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त्योहारी मांग से उबलने लगा तेल -- सुशील मिश्र

खाद्य तेलों की त्योहारी मांग निकलने से इस महीने अभी तक कीमतों में 6 फीसदी तक बढ़ोतरी हो चुकी है। घरेलू बाजार में जोर पकड़ती त्योहारी मांग खाद्य तेलों की कीमतों को और मजबूती प्रदान करने वाली है। घरेलू बाजार में मांग की तेजी केसाथ अंतरराष्ट्रीय बाजार की मजबूत कीमतें आने वाले दिनों में खाद्य तेलों की महंगाई को और हवा देंगी।

खरीफ सीजन की बेहतर फसल को देखकर अनुमान लगाया जा रहा था कि खाद्य पदार्थों की महंगाई पर अब विराम लगने वाला है। पिछले महीने लगभग सभी खाद्य तेलों की कीमतें प्रति 15 किलोग्राम 30- 100 रुपये तक गिर गई थी कीमतों में गिरावट देखकर लोगों को लगने लगा था कि अब त्योहारी सीजन में चाय पकौड़ी का मजा लिया जा सकता है लेकिन बाजार में जैसे ही मांग ने रफ्तार पकड़ी, वैसे दोबारा कीमतें ऊपर की तरफ भागना शुरू हो गई हैं। एक अक्टूबर को 15 किलोग्राम पाम ऑयल की कीमत 452 रुपये, सोया तेल 472 रुपये, मूंगफली तेल 850 रुपये, सरसों तेल 538 रुपये, सूरजमुखी 595 रुपये और कपास तेल 493 रुपये थी जो 12 अक्टूबर तक बढ़कर पाम आयल 474 रुपये, सोया तेल 493 रुपये, मूंगफली तेल 865 रुपये, सरसों तेल 545 रुपये, सूरजमूंखी 630 रुपये और कपास तेल 519 रुपये हो गई हैं। खाद्य तेलों की कीमतों में हुए बढ़ोतरी पर जानकारों का कहना है कि फिलहाल यह तेजी और जोर पकड़ेगी।


खाद्य तेलों में त्योहारी रंग तो अभी चढऩा शुरू हुआ है जो दीवाली तक और पक्का होगा। शेयरखान कमोडिटी के प्रमुख मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि इस साल देश में तिलहन फसलों का उत्पादन अधिक हुआ है इसमें कोई दो राय नहीं हैं, उत्पादन अधिक होने का ही प्रभाव था कि पिछले दो महीने कीमतों में गिरावट देखने को मिली थी लेकिन अब जिस स्तर पर कीमतें हैं इससे नीचे नहीं बल्कि ऊपर की तरफ जाएंगी। इसकी पहली सबसे बड़ी वजह मांग में तेजी बनी रहेगी, त्योहारी सीजन और इसके बाद ठंड़ शुरू हो जाएंगी जिसमें खाद्य तेलों का उपयोग बढ़ जाता है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कीमतें घरेलू बाजार से कम नहीं है जिससे आयात तेल भी खाद्य तेल के गरम बाजार को ठंड़ा नहीं कर पाएगा। अग्रवाल कहते हैं एक बाद और गौर करने वाली है कि देश में साल दर साल खाद्य तेलों की खपत 8 फीसदी की औसतन दर से बढ़ती जा रहा है। जिसको देखते हुए कहा जा सकता है कि अगले एक दो महीने में खाद्य तेलो कीमतें 10 फीसदी से भी ज्यादा महंगी हो सकती हैं।

महंगे होते खाद्य तेलों की कीमतों पर आदित्य बिड़ला मनी के अमर सिंह कहते हैं कि कीमतों में अभी मजबूती शुरू हुई है जो और बढऩे वाली है। उत्पादन अधिक होने के बाद भी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए 50 फीसदी से अधिक खाद्य तेल आयात करना पड़ेगा और अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतें घरेलू बाजार से कम नहीं बल्कि फिलहाल ज्यादा हैं। दूसरी तरफ किसानों का नया माल बाजार में आ रहा है जो अगले महीने तक और जोर पकड़ेगा जिसको देखते हुए सटोरिए कीमतों को रोककर रखे हुए हैं जैसे ही माल आना कमजोर पकड़ेगा सटोरिये कीमतों को हवा देना शुरू कर देंगे। यानी जनवरी से कीमतों में जबर्दस्त तेजी देखी जा सकती है।
दूसरी बात किसान भी मौजूदा दर पर माल बेचना नहीं चाह रहे हैं क्योंकि उन्होने तेजी देखी है इसके लिए किसान भी बाजार में उतना ही माल बेच रहे हैं जितने की उनको तत्काल जरूरत है बाकी का माल वह रोककर तेजी का इंतजार कर रहे हैं। देश में सालाना खाद्य तेलों की खपत 150 लाख टन से अधिक रहती है। पिछले साल 159 लाख टन खाद्य तेलों की खपत हुई थी जबकि इस साल 161 लाख टन खाद्य तेल की जरूरत होने वाली है। खाद्य तेलों की बढ़ती जरुरत की वजह से आयात पर निर्भरता भी बढ़ती जा रही है।
इस बार कुल जरुरत का 55 फीसदी (88.15 लाख टन) तेल आयात करना पड़ सकता है जबकि 2009-10 में घरेलू खपत का 58 फीसदी (90.02 लाख टन ) आयात किया गया है और 2008-2009 में जरूरत का 54 फीसदी ( 79.41 लाख टन) तेल विदेशों से मंगाना पड़ा था। 2009-10 की अपेक्षा इस साल (2010-11) में आयात कम होने की वजह देश में उत्पादन अधिक होना है। इस बार 72.85 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 66.30 लाख टन हुआ था।