Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/झूठ-का-एहतराम-सच-रामराम-अनिल-रघुराज-10243.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | झूठ का एहतराम, सच रामराम-- अनिल रघुराज | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

झूठ का एहतराम, सच रामराम-- अनिल रघुराज

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः, मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय. धृतराष्ट्र ने पूछा और संजय सारा कुछ बताते गये कि महाभारत के धर्मयुद्ध में क्या-क्या धर्म-अधर्म हुआ. श्रीकृष्ण तक के छल और युधिष्ठिर तक के अर्धसत्य का वर्णन उन्होंने किया. फिर भी पांडव अंततः जीत गये. 

लेकिन बाजार की कोई कितनी भी आलोचना कर ले, वहां झूठ का तिलिस्म ज्यादा नहीं चलता. याद करें, करीब सात साल पहले जब 7 जनवरी, 2009 को सत्यम कंप्यूटर्स के संस्थापक व चेयरमैन रामलिंगा राजू को खुलासा करना पड़ा कि उन्होंने कंपनी की बैलेंस शीट में 7,800 करोड़ रुपये की झूठी एंट्री की है, तो उसका शेयर दो दिन में करीब 94 प्रतिशत टूट गया. चंद महीनों में ही उस कंपनी का नाम मिट गया और राजू को जेल की हवा खानी पड़ी.

बाजार में झूठ बोलने का क्या हश्र होता है, इसके नये-पुराने सैकड़ों किस्से देश-विदेश में हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि बाजार आधारित अर्थव्यवस्था को केंद्र में रख कर चलनेवाली सरकारों का झूठ खुदा-न-खास्ता किसी दिन खुल गया तो क्या होगा? यह बेहद संजीदा प्रश्न है और हर जागरूक देशवासी को इस पर चौकन्ना रहना चाहिए. धर्मयुद्ध में अधर्म चल सकता है. राजनीति में झूठ चल सकता है. विज्ञापनों में तो ज्यादातर झूठ ही चलता है. किसी अभिनेता को घोड़े पर दौड़ा कर इलायची के दाने में केसर का स्वाद डाल दिया जाता है. लेकिन ग्लोबल हो चुकी दुनिया में झूठे या संदिग्ध आर्थिक आंकड़ों का डंका बजाना समूचे देश के लिए बहुत भारी पड़ सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 मई को अपनी सरकार के दो साल पूरा करने पर सहारनपुर की विकास पर्व रैली में ललकारा कि केंद्र सरकार की निगरानी में गन्ना किसानों का बकाया 14,000 करोड़ रुपये से घटा कर 700-800 करोड़ रुपये पर लाया जा चुका है. लेकिन लखनऊ के गन्ना आयुक्त कार्यालय के मुताबिक, उसी तारीख तक राज्य की मिलों पर गन्ना किसानों का 5,795 करोड़ रुपये बकाया है. 

चुनावी माहौल बनाने के लिए बकाया को लगभग आठ गुना कम बताना चलता है. इधर भाजपा-नीत एनडीए सरकार दस-पंद्रह दिन से बताये जा रही है कि देश बदल रहा है. अबकी बार, जन-जन का उद्धार, युवाओं को अवसर अपार, मिटा भ्रष्टाचार, किसान विकास में भागीदार, विकास ने पकड़ी रफ्तार, बढ़ा कारोबार, इकोनॉमी बेमिसाल.

जमीनी हकीकत जो भी हो, लेकिन अपना ऐसा बखान हर पार्टी व सरकार करती है. चलता है. स्वच्छ भारत अभियान में 1.92 करोड़ शौचालय बनवा डाले, लेकिन राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन की रिपोर्ट कहती है कि अधिकांश में पानी या निकासी की व्यवस्था ही नहीं है. यह अर्धसत्य भी चलता है. लेकिन जिस आंकड़े के दम पर भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है, उसमें कोई विसंगति नहीं चलती. वह भी जब महज एक तिमाही में यह विसंगति 1.43 लाख करोड़ रुपये की हो. इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता, क्योंकि इसे खुद सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने जारी किया है. 

