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डेंगू बुखार में रामबाण है कालमेघ (चिरैता)

बरेली (आशीष सक्सेना) । डेंगू, जापानी इंसेफ्लाइटिस, वायरल या फिर इन दिनों डरा रहा अनजाना बुखार। इनसे हो रही मौत से दहशतजदा लोगों के लिए राहत की उम्मीद जगाने वाली खबर भी है। ऐसी रिसर्च हुई है जो शायद बुखार के शमन में रामबाण साबित हो। यह रिसर्च इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के रिटायर्ड वैज्ञानिक डा.लाखनराम ने की है। उनका दावा है कि मामूली से दिखने वाले कालमेघ पौधे से बुखार ही नहीं कई और गंभीर बीमारियों से भी मुकाबला किया जा सकता है। डा.लाखनराम ने अपना शोधपत्र महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में पढ़ा तो संजीवनी जैसे इस पौधे को जानने की उत्सुकता बढ़ गई। इस शोध पर उन्हें अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। सेमिनार में विदेश के भी विशेषज्ञों ने भागीदारी की जिन्होंने इस मामले पर आगे बात करने को कहा लेकिन डा.लाखनराम इस प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ा सके। एम्स के पूर्व डायरेक्टर ने भी इस शोध की प्रशंसा की।

यह है कालमेघ

कालमेघ का वैज्ञानिक नाम एंडोग्राफिस पैनीकुलेटा है। इसको कल्पनाथ, करियातु, भूनिंब नामों से भी जाना जाता है। एक से तीन फिट ऊंचे इस पौधे में कालमेघिन और एंड्रोग्राफोलिड तत्व पाए जाते हैं। पत्तियां मिर्च जैसी होती हैं। यह भारत के सभी मैदानी इलाकों में आसानी से उगाया जा सकता है। भूमि की कमी है तो उगाने के लिए गमला भी काफी है। देखभाल से इसमें भी यही अच्छी तरह पनपता है।

कई बीमारियों में कारगर

शोध में साबित हुआ है कि इस पौधे के तत्व पीलिया, हेपेटाइटिस, किसी भी तरह के बुखार, कब्ज, कृमि रोग, अल्कोहलिक व न्यूट्रीशनल सिरहोसिस में भी काफी लाभकारी है। यही नहीं यह अच्छा रक्त शोधक है और लीवर को भी बढऩे से रोकता है।

इस तरह होता है प्रयोग

इसके पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल, फूल) चूर्ण एक से तीन ग्राम को स्वरस पांच से दस मिलीलीटर और आधा कप हल्का गुनगुने पानी में चार-पांच बूंद शुद्ध शहद मिलाकर निहार मुंह लेने से फायदा होता है।


आइसीएआर के डायरेक्टर को तीन दिन में किया ठीक

डा.लाखनराम ने बताया कि शोध उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर किया जिसके लिए 2005 से 2007 तक वह जुटे रहे। पौधे के गुणों को परखने के लिए 150 लोगों पर आजमाया भी गया। इसकी चर्चा इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के संस्थानों के स्टाफ में भी रही। उन्होंने बताया कि अंडमान में आइसीएआर के डायरेक्टर रहे डा.आरबी राय और पत्नी विदेश में हेपेटाइटिस की जद में आ गए। उन्हीं दिनों वह तबादला होकर आइवीआरआइ पहुंचे। यहां अस्पताल में भी भर्ती रहे। साथी कर्मचारियों के बताने पर उन्होंने पौधे के गुणों को आजमाया और तीन दिन में वह ठीक हो गए।

डा.लाखनराम, रिटायर्ड साइंटिस्ट : यह पौधा रामबाण साबित हुआ। आम लोगों को महंगे और बेअसर इलाज से परेशान होने की जगह इसे इस्तेमाल करके देखना चाहिए।