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झुलसी महिलाओं को नयी जिंदगी

एक बार आग से जल जाने या झुलस जाने के बाद अमूमन जिंदगी पहले जैसी नहीं रह जाती है. शरीर का अगला हिस्सा या चेहरा जल जाये तो आत्मविश्वास डोल जाता है. यह हादसा महिलाओं के साथ हो जाये तो होनेवाली पीड़ा की सिर्फ कल्पना ही डरा देनेवाली है. चेन्नई में एक रेस्टोरेंट ऐसा है, जो ऐसी पीड़िताओं को नौकरी दे कर उनमें आत्मविश्वास भरने का काम कर रहा है. पढ़िए एक रिपोर्ट.

 



आत्मा की जिंदगी बड़े कष्ट से गुजर रही थी. मुश्किलें बढ़ती ही जा रही थीं. एक दिन की बात है, उसके मन में यह ख्याल आया कि अब और जीने का कोई मतलब नहीं है. उसने अपने देह में आग लगा ली. संयोगवश, वह जीवित बच गयी, लेकिन चेहरे और जिस्म पर आग के दाग जिंदगी भर के लिए रह गये. इस घटना के बाद उसके मन में फिर से जीने की चाह पैदा हो गयी. आज आत्मा अपना जीवन ठीक से गुजर-बसर कर रही है. वह चेन्नई के राइटर्स कैफे की रसोई में पास्ता बनाने का काम करती है.

 

 



इस कैफे में वह अकेली ऐसी युवती नहीं है. दिसंबर, 2016 में खुले इस कैफे में और भी ऐसे कर्मचारी हैं, जिन्हें आग से जलने के बाद नया जीवन मिला है.
ये सब इस कैफे की रसोई संभालती हैं. इन्हें इस काम के लिए पेशेवर लोगों द्वारा प्रशिक्षित किया गया है.एम महादेवन इस कैफे के संचालक हैं. यह उनकी कल्पना का परिणाम है. महादेवन अगलगी की शिकार महिलाओं को नया जीवन देना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने प्रीवेंशन इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर क्राइम प्रीवेंशन एंड विक्टिम केयर (पीसीवीसी) के साथ करार किया है.

 

 



कुछ दिन पहले जब महादेवन ने पीसीवीसी का दौरा किया था और वहां कई पीड़ितों से मुलाकात की थी, तभी उनके मन में इन महिलाओं के लिए कुछ करने का ख्याल आया. करन नानावलन इस कैफे के शेफ और यूनिट हेड हैं. वह कहते हैं कि- ‘हम उन्हें नयी जिंदगी देना चाहते हैं. शरीर, खास तौर पर चेहरा जल जाने की वजह से उन्हें नयी नौकरी मिलने में परेशानी होती है. हम उन्हें यहां न सिर्फ नौकरी देते हैं, बल्कि उन्हें भोजन पकाना और बनाना भी सिखाते हैं. हमारे यहां उनमें से कोई पिज्जा एक्सपर्ट है तो कोई कन्फेक्शनरी एक्सपर्ट की भूमिका में हैं.'

 

 

 


यह पहला पाइलट बैच है. इस बैच में सात महिलाएं हैं. जो भी अग्निपीड़िता राइटर्स कैफे के लिए चयनित होती है, उन्हें तीन महीने का प्रशिक्षण दिया जाता है. राइटर्स कैफे विनर्स बेकरी के नाम से एक सीएसआर प्रोजेक्ट भी चलाता है. इसमें भी अग्निपीड़िताओं के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाता है.

 

 



प्रशिक्षण के बाद अगर ये नौकरी के लिए रुकना चाहती हैं तो इन्हें स्थायी तौर पर नौकरी दी जाती है. प्रशिक्षण के लिए रसोई का कौशल आना जरूरी नहीं होता है. उनमें बस इच्छाशक्ति होनी चाहिए. प्रशिक्षण का काम तीन महीने के साथ खत्म नहीं होता है, बल्कि जारी रहता है. चूंकि कैफे का मेन्यू स्विटजरलैंड के भोजन से प्रभावित है, इसलिए प्रशिक्षक भी उसी इलाके से आते हैं, ताकि असली स्विश डिशेज बनाने का कौशल सिखा सकें.

 

 



राइटर्स कैफे सुबह नौ बजे खुलता है और रात 10.30 बजे बंद होता है. कैफे में औसतन 100 ग्राहक हमेशा रहते हैं. अग्निपीड़िताओं में से एक मंजुला 42 वर्ष की है. वह पूरे उत्साह से अपने काम में लगी रहती है. वह बताती है-‘यहां काम करके एक आत्मिक सुख मिलता है. हम सब यहां अपनी पुरानी तकलीफें भूल गयी हैं. यहां ऐसा लगता है जैसे हमलोग सब कुछ कर सकते हैं. हमारे अंदर एक आत्मविश्वास आ गया है, जो पहले नहीं था हमारे अंदर. हमें इतनी आजादी मिली हुई है यहां कि हम बयां नहीं कर सकते.'

 

 



मंजुला अपनी पिछली जिंदगी के बारे में नहीं बात करना चाहती है. न ही अपनी ससुराल और अपने पति के बारे में कुछ बताना चाहती है. अतीत की बातें अतीत में ही रहें तो बेहतर, ऐसा सोचती है मंजुला. वह कहती है- ‘हमलोगों ने यहां नूडल्स, पफ और सूप बनाना सीखा है. यहां बहुत मजा आता है. उन्होंने हमें मौका दिया है. हम पर भरोसा किया है. हममें से कोई भी इस नौकरी को छोड़ने में रुचि नहीं रखता है.'

 

 



करन को अपने काम में गौरव महसूस करता है. वह बताते हैं -‘कैफे को खुले अभी महीना भर से कुछ अधिक हुआ है, फिर भी लोगों की प्रतिक्रिया देख कर अभिभूत हूं. ऐसे ग्राहक भी दिख रहे हैं, जो दोबारा-तिबारा भी आ रहे हैं.' यह उद्यम मुनाफा कमाने के उद्देश्य से नहीं शुरू किया गया है. असली मकसद अग्निपीड़िताओं को पुनर्वासित करना है. आत्मा और मंजुला जैसी महिलाओं के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं है, जिसने इन सबकी जिंदगी में बहार ला दिया है.
(इनपुट: द बेटरइंडिया डॉट कॉम)