उसने बीते हफ्ते मंगलवार, 31 मई को जारी आंकड़ों में बताया है कि जनवरी से मार्च 2016 की तिमाही में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2011-12 की स्थिर कीमतों पर 7.9 प्रतिशत की दर से बढ़ा है. अगर मौजूदा कीमतें ली जायें, तो यह विकास दर 10.4 प्रतिशत हो जाती है. वहीं, पूरे वित्त वर्ष 2015-16 में हमारा जीडीपी 2011-12 की स्थिर कीमतों पर 7.6 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि मौजूदा कीमतों पर 8.7 प्रतिशत. इतनी विकास दर वाकई किसी देश की नहीं है. चीन फिलहाल 6.8 और 6.9 प्रतिशत पर अटका है.

लेकिन सीएसओ का ही आंकड़ा बताता है कि मार्च 2016 की तिमाही में देश के 30.12 लाख करोड़ रुपये के जीडीपी में सबसे ज्यादा 55.35 प्रतिशत का योगदान निजी अंतिम खपत खर्च (पीएफसीइ) का रहा है. इसके साथ ही उसने जीडीपी में 1.43 लाख करोड़ रुपये की ‘डिस्क्रेपैंसी' जोड़ी है. मार्च 2015 की तिमाही में यह ‘डिस्क्रेपैंसी' 29,933 करोड़ रुपये ही थी. 

इस तरह ‘डिस्क्रेपैंसी' 1.13 लाख करोड़ रुपये बढ़ गयी है. वहीं, इस दौरान निजी अंतिम खपत खर्च 1.27 लाख करोड़ रुपये बढ़ा है. इन्हीं दोनों के अहम योगदान के कारण जनवरी-मार्च 2016 के दौरान 2.41 लाख करोड़ रुपये जीडीपी बढ़ा है. अजीब बात यह है कि सीएसओ ने अपनी 14 पन्नों की विज्ञप्ति में कहीं भी नहीं बताया है कि यह ‘डिस्क्रेपैंसी' क्या है. इसे अपनी भाषा में विसंगति कहते हैं और अर्थशास्त्र की भाषा में सांख्यिकी विसंगति को सकल घरेलू आय (जीडीआइ) और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का अंतर माना जाता है.

इस विसंगति को हटा दें, तो हमारे जीडीपी के बढ़ने की दर बीते वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में 7.9 प्रतिशत के बजाय मात्र 3.9 प्रतिशत ही रह जाती है. वहीं, पूरे वित्त वर्ष में हमारा जीडीपी 7.98 लाख करोड़ रुपये बढ़ा है, जिसमें से 2.15 लाख करोड़ रुपये (26.9 प्रतिशत) का योगदान इस ‘डिस्क्रेपैंसी' या विसंगति का है. इसका असर हटा दें, तो सालाना विकास दर 7.6 प्रतिशत के बजाय 5.71 प्रतिशत रह जायेगी.

इस पर देशी अर्थशास्त्रियों के अलावा गोल्डमैन सैक्श जैसी विदेशी संस्थाओं ने भी सवाल उठाये हैं. सवाल तो निजी खपत के भी बढ़ने पर उठाये गये हैं. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का कहना है कि उपभोक्ता खपत भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य संचालक है. जीडीपी में इसका 55 प्रतिशत योगदान है. लेकिन जीडीपी का लगभग 47 प्रतिशत गांवों से आता है और उपभोक्ता मांग में ग्रामीण भारत 54 प्रतिशत योगदान देता है. जब दो सालों से सूखा पड़ा हो, तो निजी खपत इतनी कैसे बढ़ सकती है? कुछ विशेषज्ञों ने अनाज के बढ़े-चढ़े उत्पादन पर भी सवाल उठाये हैं.

सवाल यह भी है कि जब देश का निर्यात लगातार 17 महीनों से घट रहा है, सकल स्थायी पूंजी निर्माण ऋणात्मक है, निवेश 17,000 करोड़ रुपये कम रहा हो, तब इन आंकडों से कैसे उत्साहित हुआ जा सकता है. आइटी कंपनियों तक ने नयी नियुक्तियां रोक दी हैं. ताजा खबर यह है कि मई में देश की अर्थव्यवस्था में 62 प्रतिशत का योगदान करनेवाले सेवा उद्योग की विकास दर छह महीनों के न्यूनतम स्तर पर आ गयी है.