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डगमगाने लगा आर्थिक विकास दर पर भरोसा

नई दिल्ली। नोटबंदी के 36 दिनों के बाद दुनिया की रेटिंग एजेंसियों, आर्थिक मामलों पर सलाह देने वाली एजेंसियों और अधिकांश अर्थविदों में यह आम राय बनती जा रही है कि इस फैसले से कम से चालू साल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को बड़ा झटका लग सकता है।

कुछ एजेंसियों ने तो इस बात के संकेत देने लगी है कि वर्ष 2016-17 में भारत की आर्थिक विकास दर की रफ्तार घटकर छह फीसद के करीब रह सकती है। पिछले दो दिनों के भीतर स्टैंडर्ड एंड पुअर्स, बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच और एशियाई विकास बैंक ने नोटबंदी और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को लेकर जो रिपोर्ट जारी की हैं, उसे किसी भी तरह से उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता है। ऐसे में सभी की निगाहें अगले महीने आर्थिक विकास दर को लेकर जारी होने वाले आंकड़ों पर हैं।

कुछ माह पहले भारत की विकास दर के अनुमान को लेकर अधिकांश एजेंसियों की राय थी कि यह 7.5 फीसद या इससे ऊपर रहेगी। लेकिन अब एशियाई विकास बैंक ने कहा है कि यह 7 फीसद के आसपास रहेगी।

आर्थिक सलाहकार एजेंसी नोमुरा ने तीसरी तिमाही के लिए विकास दर के अनुमान को घटाकर 6 फीसद कर दिया है जबकि पूरे वित्त वर्ष के लिए 6.8 फीसद कर दिया गया है। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चालू तिमाही में तो विकास दर घटकर 5.6 फीसद रह जाएगी।

स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की तरफ से बुधवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी का असर भारत की पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। आर्थिक विकास दर के पटरी पर लौटने में वक्त लगेगा। सनद रहे कि भारतीय रिजर्व बैंक ने भी पिछले हफ्ते आर्थिक विकास दर के अनुमान को घटा दिया था।

आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि नोटबंदी लागू होने के बाद बैंकों से कर्ज लेने की रफ्तार और घटी है। वैसे बैंकों से कर्ज लेने के आंकड़े लंबे समय से कोई उत्साहजनक तस्वीर पेश नहीं कर रहे हैं। लेकिन 25 नवंबर, 2016 को समाप्त पखवाड़े में बैंकों की तरफ से वितरित होने वाले कर्ज में 0.8 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है जो पिछले कई महीनों के दौरान सबसे खराब स्थिति है।

अगर एक अप्रैल से 25 नवंबर, 2016 की स्थिति देखें तो कर्ज की राशि में तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये की कमी आई है। साफ है कि आम जनता के साथ ही उद्योग जगत भी कर्ज लेने से कतरा रहे हैं। ऐसे में कई एजेंसियों को इस बात का डर है कि नोटबंदी के बाद मांग में कमी का असर कहीं लंबा न खिंच जाए। वैसे कई एजेंसियां यह मान रही हैं कि लंबे समय में नोटबंदी के फैसले से भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर होगा।