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डब्लूएचओ की धौंस में आया स्वास्थ्य मंत्रालय

नई दिल्ली [मुकेश केजरीवाल]। गंभीर बीमारियों से लड़ने वाले प्रतिरोधक टीकों का 'सुरक्षा कवच' अगर स्वास्थ्य मंत्रालय ने तोड़ा तो उसके पीछे विश्व स्वास्थ्य संगठन [डब्ल्यूएचओ] की धौंस भी थी। हालांकि इस संगठन की देश में हैसियत सलाहकार की ही है, लेकिन इसने दरोगाई अंदाज में सरकार को कुछ प्रावधानों का हवाला देकर दवा क्षेत्र के शीर्ष नियामक की मान्यता रद करने की धमकी दे डाली थी। इस धमकी के दबाव में स्वास्थ्य मंत्रालय के अफसरों ने देश भर में टीके पहुंचाने वाली सरकारी कंपनियों पर ही ताला लगा दिया।

टीका बनाने वाली देश की श्रेष्ठतम कंपनियों को दो साल पहले घटिया बता कर इनका लाइसेंस निलंबित करने के मामले की जांच कर रही पूर्व स्वास्थ्य सचिव जावेद चौधरी की समिति ने अपनी रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ की धमकी का जिक्र किया है। डब्ल्यूएचओ ने स्वास्थ्य मंत्रालय को कहा था कि अगर गुणवत्ता के उसके मापदंडों [जीएमपी] का सरकारी कंपनियों में पालन करवाने में कोई कोताही की गई तो वह हिंदुस्तान के औषधि महानियंत्रक की ही मान्यता रद कर देगा। इसका नतीजा यह होगा कि हमारे देश से दवा और टीकों का निर्यात पूरी तरह ठप हो जाएगा। मजे की बात यह है कि पुलिसिया अंदाज में दी गई यह धमकी लिखित नहीं, बल्कि जुबानी ही थी। फिर भी स्वास्थ्य महकमे के अफसर भीगी बिल्ली बन गए।

जांच समिति ने अंतरिम रिपोर्ट में इस पर बेहद आश्चर्य जताया है। उसने सवाल उठाया है कि आखिर डब्ल्यूएचओ भारत के औषधि महानियंत्रक की मान्यता कैसे रद कर सकता है? भारतीय व्यवस्था में वह सर्वोच्च नियामक निकाय है और डब्ल्यूएचओ की भूमिका महज सलाहकार की है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अफसरों को यह छोटी सी बात समझ में नहीं आई। टीका बनाने वाली सरकारी कंपनियों सीआरआई [कसौली], पीआईआई [कुन्नूर] और बीसीजीवीएल [गिंडी] पर प्रतिबंध लगाने के लिए इन अधिकारियों ने जो कारण बताए, उनमें डब्ल्यूएचओ की चेतावनी सबसे अहम है।

जांच समिति के मुताबिक निजी टीका कंपनियां सालाना 500 करोड़ रुपये का निर्यात जरूर करती हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय का कर्तव्य इनके कारोबार की रक्षा करने के बजाय देश में टीकों की कमी होने से रोकना था। ऐसे में मंत्रालय ने सरकारी कंपनियों पर रोक लगाने के लिए डब्ल्यूएचओ के दबाव की जो वजह बताई है, वह फिजूल है। रिपोर्ट ने दवा कंपनियों की जांच प्रक्रिया में डब्ल्यूएचओ के लोगों को शामिल करने के लिए भी स्वास्थ्य मंत्रालय को गलत ठहराया है। इसके मुताबिक औषधि महानियंत्रक की ओर से की जाने वाली जांच में 'डब्ल्यूएचओ की कोई साठ-गांठ' नहीं होनी चाहिए थी। इस जांच समिति में पूर्व स्वास्थ्य सचिव चौधरी के साथ ही मौजूदा सचिव [स्वास्थ्य शोध] वी.एम. कटोच और मंत्रालय के संयुक्त सचिव विनीत चौधरी शामिल हैं। समिति में चौधरी ने मंत्रालय का बचाव करते हुए पूरे मामले के लिए सिर्फ औषधि महानियंत्रक के कार्यालय को ही दोषी ठहराया है।