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दिल्लीः अब पानी के निजीकरण की तैयारी

अगर बिजली के निजीकरण का कांग्रेस पार्टी में विरोध नहीं हुआ होता तो पानी का निजीकरण मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपने दूसरे कार्यकाल के शुरू में ही कर देतीं। उन्होंने चौबीसो घंटे पानी उपलब्ध करवाने के नाम पर कार्ययोजना भी शुरू करवा दी थी। दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) के तर्ज पर दिल्ली जल बोर्ड के लिए नियामक आयोग के गठन की भी घोषणा कर दी थी। उन्होंने सितंबर 2005 में दिल्ली जल बोर्ड (संशोधन) विधेयक लाकर भूजल के दोहन पर रोक लगाने की कोशिश की। इसका भारी विरोध हुआ। विधेयक प्रवर समिति को सौंपा गया और आखिरकार फरवरी 2006 को उसे रद्द कर दिया गया। पानी के निजीकरण पर मुख्यमंत्री का ताजा बयान इसी की अगली कड़ी है।

वे निजी बातचीत में भी यही मानती हैं  कि अगर बिजली का निजीकरण न हुआ होता तो आज साढ़े पांच हजार मेगावाट बिजली की मांग को आसानी से पूरा नहीं किया जाता। 1998 में सरकार में आते ही मुख्यमंत्री ने बिजली सुधार को मुख्य प्राथमिकता पर रखा। बिजली पर श्वेत पत्र जारी किया गया। 56 से 60 फीसद एटीएम लॉस (बिजली चोरी) को बिजली की गड़बड़ी का मुख्य कारण  माना गया। बिजली चोरी रोकने के लिए अलग विधान बना। चोरी के लिए छापे डालने के लिए अलग से पुलिस उपलब्ध करवाई गई। थोक में सबसिडी दी गई। करोड़ों के दफ्तर फ्री में दिए गए। महंगी बिजली खरीदकर सस्ती में निजी कंपनियों को दिया गया। अभी 500 करोड़ का वेलआउट पैकेज सीधे देने के बजाए बैंक गारंटी दी गई। निजीकरण में गड़बड़ी के आरोप लगते रहे। सरकारी जांच एजंसी की कौन कहे, विधानसभा की लोक लेखा समिति ने सीबीआई जांच के प्रस्ताव किए। बावजूद इसके बिजली की उपलब्धता बढ़ने को निजीकरण के सफलता की सबसे बड़ी कसौटी मानकर उसे जारी रखा गया है और उनके पक्ष में डीईआरसी के फैसले का सरकार खुलेआम बचाव करती दिखती है।

पानी के लिए भी वही सब किया गया। 12 हजार किलोमीटर लाइनों को बदलने का काम शुरू किया गया। आधे से अधिक लाइनें बदल चुके हैं। बिजली से आधे से भी कम पानी के कनेक्शन होने पर अदालत से आदेश करवाकर मीटर लगाना अनिवार्य किया गया। इसके लिए निजी कंपनियों को मीटर लगाने का काम दिया गया और निजी पलंबर तक की सेवाएं ली गई। पानी की चोरी रोकने के लिए तीन पानी अदालतें बनीं। उसमें लाखों का जुर्माना किया।  यह सिलसिला जारी है। जापान की जायका कंपनी से निजीकरण का पायलट प्रोजेक्ट पिछले साल बनवाया गया। उसी के 2021 का पानी का मास्टर प्लान बना। उसमें यह माना कि 2021 तक 1840 एमजीडी पानी की मांग हो जाएगी।

अभी दिल्ली के महज 70 फीसद इलाकों में जल बोर्ड की लाइनें हैं फिर भी मांग एक हजार एमजीडी से ज्यादा है जबकि आपूर्ति 840 के आसपास हो पा रही है। बाकी दिल्ली वासी निजी ट्यूबवेल और हैंडपंपों से ही पानी पीते हैं। इसीलिए भूजल संशोधन विधेयक लाया गया था। यह निजीकरण की प्रक्रिया के तहत ही किया गया। पानी की उपलब्धता बढ़ाने की हरसंभव कोशिश हो रही है। अभी तक मुनक नहर पूरा नहीं हो पाई है। मौजूदा पानी के स्रोतों के अलावा रेणुका बांध, कीशू बांध और लखवर व्यासी बांध से दिल्ली को पानी मिलने की उम्मीद है।

दिल्ली जल बोर्ड के पुराने मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रमेश नेगी कहते हैं कि बिजली की तरह पानी कहीं से भी नहीं लिया जा सकता। उसके लिए वहां तक जमीन के भीतर पाईप डालने की इजाजत मिलनी चाहिए। उसी तरह पानी की लीकेज जमीन के भीतर होती है जिसका पता चलते चलते काफी नुकसान हो चुका होता है। फिर भी पाईप  लाईन बदलने के प्रयास में काफी लीकेज नियंत्रित किए गए। करीब 45 फीसद से लीकेज 30 तक आया है। इसे 20 तक लाने का लक्ष्य है। अंतरराष्ट्रीय मानक 15 फीसद का है। रमेश नेगी कहते थे कि 255 लीटर पानी हर व्यक्ति को उपलब्ध कराने के लिए लीकेज नियंत्रित करने के साथ साथ पानी का समान बंटवारा करना जरूरी है।

अभी 27 फीसद लोगोंं को तीन घंटे रोज से भी कम पानी मिलता है। करीब 55 फीसद लोग हैं जिन्हें तीन से छह घंटे पानी मिल पाता है। हर घर में कम से कम दो घंटे पानी जाए इसका इंतजाम करना होगा। पानी का वितरण ठीक करने के लिए बतौर प्रयोग नांगलोई, वसंत विहार और मालवीय नगर में पीपीपी (सरकार निजी भागीदारी) के तहत वितरण का काम निजी कंपनियों को सौंपा गया है। इसे निजीकरण की विधिवत शुरुआत मानी जा रही है।

जल बोर्ड को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए बिल वसूली के साथ साथ पानी की कीमत हर साल दस फीसद बढ़ाना तय किया गया। यह सब निजीकरण की दिशा में ही सरकार के कदम हैं। जिस तरह पहले कार्यकाल के आखिर में यानि जुलाई 2002 में बिजली का निजीकरण हुआ। उसी तरह मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपने तीसरे कार्यकाल के आखिरी साल में पानी का भी निजीकरण करेंगी। इसके साफ संकेत वे दे चुकी हैं। अब कांग्रेस में उनका विरोध करने वाले नेताओं की संख्या गिनती में रह गई है। भाजपा के विरोध को वे पहले भी गंभीरता से नहीं लेती थीं।