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तंबाकू का अर्थशास्त्र- पुष्परंजन

पूरी दुनिया को पता है कि विल्स कंपनी सिगरेट और तंबाकू का कारोबार करती है। अगर कोई विल्स की टी-शर्ट पहने, तो संदेश यही जाता है कि वह इस कंपनी के उत्पाद का प्रचार कर रहा है। ऐसे कई सारे फोटो इंटरनेट पर अब भी मौजूद हैं, जिनमें क्रिकेट के भगवान कहे गए सचिन तेंदुलकर विल्स की टी-शर्ट पहने हुए हैं।

यों भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने पांच-छह साल पहले इसकी घोषणा कर दी थी कि चाहे करोड़ों का नुकसान हो, सिगरेट-शराब का विज्ञापन नहीं करेंगे। तेंदुलकर संभवत: भारत रत्न से नवाजे गए पहले सलेब्रिटी हैं, जो बैटरी तक का विज्ञापन बिंदास होकर करते हैं। यह बात लोगों को खलती है कि भारत रत्न का सम्मान पाए विश्व के इस नामी-गिरामी व्यक्ति को धन की ऐसी क्या कमी है कि बैटरी तक का विज्ञापन नहीं छोड़ता। ‘टोबैको कंट्रोल' नामक एक पत्रिका ने 1927 से 1951 तक के शोध में इसकी सूची दी कि अमेरिका की नामी-गिरामी तंबाकू कंपनियां किस तरह अरबों डॉलर हालीवुड सितारों को विज्ञापन के लिए तैयार करने पर बहा देती थीं। समय बदलने के साथ विज्ञापन के इस पेशे में खिलाड़ियों और दूसरे क्षेत्र के ख्यातिनाम लोगों का दखल होने लगा।

फिलिप मोरिस एक तंबाकू कंपनी है, जो ‘पार्लियामेंट' ब्रांड से सिगरेट बनाती है। ‘पार्लियामेंट' सिगरेट अमेरिका, इजराइल से लेकर सऊदी अरब, रूस, जापान और तुर्की तक में मशहूर है, लेकिन किसी भी देश की संसद ने इस पर आपत्ति नहीं की कि एक सिगरेट का नाम ‘पार्लियामेंट' क्यों होना चाहिए। अमेरिकी एक्टर चार्ली शीन पार्लियामेंट सिगरेट के लिए जमकर विज्ञापन करते रहे। फिर एक दिन शीन ने अचानक सिगरेट के विज्ञापन से संन्यास ले लिया। सिलवेस्टर स्टैलोन को तीन फिल्मों में एक कंपनी का सिगरेट पीते हुए दिखाना था, उसके लिए उसने पांच लाख डॉलर लिए थे। सुपरमैन-टू में महिला रिपोर्टर बनी लोइस लेने, निजी जिंदगी में सिगरेट नहीं पीती थीं, पर ‘मार्लबोरो' सिगरेट पीने के उन्होंने उस फिल्म में चालीस शॉट दिए, और हर शॉट के एक हजार डॉलर लिए।

आयरिश-अमेरिकी अभिनेता पीयर्स ब्रोसनन की पहचान जेम्स बांड के किरदार के रूप में थी। ‘लाइसेंस टु किल' नामक फिल्म में पीयर्स ब्रोसनन को लार्क सिगरेट पीते हुए दिखाना था, उसके लिए उस फिल्म के निर्माता ने साढ़े तीन लाख डॉलर लिए थे। युवाओं के रोल मॉडल पीयर्स ब्रोसनन लार्क सिगरेट के लिए जमकर विज्ञापन करते थे, यकायक उन्होंने घोषणा की कि तंबाकू उत्पादों के लिए विज्ञापन त्याग रहे हैं। आज की तारीख में पीयर्स ब्रोसनन पर्यावरणविद के रूप में स्थापित हो गए हैं। ऐसी घटनाएं ‘नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को' जैसी कहावत की याद दिलाती हैं। आप करोड़ों डॉलर सिगरेट-तंबाकू के विज्ञापन से कमा लीजिए, फिर संत हो जाइए!

ऐसे लोग जो तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, सिगार का विज्ञापन करते हैं, क्या उनकी जिम्मेदारी तय नहीं होनी चाहिए? लेकिन जो संस्थाएं जिम्मेदारी तय करती हैं, वही अगर तंबाकू लॉबी की गिरफ्त में हों, तो उम्मीद के दरवाजे बंद दिखते हैं। 2010 में सिर्फ तंबाकू पर कर लगाने से ओबामा प्रशासन को बत्तीस अरब डॉलर की आय हुई थी। अमेरिका में उद्योग जगत के गलियारों से लेकर संसद तक जो तंबाकू लॉबी सक्रिय है, उस पर 1.66 करोड़ डॉलर का खर्च 2010 में आया था। अमेरिका में हर साल तंबाकू इस्तेमाल करने वाले चार लाख अस्सी हजार लोग मरते हैं। लेकिन तब भी तंबाकू का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। मगर कभी-कभी वहां की अदालतें सिगरेट से हुई मौत पर संजीदा दिखती हैं। 2004 में न्यूयार्क की अदालत ने फेफड़े के कैंसर से मरे सत्तावन साल के एक ‘चेन स्मोकर' की बेवा को दो करोड़ डॉलर का जुर्माना देने का आदेश ‘ब्राउन ऐंड विलियम्स टोबैको कॉरपोरेशन' नामक सिगरेट कंपनी को दिया।

यह ऐतिहासिक फैसला था। ऐसे फैसले भारतीय अदालतें भी करें, तो बहुत सारे पीड़ित परिवारों का भला होगा। दुनिया के किसी हिस्से में चले जाएं, यह स्पष्ट दिखता है कि तंबाकू कारोबार की ताकत राजनीति के गलियारे ने बढ़ाई है। 2013 में अट्ठाईस देशों के संगठन यूरोपीय संघ में तंबाकू उत्पाद तैयार करने, उसके व्यापार-विपणन आदि पर एक दिशा-निर्देश तय किया जा रहा था। दिशा-निर्देश पर संसद में बहस होती, उससे पहले ही कुछ सांसदों ने इसकी रिपोर्ट लीक कर दी। यूरोपीय संघ के ये सांसद फिलीप मौरिस नामक जर्मनी की दिग्गज तंबाकू कंपनी के लिए लॉबिंग कर रहे थे। द गार्जियन, ल पारिसिएन, देयर स्पीगेल जैसे नामी-गिरामी यूरोपीय अखबारों के लिए यह खास खबर थी कि कैसे 233 एमईपी (मेंबर यूरोपियन पार्लियामेंट) फिलीप मौरिस तंबाकू कंपनी के लिए लॉबिंग कर रहे थे।

इन सांसदों के लिए शराब, सेक्सवर्कर, फाइव स्टार पार्टी से लेकर दुनिया की तमाम सुविधाएं फिलिप मौरिस मुहैया करा रही थी। इसके साथ जापानी टोबैको इंटरनेशनल (जेटीआई) और सिगरेट के कागज और खोखे बनाने वाली कंपनी ट्राइरेनबर्ग संसद से बाहर माहौल बनाने के लिए सोशल मीडिया से लेकर सिगरेट के खुदरा व्यापारियों तक का इस्तेमाल कर रही थीं।
इस खुलासे ने यूरोपीय सांसदों को विचलित कर दिया।

क्रिश्चियन डेमोक्रेट एमईपी, कार्ल हाइंज फ्लोरेंज ने यहां तक कह दिया कि तंबाकू के लिए लॉबिंग करने वाले सांसद लोकतंत्र के लिए कोढ़ जैसे हैं। यूरोपीय संसद में पैंसठ सदस्यीय टोबैको कमेटी भारी दबाव में थी, उनमें से कोई तीस सदस्यों से तंबाकू लॉबी ने संपर्क किया था, इसका भी खुलासा अखबारों में हुआ।

माहौल इतना बिगड़ा कि 2013 में स्वास्थ्य आयुक्त जॉन दाल्ली को पद से इस्तीफा देना पड़ा। यूरोप में अकेला स्वीडन ऐसा देश था, जहां पाउच वाले तंबाकू (स्नूस) की बिक्री पर पाबंदी नहीं थी। ब्रिटेन में गुजराती मूल की कंजरवेटिव पार्टी की सांसद प्रीति पटेल चार साल पहले विवादों में घिरी थीं, जब उन्होंने तंबाकू पर से प्रतिबंध हटाने और सादे पैकैजिंग वाले सिगरेट की वकालत की थी।

बीड़ी का बाजार विचित्र है। दुनिया का कोई ऐसा कोना नहीं है, जहां बीड़ी नहीं पहुंची हो। पंक्स और हिप्पी संस्कृति वाले युवाओं के लिए बीड़ी, जरा हटके स्टाइल मारने का जरिया बना हुआ है। बहुतेरी बीड़ी कंपनियों ने गरीब-गुरबों के दिमाग में यह बैठा देने में सफलता पाई है कि बीड़ी, स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह नहीं है। ऐसा है, तो फरवरी 2014 में ओबामा प्रशासन ने एक भारतीय बीड़ी कंपनी जश इंटरनेशनल की चार किस्मों को प्रतिबंधित क्यों किया? सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने 2011 में सर्वे के बाद जानकारी दी कि अमेरिका में हाई स्कूल के दो प्रतिशत छात्र और मिडल स्कूल के 1.7 प्रतिशत छात्र बीड़ी पीते हैं।

