शादी कर देनी चाहिये कर देते हैं. मीना जैसी लड़कियां आज समाज के लिये बहुत बड़ा उदाहरण है जो बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाती हैं इतना हीं नहीं सरकारी और गैरसरकारी संस्थाएं बाल विवाह को रोकने का हरसंभव प्रयास कर रहीं हैं. बाल विवाह जैसी कुरीतियों को रोकने के लिये मीना जैसा  प्रभावशाली व्यक्तित्व की आज जरूरत है. मीना जैसी साहसी लड़की न सिर्फ अपने परिवार की हिम्मत है बल्कि उनके आसपास का भी समाज भी उन्हें अब अपना आदर्श मानने लगा है.