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तूफान और बदकिस्मत मछुआरे-- एस श्रीनिवासन

गुजरात चुनाव के मद्देनजर जारी तू-तू, मैं-मैं की राजनीति और पद्मावती फिल्म को लेकर देश के उत्तरी राज्यों मेंमचे हंगामे के आगे दक्षिण भारत के उन हजारों मछुआरों और उनके परिवारों की दारुण कथा बौनी रह गई, जो ओखी चक्रवाती तूफान की मार से उजड़-बिखर गए हैं। तमिलनाडु और केरल के तटीय इलाकों के 800 मछुआरे आज भी अपने घर वापस नहीं लौट पाए हैं। करीब 10 दिनों पहले वे समुद्र में मछली पकड़ने गए थे। तूफान के वक्त से ही नौसेना, तटीय प्राधिकारों के साथ मिलकर बचाव व राहत कार्यों में जुटी हुई। इस काम में 23 जहाज और आठ विमान लगे हुए हैं। पिछले सप्ताह के अंत तक नौसेना और कोस्ट गार्ड ने करीब 400 मछुआरों को अरब सागर से बचाया भी है।

 

कुछ खुशनसीब मछुआरों की प्रार्थना ईश्वर ने सुन ली और उस भयानक मंजर की दास्तान सुनाने के लिए वे अपने घर लौट आए हैं, जिसमें वे फंस गए थे। लेकिन उनके कई हमवतन भाई अब भी लापता हैं। बचाव कार्य की गति से नाखुश कुछ मछुआरे तो अपने दोस्तों की तलाश के लिए समुद्र में फिर उतर गए। लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजरता जा रहा है, तमिलनाडु और केरल के तटीय शहरों और मछुआरों की निराशा गहराने लगी है। मछुआरे और उनके परिजनों ने अपने लापता लोगों की सूचना पाने के लिए रेलवे स्टेशनों और राजमार्गों को जाम कर दिया। उनकी मांग है कि राहत कार्यों में तेजी लाई जाए और तूफान में मारे गए लोगों के परिवारों को अधिक मुआवजा दिया जाए। जाहिर है, केंद्र और राज्य सरकार के ऊपर राहत कार्यों में तेजी लाने का दबाव है।

 

आखिर गलती कहां हुई? आखिर क्यों इतनी बड़ी तादाद में मछुआरे समुद्र में गए, और इस साल के सबसे बड़े तूफान की गिरफ्त में फंसे? क्या उन्हें कोई चेतावनी नहीं मिली थी? ओखी तूफान 21 नवंबर को ही थाईलैंड की खाड़ी से उठा और बंगाल की खाड़ी के दक्षिणी हिस्से की तरफ बढ़ा था और 29 नवंबर को श्रीलंका में भारी तबाही मचाने तक चक्रवाती रूप धारण कर चुका था। इसके अगले दिन तमिलनाडु व केरल के तटों से टकराने से पहले यह और विध्वंसक बन गया था। मौसम विभाग का कहना है कि उसने 29 नवंबर को चेतावनी जारी की थी। लेकिन केरल सरकार के मुताबिक, उसे चक्रवाती तूफान की सूचना 30 नवंबर की दोपहर में मिली। उस समय अनेक मछुआरे गहरे समुद्र में थे, क्योंकि वे 29 व उससे पहले ही मछली पकड़ने समुद्र में उतर चुके थे। उन्हें चेतावनी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। जहां केरल सरकार ने केंद्रीय एजेंसी पर देरी से सूचना देने का आरोप लगाया है, तो वहीं तमिलनाडु के मछुआरे इस बात को लेकर खफा हैं कि राज्य सरकार ने वक्त पर कदम नहीं उठाया। पलानीसामी सरकार की पहली कोशिश तो इस आपदा में हुए नुकसान को कमतर बताने की रही। मछुआरों का मानना है कि अगर राज्य सरकार ने तत्परता दिखाई होती, तो कई मछुआरों की जान बच सकती थी।

 