इंस्टीट्यूट आॅफ हेल्थ मेट्रिक्स ऐंड इवैल्यूएशन के सर्वे के अनुसार, ‘भारत में कोई दस करोड़ लोग बीड़ी पीते हैं, जिनमें स्कूली छात्र भी हैं। सिगरेट पीने वाले भारतीयों की संख्या ग्यारह करोड़ है।' इस सर्वे में एक दिलचस्प बात यह भी जानने को मिली कि सिगरेट पीने वाली महिलाओं की संख्या विगत बत्तीस वर्षों में दोगुनी से ज्यादा बढ़ी है। 1980 में तिरपन लाख भारतीय महिलाएं धूम्रपान करती थीं, 2012 में इनकी संख्या बढ़ कर एक करोड़ इक्कीस लाख हो गई।

भारतीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ पॉपुलेशन साइंस' के साथ 2010 में साझा सर्वे किया था, और यह निष्कर्ष निकाला था कि धूम्रपान से भारत में हर साल दस लाख लोग मरते हैं, जिनमें बीड़ी का सेवन करने वालों की संख्या छह लाख होती है।

उससे एक साल पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी एक सर्वेक्षण भारत में कराया था, और जानकारी दी थी कि बीड़ी, सिगरेट और तंबाकू का सेवन करने वाले नौ लाख लोग हर साल मरते हैं। मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर में बाकायदा ‘एडवांस सेंटर फॉर ट्रीटमेंट एजुकेशन एंड रिसर्च' नामक प्रभाग है, जो भारत में तंबाकू से हो रहे कैंसर पर आंकड़े इकट्ठा कर रहा है।

भारत में तंबाकू से हो रहे कर्करोग के बारे में जो संस्थाएं सर्वे का काम कर रही हैं, उनकी निष्ठा पर शक नहीं कर सकते। स्वयं भारत सरकार इसमें शामिल रही है। इसलिए धूम्रपान पर संसदीय समितिके प्रमुख और भाजपा सांसद दिलीप गांधी जब यह कहते हैं कि बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू से कैंसर होता है, इस पर हिंदुस्तान में कोई सर्वे नहीं हुआ है, तो लगता है कि इतने जिम्मेदार पद पर बैठे लोग या तो ‘होमवर्क' करके नहीं आते हैं, या फिर तंबाकू लॉबी के दबाव में ऐसे बयान देते हैं। असम से भाजपा के सांसद रामप्रसाद सरमा ने बड़ा विचित्र-सा बयान दिया कि मैं दो बुजुर्गों को जानता हूं, जो हर रोज एक बोतल शराब और साठ सिगरेट पीते थे, उनमें से एक अभी जीवित हैं, दूसरे छियासी साल की उम्र में गुजर गए।

भारत के गांवों, कस्बों में ऐसे हजारों बुजुर्ग मिल जाएंगे, जो शराब, बीड़ी तंबाकू का सेवन करते हुए बीमारी से दूर हैं, तो क्या इसे पैमाना मान लिया जाए? कांग्रेस के पूर्व सांसद श्रवण पटेल मध्यप्रदेश में टाइगर ब्रांड बीड़ी के मालिक हैं; उनका तर्क है कि बीड़ी का कारोबार अवैध नहीं है, और इससे गरीबों का काम चल जाता है।

भारत में बीस अरब बीड़ी रोजाना बनती हैं, जिससे साढ़े छह से सात लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इनमें घरेलू महिलाएं, बच्चे भी शामिल हैं। तेंदू पत्ता तोड़ने से लेकर बीड़ी बनाने वाले दमा, टीबी, सांस संबंधी रोगों और कैंसर तक के शिकार होते हैं, इससे क्या सरकार इनकार कर सकती है? पूर्व पर्यटन मंत्री प्रफुल्ल पटेल इस देश के ‘बीड़ी किंग' के रूप में जाने जाते हैं। उनके परिवार की कंपनी सीजे ग्रुप का एक हजार करोड़ का बीड़ी कारोबार है। भाजपा नेता शैलेंद्र जैन ढोलक छाप बीड़ी का कारोबार करते हैं। हरिवंश राठौर और एससी गुप्ता भी भाजपा के नेता हैं, और बीड़ी के बड़े कारोबारी हैं। यह दिलचस्प है कि हर साल संसद में जब भी बीड़ी पर कर बढ़ाने की बात होती है, तो उसका इस कुतर्क के साथ प्रतिरोध होता है कि यह प्रस्ताव गरीब-विरोधी है।

लैटिन अमेरिकी देश उरुगुए जैसी सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान पर पूर्ण पाबंदी लगाने और तंबाकू के विरुद्ध अभियान की मांग जब यूपीए-दो की सरकार में की जा रही थी, तब गुलाम नबी आजाद स्वास्थ्य मंत्री थे। आजाद के मंत्री रहते सचित्र वैधानिक चेतावनी को बड़ा करने का सवाल उठा था, उसे दबा दिया गया। ऐसा लगता है कि इस देश में कैंसर, दमा, टीबी और सांस की बीमारियां बढ़ाने में तंबाकू लॉबी के साथ अनेक राजनीतिक भी खड़े हैं। इससे फाइव स्टार इलाज का कारोबार भी तो फल-फूल रहा है!

पुष्परंजन