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दस साल बाद भी प्रबंधन वाले पदों पर कम ही होंगी महिलाएं

मुंबई। भारत ही नहीं, दुनिया भर में श्रमशक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी बेहद कम है। अगर महिलाओं की भागीदारी मौजूदा दर से बढ़ी तो अगले दस साल बाद भी पेशेवर और प्रबंधन वाले पदों पर बमुश्किल 40 फीसद ही पहुंच पाएगी। ग्लोबल एचआर कंसल्टेंसी फर्म मर्सर की ताजा रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया है। रिपोर्ट का एक खास निष्कर्ष यह भी है कि संगठनों के भीतर करियर लेवल बढ़ने के साथ ही महिलाओं की हिस्सेदारी घटती जाती है।

"ग्लोबल लीडर ऑफ ह्वेन वीमेन थ्राइव" नाम से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं को आगे बढ़ाने के पारंपरिक प्रयास बहुत कारगर नहीं हो रहे हैं। महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व एक बड़ा आर्थिक और सामाजिक मुद्दा बना रहेगा। मर्सर से जुड़ीं पैट मिलीगन के मुताबिक नेतागण शीर्ष पर मौजूद महिलाओं पर ही फोकस करते रहे हैं। वे उन महिला प्रतिभाओं की अनदेखी कर रहे हैं जो बीच के पदों पर हैं। प्रगति को बनाए रखने के लिए ये महिलाएं खासी महत्वपूर्ण हैं।

कहां रहेगा कितना प्रतिनिधित्व

अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2025 में लैटिन अमेरिका क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी के मामले में पहले नंबर पर होगा। इस क्षेत्र में उनकी हिस्सेदारी 36 से बढ़कर 49 फीसद तक पहुंच जाएगी। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड संयुक्त रूप से दूसरे पायदान पर होंगे। यहां श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी दस साल बाद 40 फीसद पर होगी। इसी तरह 39 फीसद महिला भागीदारी के साथ अमेरिका और कनाडा तीसरे स्थान पर रहेंगे। महिलाओं को 37 फीसद प्रतिनिधित्व देकर यूरोप चौथे नंबर पर होगा। एशिया में महिलाओं की भागीदारी बेहद कम बनी रहेगी। इस क्षेत्र में साल 2025 तक श्रमशक्ति में उनका अनुपात 28 फीसद से ज्यादा नहीं हो पाएगा।

ऐसे नहीं रंग ला पाएंगी कोशिशें

एशिया की यह हालत देखते हुए महज शीर्ष प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के प्रयास रंग नहीं ला पाएंगे। इसकी संभावना भी कम ही है कि इस क्षेत्र के संगठन जेंडर डायवर्सिटी बढ़ाने में ज्यादा तेजी से बढ़ सकेंगे। इस क्षेत्र में महिलाओं को वेतन भी पुरुष समकक्षों के मुकाबले काफी कम मिलता है।

आधी आबादी का मौजूदा हाल

इन कर्मचारियों में 13 लाख महिलाएं हैं। विश्व स्तर पर महिला मैनेजरों का अनुपात 33 फीसद है। वरिष्ठ प्रबंधन में उनकी हिस्सेदारी 26 फीसद है। शीर्ष स्तर पर महज 20 फीसद महिलाएं हैं। मर्सर के इस ग्लोबल अध्ययन में भारत समेत 42 देशों के 583 संगठनों को शामिल किया गया। इनमें 32 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं।