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ताकि फिर न हो मैगी जैसी घटना- प्रदीप एस मेहता

मैगी से जुड़े हाल के विवाद ने बहुतों को गहरी नींद से जगा दिया है। इसके बाद सिर्फ मैगी या नेस्ले की छवि खराब नहीं हुई है, बल्कि फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड ऐक्ट, 2006 (एफएसएसए) और विनियंत्रक फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) की छवि भी दांव पर है। वैसे तो असंगठित पैकेज्ड और गैर पैकेज्ड खाद्य उत्पादों के प्रति उपभोक्ता हमेशा ही सशंकित रहते हैं, पर हाल के विवाद ने एक विश्वस्त ब्रांड के प्रति उनके भरोसे को डिगा दिया है। इससे जहां खाद्य उत्पादों की सुरक्षा के प्रति गंभीर सवाल उठता है, वहीं यह प्रसंग देश के उभरते खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के प्रति भी एक अशुभ चिह्न है।

भारत दुनिया के सबसे बड़े खाद्य उत्पाद उत्पादकों में से एक है, हालांकि इसमें खाद्य प्रसंस्करण की हिस्सेदारी कृषि उत्पादों के 10 प्रतिशत से भी कम है। सालाना 44,000 करोड़ के कृषि उत्पाद देश में बर्बाद हो जाते हैं। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग देश की एक बड़ी आबादी को रोजगार देता है। यह कृषि आय बढ़ाने में मदद करता है, कृषि उत्पादों की बर्बादी कम करता है, पैकेज्ड फूड तैयार कर खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बढ़ाता है, शीतगृहों में निवेश बढ़ाने को प्रेरित करता है, देसी और विदेशी निवेश आकर्षित करता है तथा निर्यात में बड़ी भूमिका निभाता है। इस क्षेत्र की विराट संभावना को देखते हुए न सिर्फ देश के विकास में इसका महत्व है, बल्कि 'मेक इन इंडिया' की जो पहल हुई है, उसमें इस क्षेत्र को तरजीह देनी चाहिए।

यह सोच भ्रामक है कि खाद्य सुरक्षा से जुड़े सख्त कानून खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास में बाधक होते हैं। अमेरिका का ही उदाहरण लीजिए। यह खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में दुनिया का बहुत बड़ा देश है, साथ ही, उसने खाद्य पदार्थों की सुरक्षा के मामले में दुनिया का सबसे कठोर विनियामक तंत्र बना रखा है। एक प्रभावशाली खाद्य सुरक्षा विनियामक तंत्र होने से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के प्रति देश-विदेश के उपभोक्ताओं को भरोसा होता है, जो ऐसे उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए बहुत आवश्यक है।

मैगी के मुद्दे ने देश के खाद्य उत्पादों से जुड़े कई सवाल पैदा किए हैं। आखिर जांच के लिए सिर्फ मैगी को ही क्यों चुना गया? भारतीय खाद्य उत्पाद उद्योग में मिलावट, खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की जांच का अभाव, गुमराह करते लेबल, खराब खाद्य पदार्थों की बिक्री और व्यापार के दूसरे अनैतिक तरीके आम हैं।

जाहिर है, भारतीय खाद्य उद्योग में इतनी भीषण अनियमितताएं कोई एक दिन में नहीं आई हैं। सवाल यह है कि इतने लंबे समय तक ये अनियमितताएं क्यों जारी रहीं। किसी तरह की कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इससे केंद्रीय और राज्य सरकारों के खाद्य विनियामकों की ओर से बरती जाने वाली लापरवाही का ही पता चलता है। दो स्तरों के विनियामकों में तालमेल का भी अभाव पाया गया है। मैगी के मामले में एफएसएसएआई की अलग-अलग प्रयोगशालाओं से जो अलग-अलग नतीजे आए, उससे खुद उसकी जांच प्रणाली भी सवालों के घेरे में है। बांबे हाई कोर्ट का फैसला इसी ओर इशारा करता है। ऐसे में विनियामक तंत्र की बेहतरी के बारे में तत्काल सोचना होगा। तभी खाद्य सुरक्षा भी संभव होगी और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विकास भी होगा।

-लेखक कट्स इंटरनेशनल के महासचिव हैं