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तोहफा या समाधान

प्रधानमंत्री ने सरकारी अस्पतालों के चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ा कर पैंसठ वर्ष करने का एलान किया है। यह एक तबके को खुश करने की कोशिश है, या इसके पीछे चिकित्सा तंत्र को सुधारने की समग्र सोच भी है? अभी तक कुछ राज्यों में चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति की उम्र साठ साल और कुछ में बासठ साल है। अपनी सरकार के दो साल पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री ने सरकारी डॉक्टरों को यह तोहफा दिया। इसके पीछे तर्क है कि देश में डॉक्टरों की संख्या जरूरत के मुकाबले से काफी कम है। फिर, उनका काम विशेषज्ञता का है, जो दूसरों से नहीं लिया जा सकता। पर सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ा कर इस समस्या से कुछ हद तक पार पाने की तजवीज कोई स्थायी या कारगर समाधान नहीं कही जा सकती।

सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की संख्या कम होने के पीछे दूसरी कई वजहें हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत काफी समय से रेखांकित की जा रही है। करीब दो साल पहले भारतीय चिकित्सा परिषद ने नियम बनाया था कि चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई के बाद युवाओं को कम से कम एक साल ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवाएं देनी होंगी, तभी उन्हें पंजीकृत किया जा सकेगा। इससे पहले सरकार ने कई मौकों पर युवाओं को ग्रामीण इलाकों में सेवाएं देने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास किया था, मगर वह बेकार गया। यही वजह है कि दूरदराज के इलाकों में बहुत सारे सरकारी अस्पताल डॉक्टरों के बगैर, सिर्फ नर्सों और चिकित्सा सहायकों के भरोसे चल रहे हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को स्वास्थ्य संबंधी योजनाएं पारा-मेडिकल कर्मियों के सहारे चलानी पड़ती हैं। ऐसे में चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने भर से क्या हासिल होगा?

दरअसल, सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी का बड़ा कारण वहां सुविधाओं का अभाव और कार्यस्थिति का अनुकूल न होना है। छिपी बात नहीं है कि ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा संबंधी जरूरी सुविधाएं नहीं हैं। न तो माकूल उपकरण हैं न दवाइयांं। फिर बहुत सारे युवा चिकित्सक इसलिए छोटे शहरों या दूरदराज के इलाकों में सेवाएं देने को तैयार नहीं होते कि उन्हें वहां अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और रहन-सहन की बेहतर स्थिति नहीं दिखती है। लिहाजा, वे महानगरों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। बहुत-से युवा ग्रामीण क्षेत्र के किसी सरकारी अस्पताल में नौकरी करने के बजाय अपना चिकित्सा केंद्र खोलना बेहतर समझते हैं।

उसमें नौकरी से ज्यादा आमदनी की उम्मीद दिखती है। इसके अलावा मेधावी युवाओं को दूसरे देशों के अस्पतालों में अच्छे वेतन पर आसानी से काम मिल जाता है। यही वजह है कि चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई कर चुके बहुत सारे युवा विदेशों का रुख कर लेते हैं। वहां उन्हें अनुसंधान आदि की भी बेहतर सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। अपने यहां चिकित्सा विज्ञान में अनुसंधान की स्थिति दयनीय है। ऐसे में केवल सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ा कर सरकारी चिकित्सा सेवा को बेहतर नहीं बनाया जा सकता। अव्वल तो स्वास्थ्य के मद में बजटीय प्रावधान निहायत अपर्याप्त है। इसके चलते सरकारी अस्पतालों की दशा दिन पर दिन और खराब होती गई है। कहने को हमारे नीति नियंता देश की समूची आबादी तक चिकित्सा सुविधा पहुंचाने का लक्ष्य जब-तब दोहराते रहते हैं, पर इसके लिए जरूरी आबंटन को लेकर वे कतई संजीदा नहीं दिखते।