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दर्द न कोई सुननेवाला है और न समझनेवाला ।। संजय मिश्र की प्रस्तुति।।

लोकल गवर्नेस में कैसे सुधार हो सकता है, इस सवाल को लेकर हम एक एसडीओ से रू-ब-रू थे. उन्होंने अपने हिसाब से सुधार के उपाय बताये. उनकी व्यथा थी कि चीजों को सही तरीके से नहीं देखा जा रहा. प्रस्तुत है दूसरी किस्त.

हमारी मुलाकात बहुत ही दिलचस्प एसडीओ से हो रही थी. बातचीत के लिए एसडीओ ने अपने आवास पर ही बुला रखा था. इस मुलाकात से पहले हमने पूरा होमवर्क भी किया था. सुबह से ही अनुमंडल के दो ब्लाकों का चक्कर लगा चुके थे. इस दौरान पंचायती राज के दो प्रमुख, जिला परिषद के छह सदस्यों व चार मुखिया से मिल चुके थे.

इस होमवर्क में हमें पता चल चुका था कि इलाके में एसडीओ और जन वितरण प्रणाली ( सरकारी राशन दुकानदारों) के माफिया के बीच जबरदस्त लड़ाई चल रही है. एसडीओ के खिलाफ कोर्ट में दो दर्जन से भी अधिक मामले चल रहे हैं, जिनमें दुष्कर्म, लूट, छिनतई, चोरी के मामले शामिल हैं. कुछ मामलों में न्यायालय ने संज्ञान भी ले लिया है. अधिकतर पंचायत प्रतिनिधि एसडीओ के काम-काज से नाराज है. एसडीओ को हिटलर कह कर बुलाते हैं.

एसडीओ आवास पर पहुंचने पर हमें भी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ. गेट पर खड़े पुलिस के जवान ने हमारी पूरी जामा-तलाशी लेने के बाद एसडीओ के आवास में बनी गोपनीय शाखा के दफ्तर में पहुंचाया. मुलाकात का मकसद विस्तार से जानने-समझने के बाद एसडीओ साहब ने अपने दिल का गुबार निकालना शुरू किया. बताया, देश के सबसे नामी विश्वविद्यालय का छात्र रहा.

पारिवारिक स्थिति के कारण देश खासकर अपने ही राज्य में नौकरी करने का मन बनाया. नौकरी मिल भी गयी, पर अब बहुत फ्रस्ट्रेशन होता है.

 

गधे-घोड़े में अंतर नहीं है

एसडीओ अपने फ्रस्टेशन की वजह बताते हैं-मेरे बैचमेट आते हैं, मुख्य सचिव को सलाह देते हैं. उनकी वाहवाही होती है और वहीं मैं कोई अच्छी सलाह देता हूं, तो उसे अनुसना कर दिया जाता है या डांट-डपट कर चुप करा दिया जाता है. फ्रस्ट्रेशन के और भी कारण हैं. यहां मेरी कोई सामाजिक जिंदगी नहीं है.

 

तीसरा सबसे बड़ा कारण है, तो आप क्या कर रहे हैं और क्या नहीं कर रहे हैं, इसे देखनेवाला, आकलन करनेवाला कोई नहीं है. अगर मैं, कोई काम नहीं भी करूं, तो कोई फर्क नहीं पड़ता है. अगर, काम करता हूं, तो सरकार कोई इनाम नहीं देती है. यहां गधे व घोड़े में कोई अंतर नहीं है.

आप देख रहे हैं, मैं घर की गोपनीय शाखा में काम कर रहा हूं. राशन माफिया के खिलाफ अभियान चलाया. इसका असर दिखता है. माइक से एनाउंसमेंट होकर केरोसिन का वितरण मेरे इलाके में होता है, लेकिन मुङो क्या मिला है, दो दर्जन से भी अधिक मामले मेरे खिलाफ चल रहे हैं. क्या आपको विश्वास होगा कि मेरे खिलाफ दुष्कर्म के आरोप हैं.

पंचायती राज से क्यों सुधार नहीं हो रहा है, इस सवाल पर एसडीओ साहब ही सवाल पूछते हैं कैसे होगा. दो बड़े बाबुओं ने एक रात में पंचायती राज एक्ट बना दिया और सरकार ने उसे लागू कर दिया. किसी को आम आदमी के हितों से कोई सरोकार नहीं है. हर अधिकारी और जन प्रतिनिधि नाटक कर रहा है और इस नाटकबाजी में कोई सही काम नहीं हो पा रहा है.

 

सभी अधिकार दे दो

एसडीओ के मुताबिक बदलाव का फॉर्मूला है. सरकार अगर स्थिति में बदलाव चाहती है, तो विकास का सारा काम पंचायती राज प्रतिनिधियों को सौंप देना चाहिए. बीडीओ, सीओ और एसडीओ जैसे अधिकारिओं के पास विधि-व्यवस्था दुरुस्त रखने का टास्क दे दीजिए. इससे स्थिति बदल सकती है. मगर, कोई ऐसा क्यों करेगा. सब अपने चक्कर में हैं. समाज में गैप इतना बढ़ गया है कि उससे देश का बड़ा नुकसान हो रहा है. इस दर्द को न कोई समझने वाला रहा और न ही सुननेवाला.