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दवा क्षेत्र में भी चीन की दादागीरी

अमेरिका और यूरोपीय देश ही नहीं भारत में भी दवा क्षेत्र में चीन की दादागीरी खतरनाक रूप में है। इतनी खतरनाक कि एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) ने भी सरकार को अगाह किया है कि समय रहते नहीं चेते तो चीन बड़ा खतरा खड़ा कर सकता है। एनएसए के पास चेतावनी का पर्याप्त कारण है। दरअसल भारत में बनने वाली दवाओं का 90 फीसदी कच्चा माल यानि एपीआई (एक्टिव फार्मास्टियुकल इन्ग्रीडीएंट) चीन से ही आता है। यानि चीन जब चाहे तब भारत में दवा का संकट कर सकता है।

तीन बड़े झटके

भारत : भारत 2008 में ऐसा संकट झेल चुका है। बीजिंग ओलंपिक के दौरान प्रदूषण कम करने के लिए चीन ने कई एपीआई संयंत्रों को बंद कर दिया था। इससे चीन से आने वाली कुछ दवाओं में 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई थी।

जापान : वर्ष 2010 में चीन ने जापान को कुछ जरूरी कच्चे पदार्थों की सप्लाई बंद कर दी थी। इनका इस्तेमाल हाईब्रिड कारों में होता था। पूर्वी चीन सागर विवाद में जापान से पंगा चलने के कारण चीन ने यह कदम उठाया था।

अमेरिका : वर्ष 2007 में चीन ने अमेरिकी रिफाइनरी पेट्रोलियम कंपनी के लिए जरूरी कच्चे माल की आपूर्ति रोक दी थी। इससे काफी नुकसान हुआ था।

बनती हैं यह दवाएं

चीन से आने वाला कच्चा माल (एपीआई) इन दवाओं में इस्तेमाल होता है- दर्दनिवारक-पैरासिटामॉल, एस्प्रिन एंटी बायोटिक-एमॉक्सिसिलीन, एमपिसिलीन, सिप्रोफ्लॉक्सासिन, ओफलॉक्सासिन, लेवोफ्लॉक्सासीन, डायबिटीज़-मटाफारमिन, एंटासिड रेनिटिडाइन।

कितना बड़ा है खतरा

भारत की कंपनियां जो भी दवाएं बनाती हैं उसमें इस्तेमाल होनेवाली कच्ची सामग्री चीन से आती है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) और कनफेडरेशन ऑफ इंडिया इंडस्ट्री (सीआईआई) के मुताबिक चीनी माल से 15 बेहद जरूरी दवाएं भारतीय कंपनियां बनाती है।

अगर चीन से संबंध बिगड़ते हैं तो चीन इनकी आपूर्ति को कम कर सकता है। या वह कच्चे माल के दाम बढ़ा सकता है क्योंकि उसका इस मामले में एकाधिकार है।

क्या थी रिपोर्ट
सरकार को सौपीं गई रिपोर्ट में खतरे को गंभीर बताया गया है। कहा गया है कि हम दवा उत्पादन में चीन पर हद से ज्यादा निर्भर है। अगर आपूर्ति गड़बड़ाई तो देश की बीमार आबादी खतरे में आ सकती है।

चीन से बेचैन अंकल सैम
कच्चे माल के मामले में अमेरिकी उद्योगों की चीन पर निर्भरता को लेकर एक रिपोर्ट में चिंता जताई गई है। चार साल पहले चीन ने अमेरिका के खनिज आयात कोटे को कम कर दिया था। उदाहरण के लिए 2010 में लेनथेनियम ऑक्साइड (पेट्रोलियम रिफाइनरी में इस्तेमाल होने वाला पदार्थ) का मूल्य पांच अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम से बढ़कर 35 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम हो गया था। यह दाम जून 2011 में 140 अमेरिकी डॉलर प्रतिग्राम था।

यूरोप पर भी हावी
यूरोपीय देश के उद्योग भी कच्चे माल के लिए पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार विशेषकर चीन पर निर्भर करते हैं। एक यूरोपीय वेबसाइट की रिपोर्ट के विश्व मानचित्र में दिखाया गया है कि यूरोपीय देश खनिज पदार्थ कांगो, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, भारत, जापान, अमेरिका, मैक्सिको, कनाडा, रूस, रवांडा और चीन से मंगाते हैं। लेकिन चीन पर निर्भरता ज्यादा है। यहां से 10 खनिज पदार्थो की आपूर्ति होती है।