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दवा बेचने को लेकर हड़ताल पर क्यों हैं देश के केमिस्ट?

दवा बेचने को लेकर घमासान मचा है. घमासान दो किस्म के - पारम्परिक और ऑनलाइन - दवा बेचने वालों के बीच है.

पारम्परिक दुकानदारों ने अपना शटर फ़िलहाल एक दिन के लिए गिरा दिया है. मांगे नहीं माने-जाने पर बेमियादी हड़ताल की धमकी भी है. ये दुकानदार ऑनलाइन दवा कारोबारियों को मान्यता देने की सरकार की पहल से नाराज़ हैं.

पारम्परिक दवा विक्रेता वे हैं जो ईंट-पत्थर जोड़कर बनायी दुकान से एक निश्चित इलाक़े में दवा बेचता है जहां ग्राहक आते हैं और दवा ख़रीद ले जाते हैं.

दूसरी ओर हैं ऑनलाइन कारोबार करने वाले यानी ई फॉर्मेसी, नयी नस्ल की एक ऐसी दुकान जो शहर के किसी भी कोने में लोगों के घर जाकर दवा पहुंचा आती है और वो भी सस्ते में, सप्ताह के सातों दिन, किसी भी समय.

पारम्परिक दुकानदार कह रहे हैं कि तकनीक को आधार बनाकर धंधा करने वालों ने ख़ासी मुसीबत खड़ी कर दी है. एक तरफ़ तो अनाप-शनाप तरीक़े से छूट दे रहे हैं, वहीं ये भरोसा भी नहीं कि इन ई-फ़ॉर्मेसी ने जो दवा पहुंचायी वो सही ही है.

अब पारम्परिक दुकानदारों के मुताबिक़, मुसीबत ये है कि सरकार भी ई-फॉर्मेसी के साथ खड़ी दिख रही है.


क्या है इसकी असली जड़?

दरअसल, परेशानी की जड़ सरकार की ओर से 28 अगस्त को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रुल्स 1945 के तहत जारी किए गए क़ायदे-क़ानून का एक है, जिस पर संबंधित पक्षों की राय मांगी गयी है.

मसौदे में उन नियमों का ख़ाका खींचा गया है जिसके तहत तय होगा कि कोई कैसे ई-फॉर्मेसी का काम शुरू कर सकता है, किस तरह से उसे पंजीकरण करना होगा, किस तरह से उन्हें दवा बेचनी होगी, वग़ैरह-वग़ैरह.

अब क्या ये समझा जाए कि अभी दर्जनभर से ज़्यादा ई फॉर्मसी बिना किसी क़ायदे-क़ानून के काम कर रही है?

वैसे ई-फ़ॉर्मेसी वाले ऐसा नहीं मानते और कहते हैं कि वह ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रुल्स 1945 की सभी शर्तों के आधार पर ही धंधा करते हैं. मसलन, डॉक्टर की पर्ची के बग़ैर शेड्यूल एच, एच-1 और एक्स की दवाएं नहीं बेचते, सभी बिक्री का रिकॉर्ड रखते हैं और अपने कर्मचारियों में फॉर्मासिस्ट भी रख रखे हैं जो पर्ची की पड़ताल कर तय ख़ुराक के मुताबिक़ ही दवा भेजते हैं.

लोकसभा के एक सवाल के जवाब में भी सरकार ने साफ़ किया कि इन नियमों को नहीं मानने वाली ई-फॉर्मेसी धंधा नहीं कर सकती हैं. सरकार ये भी कहती है कि नए क़ायदे-क़ानून का मसौदा ई-कारोबारियों को सुव्यवस्थित करने की एक कोशिश है.


दिक़्क़त कहां आ रही है?

परेशानी किस बात की है? सबसे बड़ी परेशानी है छूट. सीधी सी बात है. दो दुकान है. एक ही सामान बेचते हैं, लेकिन एक दो रुपये सस्ता पर बेचता है. अब आप कहां जाएंगे? सस्ते वाले पर ना.

पुरानी दिल्ली में एक थोक बाज़ार है, भागीरथ पैलेस. यहां दवा 30-30 और यहां तक की 40 फ़ीसदी तक सस्ती मिल जाती है. हमारे कई मित्र हैं. ज़्यादा दवा की ज़रूरत है तो कई किलोमीटर की दूरी तय कर भागीरथ पहुंच जाते हैं.

पूछो तो बताते हैं कि बस-ऑटो-मेट्रो वग़ैरह का किराया जोड़ भी ले तो भी मुहल्ले की दुकान से सस्ता ही पड़ता है. अब ई-फॉर्मेसी इतना सस्ता घर बैठे ही मिल जाए तो भला मुहल्ले की दुकान पर कोई क्यों जाए?