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दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए आयात महंगा करने का विचार

नया फॉर्मूला - आयातित दालें महंगी पड़ेंगी तो किसानों को बेहतर मूल्य मिलेगा

7.5 फीसदी आयात शुल्क लगाने के पक्ष में खाद्य मंत्रालय
10 फीसदी शुल्क लगाने की सिफारिश की है सीएसीपी ने
दालों के आयात को हतोत्साहित करना चाहता है खाद्य मंत्रालय

केंद्र सरकार देश में दलहन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नया रास्ता अपनाने पर विचार कर रही है। सरकार आयातित दालों का आयात महंगा करने की सोच रही है। घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए खाद्य मंत्रालय जहां दालों पर 7.5 फीसदी आयात लगाने के पक्ष में है, जबकि कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने 10 फीसदी आयात शुल्क लगाने का सुझाव दिया है।

भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के बावजूद घरेलू मांग को पूरा करने के लिए प्रति वर्ष करीब 30 लाख टन दालों का आयात किया जाता है। दालों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए 2006 से ही दालों के आयात पर कोई शुल्क देय नहीं है।

खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सीएसीपी के सुझाव पर संज्ञान लेते हुए मंत्रालय का मानना है कि दालों पर आयात शुल्क 7.5 फीसदी रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस निर्णय से देश के किसानों को फायदा होगा। विदेशी दाल सस्ती होने के साथ आसानी से सुलभ हो जाती हैं।

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से मंत्रालय दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाकर किसानों को दाल उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है, इसमें कुछ कामयाबी भी मिलने लगी है। उन्होंने कहा कि यदि विदेश से सस्ती दाल का आयात करते हैं तो देश के दालों पर प्रभाव पड़ता है।

आकड़ों के अनुसार व्यापारी म्यांमार से दालों का आयात 3300-3500 रुपये प्रति क्विंटल पर कर रहे हैं जबकि घरेलू बाजार में उसी दाल की कीमत 4300 रुपये प्रति क्विंटल होती है। इसके अलावा दालों का शिपमेंट भी सस्ता है। इस कारण व्यापारी विदेश से ही दाल मंगवाने की कोशिश करते हैं। साथ ही सरकारी एजेंसी नेफेड को एमएसपी रेट पर बेच देते हैं।

सीएसीपी ने वर्ष 2013-14 के खरीफ सीजन से ही आयात शुल्क को बढ़ाने का सुझाव दिया है। देश में निजी व्यापारियों के अलावा सरकारी ट्रेडिंग फर्म एमएमटीसी, पीईसी, एसटीसी व नेफेड दालों का आयात करते हैं। कनाडा, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, तंजानिया, मोजाम्बिक आदि देशों से दालों का आयात किया जाता है। दालों का उत्पादन खरीफ व रबी दोनों सीजनों में किया जाता है। अभी किसान खरीफ फसल की बुवाई की तैयारी कर रहे हैं।

मंत्रालय का मानना है कि आयातित दालें देश में मंगाना महंगा पड़ेगा तो किसानों को इनकी बेहतर कीमत मिल सकेगी। इससे किसान दालें उगाने के लिए और ज्यादा प्रेरित होंगे। इस समय देश में करीब 160-170 लाख टन दालों का उत्पादन होता है जबकि देश में खपत करीब 200 लाख टन रहती है। इस तरह करीब 30 लाख टन दालों की मांग आयात से ही पूरी होती है।