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झुमरा : बारूद की गंध की जगह फसल की खुशबू

देश में बाेकाराे के जिस झुमरा पहाड़ की चर्चा बारूदी सुरंग विस्फोट व मुठभेड़ों के लिए होती थी, वह झुमरा अब बदल गया है. टूटी-फूटी सड़कों की जगह अब पक्की सड़क पर चार घंटे का सफर 17 मिनट में तय होने लगा है. नक्सलियों की जनसभा की जगह अब महिला गोष्ठी अौर क्रांतिकारी गीत की जगह रोपा के गीत गूंजने लगे हैं. बच्चों के चेहरे पर दहशत नहीं, खुशी है. स्कूलों में बेटों से ज्यादा बेटियों की संख्या बढ़ी है.

झुमरा से लौट कर जीवेश

jivesh.singh@prabhatkhabar.in

गुड मॉर्निंग सर, झुमरा में आपका स्वागत है. हम सब राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, झुमरा पहाड़ के बच्चे यहां आपका स्वागत करते हैं. दर्जनों बच्चों द्वारा एक साथ किये गये इस अभिवादन से चौंक गया. झुमरा पहाड़ पर किसी के साथ यह पहली मुलाकात थी. दरी पर लाइन में बैठे ये बच्चे कक्षा तीन के विद्यार्थी थे. खास बात यह कि बच्चों में लड़कियों की संख्या ज्यादा थी. फिर तो एक के बाद एक आठवीं कक्षा तक घूमा. सभी में साफ-सुथरे कपड़ों में शांतिपूर्वक पढ़ते या बैठे बच्चों की टोली.

हर वर्ग में लड़कियों की संख्या अधिक. कमरों की कमी के कारण एक कमरे में दो-दो क्लास के बच्चे, पर कहीं कोई हंगामा नहीं. लगभग सभी के माता-पिता मजदूर व किसान. वर्ग पांच का वीरेंद्र कुमार कक्षा का सबसे तेज विद्यार्थी है. कुछ पूछना हो, तो सभी सहपाठी उससे राय लेते हैं. वीरेंद्र को खाली पैर देख, पूछ बैठा, तो उसने कहा : जल्द उसके पिता खरीद कर लायेंगे. पता चला कि वह पांच भाई है. उसके पिता बाबूनाथ महतो मजदूर हैं. आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं, पर बच्चों को पढ़ाने व उनके लिए किताब-कॉपी खरीदने में वह कोई कमी नहीं करते. स्कूल तीन पारा शिक्षक मोहनलाल महतो, देवचरण महतो व प्रेमकुमार महतो के भरोसे चल रहा है. 117 बच्चे नामांकित हैं. इनमें से 90-95 बच्चे प्रतिदिन आते हैं. इसके अलावा आंगनबाड़ी केंद्र के भी 12 से 15 बच्चे रोज स्कूल आते हैं. प्रभारी प्राचार्य मोहनलाल महतो बताते हैं कि बच्चों की पूरी उपस्थिति रोज रहती है अौर यहां से बच्चे पास कर दूसरे स्कूलों में जाकर पढ़ते हैं.

बदल गया है सोचने का तरीका, पहली बहू बीए पास : मोहनलाल महतो बताते हैं कि पहली बार 2006 में मोबाइल देखा था, पर 2007 से इस्तेमाल करते हैं. झुमरा एक्शन प्लान के तहत सड़क बन जाने से पहले जहां घोड़ों के सहारे घंटों में 11 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ से नीचे उतरते थे, वहीं अब मोटरसाइकिल व भाड़े की चलनेवाली गाड़ी से कुछ देर में ही नीचे उतर जाते हैं. पहले यहां 80-90 घोड़े थे, जिनके सहारे खेती अौर जीवन था. अब लगभग 90 मोटरसाइकिल है. झुमरा व नीचे तलहटी में रहावन में पुलिस कैंप होने से जिंदगी बदल गयी है. पहले जहां गोली-बारूद अौर मुठभेड़ के लिए इलाके की चर्चा होती थी, वहीं अब पढ़ाई, खेती अौर शांति के लिए भी झुमरा जाना जाने लगा है. इलाके में बिजली होने व कैंप में माेबाइल टावर होने से लोगों को देश-दुनिया से जुड़ने में आसानी हो गयी है.

