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तेल कंपनियों को मंजूर नहीं और सस्ते सिलेंडरों का बोझ

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद सरकार ने भले ही सस्ते रसोई गैस सिलेंडरों का कोटा छह से बढ़ा कर नौ करने का मन बनाया हो लेकिन तेल कंपनियों ने इसका बोझ उठाने से इन्कार कर दिया है। उन्होंने साफ कर दिया है कि इस वजह से 9000 करोड़ रुपये का जो आर्थिक बोझ बढ़ेगा उसकी पूरी भरपाई सरकार को करनी होगी। सार्वजनिक क्षेत्र की तीनों तेल विपणन कंपनियों ने पिछले दिनों पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली के साथ अपनी बैठक में स्पष्ट कहा कि उनकी स्थिति अतिरिक्त बोझ सहन करने लायक नहीं है।

सूत्रों के मुताबिक मोइली ने तेल कंपनियों को यह आश्वासन दिया है कि कोई ऐसा रास्ता निकाला जाएगा जिससे उन पर सिलेंडर कोटा बढ़ाने का बोझ नहीं पड़े। तेल कंपनियों का कहना है कि सिलेंडरों का कोटा निर्धारित होने के बावजूद चालू वित्त वर्ष में उन्हें रसोई गैस पर 38,450 करोड़ रुपये का घाटा होने के आसार हैं। आकलन है कि अगर सब्सिडी वाले सिलेंडर का कोटा बढ़ाया जाता है तो अगले वित्त वर्ष के दौरान तेल कंपनियों पर नौ हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। सरकार इसका आधा बोझ ही उठाती है। बाकी आधा बोझ तेल उत्खनन कंपनियों ओएनजीसी, ऑयल इंडिया और विपणन कंपनियों आइओसी, एचपीसीएल, बीपीसीएल को संयुक्त तौर पर उठाना पड़ता है।

पेट्रोलियम मंत्रालय इस बारे में अपना अलग गणित लगा रहा है। मंत्रालय के अधिकारियों ने मोइली को बताया है कि नकद सब्सिडी ट्रांसफर से अगले वित्त वर्ष से रसोई गैस और केरोसिन सब्सिडी में 15 हजार करोड़ रुपये की कमी हो जाएगी। ऐसे में साल में तीन और सस्ते सिलेंडर हर परिवार को देने से जो बोझ आएगा उसे समायोजित किया जा सकता है। बहरहाल, अगर सरकार ने सस्ते सिलेंडर का कोटा बढ़ाया तो इससे सीधे तौर पर 40 फीसद परिवारों को फायदा होगा। पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक रसोई गैस पर खाना बनाने वाला देश का 40 फीसद परिवार हर वर्ष नौ सिलेंडर का इस्तेमाल करता है। दिल्ली में इन परिवारों को नौ सिलेंडर 410 रुपये प्रति सिलेंडर पर मिल सकेंगे। इससे ज्यादा सिलेंडर के लिए 931 रुपये देने होंगे।