पिछले कुछ वर्षों में चक्रवाती तूफानों की वजह से संपत्तियों का नुकसान जहां बढ़ा है, वहीं जानी नुकसान में कमी देखी गई है। और ऐसा उन्नत चेतावनी प्रणाली और सूचनाओं के त्वरित प्रसार की वजह से हुआ है। तटीय इलाकों के लोगों को पहले ही भूस्खलन के बारे में पता चल जाता है, और इस तरह वे एहतियाती कदम उठाने में समर्थ होते हैं, ताकि कम से कम नुकसान उठाना पडे़। लेकिन इस बार मछुआरे किसी सूचना के बगैर ही समुद्र में पहले से थे। देश के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने काफी विस्तृत प्रोटोकॉल तैयार किया है। उसे भारतीय मौसम विभाग से त्वरित सूचनाएं मिलती रहती हैं, जिसके पास भूमि, समुद्र और अंतरिक्ष निगरानी केंद्र हैं। आम जनता के लिए मौसम संबंधी सूचनाएं जारी करने के अलावा मौसम विभाग मछुआरों, किसानों, सरकारी एजेंसियों और सभी परिवहन विभागों के लिए खास चेतावनियां भी जारी करता है। चेतावनी चार स्तरों पर जारी की जाती है, जो तूफान पूर्व निगरानी के अलावा भू-स्खलन के 48 घंटे, 24 घंटे और आखिर में 12 घंटे पहले दी जाती है। जहां तक सटीकता का सवाल है, तो मौसम विभाग 140 किलोमीटर के लिए 24 घंटे की पूर्व भविष्यवाणी कर सकता है और 250 किलोमीटर के लिए 48 घंटों की। अवधि बढ़ने के साथ भविष्यवाणी में त्रुटियां भी बढ़ती जाती हैं।

 

इतने बड़े ताम-झाम के बावजूद मछुआरों को आसन्न तूफान की कोई जानकारी नहीं थी। कुछ मछुआरे तो चमत्कारिक रूप से बचाए जाने से पहले 44 घंटे समुद्र में बिताए। उनके पास समुद्र की भंवरदार लहरों से लड़ने वाले मछुआरों की कहानी है। जबकि कई अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले थे, जो बीवी-बच्चों को बेसहारा छोड़ गए। देश का तटीय इलाका 7,500 किलोमीटर है, जिसमें से 5,700 किलोमीटर विभिन्न स्तर के चक्रवाती तूफानों के लिहाज से काफी संवेदनशील है। देश की एक तिहाई आबादी तटीय राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में बसती है, जो ऐसे तूफानों के जोखिम क्षेत्र में है। जलवायु परिवर्तन और इसके परिणामस्वरूप समुद्री जल-स्तर में वृद्धि को ऐसी आपदाओं की एक बड़ी वजह बताई जा रही हैै, और आने वाले दशकों में हालात के और बिगड़ने का अंदेशा है।

 

वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, गरम समुद्र से वाष्पीकरण तेजी से होता है, ये जो ऊर्जा मुक्त करते हैं, वह अंतत: बड़े तूफानों की वजह बनती है। शोधार्थियों का कहना है कि चक्रवाती तूफानों और अतिवर्षा का कारण यह हो सकता है। ओखी तूफान भी बड़ी तेजी से सघन हुआ और श्रीलंका से भारत तक पहुंचने के बीच इसने भयानक रूप अख्तियार कर लिया, लेकिन गुजरात के तट तक पहुंचते-पहुंचते अपनी तीव्रता को खो दिया। बहरहाल, मौजूदा अनुभव के बाद विशेषज्ञों का यही कहना है कि मछुआरों की नावों को भौगोलिक सूचना प्रणाली और आधुनिक सूचना उपकरणों से लैस किए जाने की जरूरत है, ताकि उनसे ऊंची लहरों के बीच भी जल्दी से संपर्क स्थापित हो सके और उन्हें आसन्न तूफान को लेकर आगाह किया जा सके। अधिकारियों की फौरी चिंता तो लापता मछुआरों को ढूंढ़ना है। आखिर 800 मछुआरे अब भी समुद्र में हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)