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दुनिया के नक्शे पर भुखमरी की बढ़ती आशंकाएं-- भारत डोगरा

संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम ने चेतावनी दी है कि विश्व के चार अलग-अलग हिस्सों में अकाल के कारण अगले छह महीनों में दो करोड़ लोगों की भूख से मौत हो सकती है। यह चार अति संवदेनशील क्षेत्र हैं- यमन, पूर्वोत्तर नाइजीरिया, दक्षिणी सूडान और पूर्वी अफ्रीका के कुछ भाग। विश्व खाद्य कार्यक्रम के प्रमुख अर्थशास्त्री आरिफ हुसैन ने कहा है कि पिछले 15 वर्ष में पहली बार ऐसी स्थिति पैदा हुई है, जब दुनिया के चार क्षेत्रों में एक साथ इस तरह का संकट पैदा हो रहा है।


इन क्षेत्रों की यह चिंताजनक स्थिति कोई अचानक नहीं बन गई। इसके लिए कई वर्षों से पृष्ठभूमि बनती रही है, जिन पर ध्यान नहीं दिया गया। साथ ही इसके लिए कई गंभीर गलतियां जिम्मेदार हैं। अगर सबसे ज्यादा इन देशों के नेतृत्व ने गलतियां की हैं, तो कुछ गंभीर गलतियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हुई हैं। दक्षिणी सूडान संसाधनों की दृष्टि से एक संपन्न क्षेत्र है। इसके बावजूद आज यहां बहुत बड़ी संख्या में लोग भुखमरी से त्रस्त हैं। लंबे समय तक यह क्षेत्र गृह युद्ध जैसी स्थिति की चपेट में रहा है। उससे बहुत बड़ी तबाही हुई।


तब कुछ अंतरराष्ट्रीय मंचों से यह समाधान निकाला गया कि सूडान का विभाजन करके दक्षिण सूडान को एक अलग देश बनाया जाए। पर इससे समाधान क्या होता, कुछ स्तरों पर हिंसा बढ़ ही गई है। यह भी स्पष्ट हुआ कि अलगाववाद अपने में कोई समाधान नहीं हो सकता है, आपसी भाईचारे से ही मिल-जुलकर समस्याओं को हल करना चाहिए।


यमन के लोगों के हालात भी गृह युद्ध जैसी स्थिति के कारण बहुत तेजी से बिगड़े हैं। सऊदी अरब की सेना द्वारा यहां दखल देने से समस्याएं कम नहीं हुईं, बल्कि और बढ़ गईं। इस देश को सऊदी अरब और ईरान के टकराव के स्थान के रूप में देखा जाने लगा और इस टकराव से यहां के स्थानीय लोगों के दुख-दर्द को तब तक भुला दिया गया, जब तक यह सीमा पार नहीं कर गया। नाइजीरिया की गंभीर स्थिति में हिंसक तत्वों, विशेषकर कट्टरवादी हिंसक संगठनों की बहुत बड़ी भूमिका है। अनेक वर्षों तक हिंसा के कायम रहने से स्थानीय खाद्य उपलब्धि की व्यवस्थाएं टूट जाती हैं और लोग बाहरी खाद्य कार्यक्रमों पर बुरी तरह निर्भर हो जाते हैं।


जहां पूर्वी अफ्रीका के कुछ भाग गंभीर सूखे से त्रस्त हैं, वहां यह भी सच है कि कई कारणों से अब सूखे का अधिक विनाशक रूप सामने आ रहा है। इसकी एक वजह तो यह है कि स्थानीय जलवायु व प्राकृतिक स्थितियों के अनुकूल जीवन जीने की जो पद्धति बहुत से किसान और घुमंतू पशुपालक अपनाते रहे हैं, उनकी ओर आधुनिक विकास योजनाओं व कार्यक्रमों ने जरूरी ध्यान नहीं दिया। इस कारण अब सूखे का सामना करना पहले से कठिन हो गया है। विकास की अनुचित नीतियों की वजह से भी कई स्थानों पर हिंसा बढ़ी, जैसे घुमंतू और स्थानीय लोगों के बीच हिंसा हुई।


पूर्वी अफ्रीका में सोमालिया की स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक मानी जा रही है। हाल ही में वहां से यह समाचार प्राप्त हुआ कि मात्र दो दिनों में 100 से अधिक लोगों की भूख व कुपोषण से मौत हो गई। इस संदर्भ में यह ध्यान में रखना जरूरी है कि इस क्षेत्र में कुछ वर्षों पहले पड़े अकाल में एक लाख से अधिक मौतें हो गई थीं, तब उसके बाद ही विश्व का ध्यान इस ओर गया था और वहां राहत सामग्री पहुंचाई गई थी। अकाल और हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों की तेजी से बिगड़ती स्थिति पर बहुत गंभीरता से ध्यान देना जरूरी है और इस बारे में जरूरी तथ्य उपलब्ध होने चाहिए कि ठीक-ठीक कैसी सहायता की किस स्थान पर जरूरत है।


इन चार क्षेत्रों के अतिरिक्त सीरिया, अफगानिस्तान, लीबिया, इराक जैसे देशों के कई क्षेत्र भी गंभीर स्थिति के दायरे में आने लगे हैं। इन चारों देशों में भी अत्यधिक हिंसा की समस्या रही है, जिसे बाहरी ताकतों ने सुलझाने के स्थान पर और बढ़ाया है। इस समय तो गंभीर रूप से प्रभावित सभी क्षेत्रों में राहत पहुंचाने पर ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा, पर इससे आगे यह सोचना जरूरी है कि उन गंभीर गलतियों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैसे रोका जाए, जिसके कारण समृद्ध संसाधनों वाले क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर भूख से मौत की आशंकाएं पैदा हो रही हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)