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ठंड में कहां जाएं गरीब व बेसहारा

दुनिया के ज्यादातर देशों में लोकतंत्र है और जहां नहीं हैं वहां लोकतंत्र बहाली के आंदोलन चल रहे हैं क्योंकि सैद्धांतिक तौर पर लोकतंत्र में व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा को सर्वाधिक महत्व प्राप्त है। लेकिन, आधुनिक लोकतंत्र को सर्वाधिक आकर्षक बनाने वाली यही बात उसे अंतर्विरोधी भी बनाती है। किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह की आजादी के मूल्य को ज्यादा तरजीह दी जाय तो वह शेष व्यक्तियों की आजादी, आपसी बराबरी और भाईचारे में बाधक बन जाती है। ऐसे में लोकतंत्र की बुनियादी मान्यता यानि हरेक व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा की स्थापना का मूल्य क्षतिग्रस्त होता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के इस अंतर्विरोध को स्वयंसेवी संस्था ऑक्सफैम की एक नई रिपोर्ट के तथ्यों ने बड़ी खूबी से उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की कुल आबादी 7 अरब और कुल दौलत 241000 अरब डॉलर है लेकिन, दुनिया की कुल दौलत में दुनिया की कुल आबादी का हिस्सा हैरतअंगेज गैर-बराबरी से भरा हुआ है। दुनिया की 46 फीसदी यानि 110000 अरब डॉलर दौलत पर दुनिया के सर्वाधिक धनी लोगों में शुमार 1 फीसदी लोगों की मिल्कियत है। दुनिया के महज 85 लोगों के पास मौजूद दौलत विश्व की आधी आबादी की कुल संपत्ति से कहीं ज्यादा है। आज विश्व के हर दस व्यक्ति में सात उन देशों के निवासी हैं जहां गैर-बराबरी बीते तीस सालों में सबसे ज्यादा तेज गति से बढ़ी है।भारत का ही उदाहरण लें तो देश में खरबपतियों की संख्या बीते एक दशक में 6 से बढ़कर 61 हो गई है और 1 अरब 21 करोड़ लोगों के देश भारत में मात्र 61 लोगों के पास कुल 250 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति है। बीते एक दशक में यह गैर-बराबरी भारत में इतनी तेजी से बढ़ी है कि अगर साल 2003 में देश की कुल संपत्ति में सर्वाधिक धनी लोगों का हिस्सा 1.8 फीसदी था तो पाँच साल बाद साल 2008 में बढ़कर यह 26 फीसदी हो गया। गैर-बराबरी के तथ्यों को उजागर करती रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब नई वैश्विक अर्थव्यवस्था की पक्षधर रहे वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम की बैठक दावोस में होने वाली है। फोरम ने खुद भी इस दफे की बैठक का मुख्य विषय बढ़ती हुई आर्थिक-असमानता को ही बनाया है। विश्व के थोड़े से लोगों के हाथ में अधिकतम आर्थिक संसाधनों का केंद्रित होना शांतिपूर्ण विश्व-व्यवस्था के लिए खतरा है। दुनिया के ज्यादातर लोग आर्थिक गैर-बराबरी के कारण राजनीतिक धरातल पर बंटते जा रहे हैं और बढ़ते हुए सामाजिक तनाव की वजह से विश्व में सामाजिक व्यवस्थाओं के भंग होने का खतरा बढ़ता जा रहा है।