बिजली रहती है या नहीं, पूछे जाने पर कहते हैं कि गांव के लोग हर माह पहाड़ से नीचे जाकर गोमिया में बिजली का बिल भरते हैं. इस कारण बिजली कटती नहीं. मोहनलाल गर्व से कहते हैं कि अब गांव के पांच लड़के व चार लड़कियां स्नातक पास हैं. खुद उनके स्कूल के बच्चे नाैवीं व उसके आगे की पढ़ाई के लिए पहाड़ से नीचे आवासीय विद्यालयों में पढ़ने जाते हैं. शादी की बात पर कहते हैं कि पहले तो अच्छे घर से रिश्ते नहीं आते थे, पर अब तो अच्छे घर से भी रिश्ते आने लगे हैं. बताते हैं कि गांव में पहली स्नातक पास बहू भी आ गयी है. गांव के लालमोहन महतो की शादी रामगढ़ में हुई है. उनकी पत्नी स्नातक तक पढ़ी है.
अब ठीक है, कमाई बढ़ी है

थोड़ी ही दूर पर मोबाइल से गाना सुनते हुए पत्नी (सोहद्री देवी) संग खेत में काम करते हुए गणेश महतो मिले. उनके खेत में प्याज, गेहूं, टमाटर, मिर्च व अन्य फसल लगी है. पूछने पर कहते हैं : सड़क व इलाके में शांति होने से फायदा हुआ है. मनरेगा से कुआं मिलने के बाद खेती में फायदा बढ़ गया है. सड़क होने के कारण फसल नीचे बाजार में ले जाते हैं अौर अच्छे दाम पर बिक भी जाता है. पहले ले जाने में दिक्कत होती थी.

आवासीय स्कूल हो

खेत में मेड़ बना रही सोहद्री देवी पुलिस कैंप व सड़क के कारण होनेवाले फायदे से खुश हैं, पर उनकी चिंता कुछ और है. उनको तीन बेटा अौर एक बेटी है. दो बच्चे झुमरा के स्कूल में पढ़ते हैं. बाकी केदला में आवासीय स्कूल में पढ़ते हैं. इस कारण वह बच्चों से दूर हो गयी हैं. बच्चों की पढ़ाई छुड़वा नहीं सकती. उनके बच्चे अच्छा करें, यही उनका सपना है. वह चाहती है कि झुमरा में भी हाई स्कूल हो, तो फायदा होगा. यह भी चाहती है कि उनकी बेटी अफसर बने.

सिंचाई की अौर सुविधा बढ़े

गांव के अच्छे किसान हैं विश्वेश्वर महतो. कहते हैं : खेती की कुछ सुविधाएं अौर मिलें, तो ज्यादा फायदा हो. बीज व खाद की सुविधा हो. सिंचाई के साधन बढ़ें. श्री महतो कहते हैं कि हम मेहनत से नहीं हिचकते, पर थोड़ी सुविधा अौर हो तो फायदा होगा.
कैसे आया बदलाव

झुमरा पहाड़ पर्यटन के दृष्टि से महत्वपूर्ण है. प्रचंड गरमी में भी यहां चादर की जरूरत होती है. अंगरेज यहां गरमियों में रहते थे. अभी भी उनके महल का अवशेष है. महत्वपूर्ण होेने के बाद भी यह इलाका सरकारी तौर पर उपेक्षित रहा. इस कारण इसे नक्सलियों ने अपना सुरक्षित क्षेत्र बना लिया. यहीं से ग्रामीणों का संकट शुरू हुआ. नक्सली उन्हें अपने साथ ले जाते थे. नहीं जाने पर मार डालते थे. पुलिस आती नहीं थी. आती भी थी तो ग्रामीणाें को ही मारती थी या जेल भेज देती थी. नेता, अधिकारी या पुलिस की चहलकदमी चुनाव में ही बढ़ती थी. सामान्य बीमारी से भी मरने की मजबूरी थी. ऐसे में नक्सलियों के सच-झूठ में फंसते गये ग्रामीण. न चाहते हुए भी उनका मौन समर्थक बन गये थे. ऐसे में झुमरा एक्शन प्लान के तहत झुमरा पर काम शुरू हुआ.

पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश खुद झुमरा गये. नक्सलियों के काफी विरोध के बाद भी दो पुलिस कैंप की स्थापना हुई. झुमरा पहाड़ पर स्थायी हेलीपैड भी बनाया गया. दोनों ही कैंप में सीआरपीएफ, जैप व जिला बल के जवानों की तैनाती हुई. पुलिस की गतिविधियों ने नक्सलियों को पीछे धकेला. दूसरी अोर विकास के काम भी शुरू हुए. स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण शुरू हुआ. मनरेगा के तहत कई काम हुए. लगभग 18 करोड़ की लागत से बनी सड़क के कारण आवाजाही की सुविधा बढ़ी. शहर से कनेक्शन भी बढ़ा. इस वजह से ग्रामीणों के मन से नक्सलियों का भय कमा. शासन के प्रति विश्वास बढ़ा. डीसी स्तर के अधिकारी भी झुमरा जाने लगे. विकास व शांति की बातें होने लगी, तो ग्रामीण भी उसके साथ कदमताल करने लगे अौर इस तरह बदलता गया झुमरा.

महिलाएं आयी आगे

जब शांति हुई, तो घर की महिलाओं ने भी विकास की बागडोर संभाली. सबने मिल कर महिला समिति की नींव डाली. आज इसके 11 सदस्य हैं. ये महिलाओं के बीच जागरूकता फैलाती है. खास कर बच्चियों की पढ़ाई पर ज्यादा बल दिया जाता है. नतीजा है कि गांव की अधिकतर लड़की स्कूल जाती है.

स्कूल के लिए दी अपनी जमीन

झुमरा में पुलिस कैंप के लिए स्कूल ले लिया गया. इसके बाद बच्चों की पढ़ाई बंद हो गयी. इससे चिंतित गांववालों ने खुद कुछ करने की बात सोची. बैठक के बाद गांव के ही दीपनारायण महतो व मोहनलाल महतो ने अपनी जमीन दी, जिसमें सरकार ने स्कूल का नया भवन बनवाया. अभी भी यह निर्माणाधीन है.

क्यों झुमरा का था आतंक

लगभग 45 किलोमीटर में फैला झुमरा पहाड़ एक समय में नक्सलियों का केंद्रीय जोन था. सघन जंगल से घिरे इस पहाड़ पर चढ़ने के लिए भी पहले रास्ता नहीं था. इस कारण यहां कैंप चलाने में नक्सलियों को आसानी होती थी. विकास कार्य नहीं होने के कारण बाहरी दुनिया से कटे ग्रामीणों की भी मजबूरी थी इन्हें समर्थन देना. यहां कन्हाई चटर्जी व चारू मजूमदार सहित कई बड़े नक्सली नेता कैंप कर चुके हैं. इलाका दुर्गम होने व साधन के अाभाव में जब भी पुलिस जाती थी, तो फंस जाती थी. नक्सली आराम से घटना को अंजाम देकर किसी भी अन्य राज्य या जिले में भाग जाते थे. इस कारण झुमरा का आतंक कायम था.

सरकार की एक पहल ने माहौल बदल दिया

केदला तीन नंबर (रामगढ़ जिला) से जब झुमरा के लिए चला, तो मन में कई तरह के सवाल थे. पुरानी घटनाएं व सुनी-सुनाई बातें मन में उमड़-घुमड़ रही थी. टूटी-फूटी सड़कों से होता हुआ रहावन पहुंचा. वहां पुलिस कैंप देख थोड़ी राहत मिली, पर आगे बढ़ते ही पंचमो के पंचायत भवन का खंडहर दिखा. इसे नक्सलियों ने पिछले वर्ष उड़ा दिया था. पास में रहनेवाली रतनी देवी ने बताया कि कभी-कभी पुलिस वहां रुकती थी, इसीलिए उसे उड़ा दिया गया. आगे बढ़ता रहा. जटइयाटांड़, पन्नाटांड़, भोलाथान, रेडियाम व जमनी जाड़ा होता हुआ झुमरा पहाड़ पर पहुंचा. जंगल व सन्नाटे के बीच जो सबसे ज्यादा राहत देनेवाली बात थी, वह थी पक्की सड़क का होना. पहले जहां केदला से झुमरा तक 10 किलोमीटर की दूरी तय करने में तीन से चार घंटे लगते थे, हम सिर्फ 17 मिनट में पहुंच गये.

झुमरा में लोगों के उत्साह अौर मेहनत ने यह साफ कर दिया कि अब झुमरा कहानियोंवाला झुमरा नहीं रहा, अब यहां के लोग अपनी मेहनत के बल अपनी किस्मत लिख रहे हैं. सरकार की एक पहल ने माहौल बदल दिया. जरूरत इस बात की है कि अब चर्चा बदलाव पर हो, कहानियों पर नहीं.

(साथ में गोमिया से नागेश्वर महतो व बेरमो से राकेश वर्मा)