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झारखण्ड: न्याय से वंचित है डोली मजदूर मोतीलाल बास्के का परिवार

‘मेरे पति की हत्या 9 जून 2017 को सीआरपीएफ कोबरा ने 11 गोली मारकर कर दी और उन्हें एक दुर्दांत माओवादी घोषित कर दिया। जबकि वे पारसनाथ पर्वत पर चावल-दाल का छोटा सा दूकान चलाते थे और जैन धर्मावलम्बिायों को पर्वत वंदना कराने के लिए डोली मजदूर का काम भी करते थे। उनकी हत्या के बाद मेरे घर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन, बाबूलाल मरांडी समेत कई नेता आए और सभी ने मुझे न्याय दिलाने का वादा किया था। आज तो हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री भी बन चुके हैं, लेकिन अब तक हमें न्याय नहीं मिला। मुझे उम्मीद है कि हेमंत सोरेन ने उस समय मेरे घर में आकर मुझसे जो वादा किया था, वो जरूर पूरा करेंगे’ ये कहना है मोतीलाल बास्के की पत्नी पार्वती मुर्मू का।

उनकी आंखों में मुझे उम्मीद दिखती है। वैसे तो उनकी आंखों के आंसू सूख चुके हैं, लेकिन उनके चेहरे पर एक अजीब सी कठोरता उभर आयी है। उनके पति की हत्या के दो साल 8 महीने गुजर चुके हैं, इस बीच में वे अपने बच्चों व पति के साथियों के साथ मधुबन से लेकर गिरिडीह व रांची में कई बार हुए प्रदर्शनों में शामिल भी हो चुकी है। उस समय झारखंड के विपक्षी नेताओं ही नहीं बल्कि सत्ता में शामिल ‘आजसू’ के नेताओं ने भी कई बार उनके गांव में आकर उनके पति को निर्दोष करार दिया था और उनके पति की हत्या की न्यायिक जांच के साथ-साथ हत्यारे सीआरपीएफ कोबरा को सजा दिलाने व उनके आश्रितों को नौकरी दिलाने की बात कही थी। मगर आज तक उन्हें कुछ भी नहीं मिला। उस समय विपक्ष में बैठे नेता आज झारखंड की सत्ता में आ चुके हैं, लेकिन नयी सरकार ने भी पार्वती मुर्मू का अबतक खयाल नहीं किया है।

सरकार के इस रवैये पर मोतीलाल बास्के का बड़ा बेटा निर्मल बास्के कहता है कि ‘अब तो हमारे आदिवासी हेमंत सोरेन की सरकार है, लेकिन ये सरकार भी क्या कर रही है, कुछ पता नहीं चल रहा है। हमलोगों ने बड़ी उम्मीद से इन्हें वोट किया था कि ये जीतेंगे, तो हमें न्याय मिलेगा और जब ये हमारे घर आये थे, तब इन्होंने हमें न्याय दिलाने का वादा भी किया था। हम हेमंत सोरेन से मांग करते हैं कि मेरे पापा के हत्यारे पुलिस-प्रशासन को जेल में बंद करे और फांसी दे साथ ही हमें नौकरी व मुआवजा भी मिलना चाहिए।’ जब इनके पिता की हत्या हुई, तो उस समय निर्मल आठवीं में पढ़ता था। पिता की मृत्यु के बाद इसकी पढ़ाई छूट चुकी है। यह अभी पारसनाथ पर्वत पर उसी दूकान को चलाता है, जो कभी इसके पिताजी मोतीलाल बास्के चलाया करते थे। निर्मल की कमाई से ही इनका परिवार चलता है। इनके दो छोटे जुड़वां भाई अभी तीसरी कक्षा में है। यह बताते हैं कि ‘पापा की हत्या के बाद सारी जिम्मेवारी मेरी मां के कंधे पर ही आ गई।
 
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