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दूरसंचार की दूसरी क्रांति- गोपाल विट्ठल

लगभग 75 फीसदी क्षेत्र और 90 फीसदी आबादी तक पैठ जमाकर मोबाइल ने देश के कोने-कोने में अपनी असरदार उपस्थिति दर्ज कराई है। आधुनिकतम तकनीकों, न्यूनतम शुल्क दरों और अनूठे बिजनेस मॉडलों के जरिये भारत ने दुनिया को दिखा दिया है कि जोश, कुशलता और उद्यमिता की बदौलत विश्व स्तर के उद्योग को कुछ ही वर्षों में कैसे खड़ा किया जाता है। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पांच फीसदी से अधिक का योगदान देकर टेलीकॉम क्षेत्र ने आज खुद को अर्थव्यवस्‍था को गति देने वाले जरूरी घटक के तौर पर साबित किया है।

वर्षों के अंतराल के बाद 2013 की शुरुआत में एयरटेल के साथ जुड़ने पर मुझे देश भर में घूमकर युवा ग्राहकों का मन टटोलने का मौका मिला। मैं जहां भी गया, वहां मैंने युवाओं में एक अजीब उत्साह देखा। यह उत्साह अपने मोबाइल से असीमित रोमांचकारी सेवाएं पाने का था। ये वे सेवाएं थीं, जिन्होंने उनके मोबाइलों को महज एक फोन से इंटरनेटयुक्त सुपर गैजेट्स बना दिया था। बात चाहे मनोरंजन की हो, या व्यापार की, उत्पादकता बढ़ाने और नए बाजारों तक पहुंच बनाने में मोबाइल ब्रॉडबैंड में असीम संभावनाएं हो सकती हैं। मगर ढाई लाख करोड़ रुपये के कर्ज के बोझ तले दबे इस उद्योग की आज जो हालत है, वह सारे जोश को ठंडा करने के लिए काफी है। करों और शुल्कों की ऊंची दरों के साथ बढ़ते कानूनी पचड़ों ने निवेशकों के भरोसे को कमजोर किया है।

दरअसल आज सुधार के महज किसी उपाय की नहीं, बल्कि पूरे टेलीकॉम क्षेत्र को बदलाव के एक नजरिये की दरकार है। ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में नई सरकार का आना अच्छा संकेत है। जिस ब्रॉडबैंड क्रांति का हम ख्वाब देखते हैं, वह हकीकत में तब्दील हो सकता है। जरूरत बस इतनी है कि पारदर्शी ढंग से ऐसे साहसी और निर्णायक कदम उठाए जाएं, जिससे दुर्लभ संसाधनों का कुशलतम उपयोग हो, और ऐसी व्यवस्‍था कायम हो सके, जो कम अवरोध वाली, समझने में आसान और भेदभाव न करने वाली हो।


इसके लिए मेरे कुछ सुझाव हैं। पहला, स्पेक्ट्रम की उपलब्‍धता सुनिश्चित की जाए और इसका व्यापार करने व इसे साझा करने की अनुमति हो। स्पेक्ट्रम एक अमूल्य राष्ट्रीय संसाधन है, जिसके बगैर ब्रॉडबैंड की कल्पना नहीं की जा सकती। इसके ज्यादातर हिस्से पर रक्षा बलों का नियंत्रण है, और बचा-खुचा जो हिस्सा टेलीकॉम क्षेत्र के हिस्से आता है, उसे हासिल करने के लिए तमाम खिलाड़ियों में होड़ लगी रहती है। भारतीय कंपनियों के पास औसतन 13 मेगा हर्ट्ज स्पेक्ट्रम उपलब्‍ध है, जबकि विकसित बाजारों में यह आंकड़ा 100 मेगा हर्ट्ज तक है। स्पेक्ट्रम की अपर्याप्‍त उपलब्‍धता कई तरह की समस्याएं पैदा करती हैं। कहीं कम उपभोक्ताओं के बीच ऑपरेटरों द्वारा स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल में अकुशल तरीका अख्तियार किया जाता है, तो कहीं उपभोक्ताओं की बड़ी आबादी के बीच ऑपरेटरों में भारी प्रतिद्वंद्विता है, जिससे नेटवर्क प्रभावित होता है और ज्यादा टावरों की जरूरत पड़ती है। इस कारण ऊर्जा की खपत भी अधिक होती है। इसलिए सरकार को पर्याप्‍त्‍ा स्पेक्ट्रम की उपलब्‍धता सुनिश्चित करने के लिए एक पारदर्शी तंत्र बनाना होगा।

भारत उन देशों में से है, जहां स्पेक्ट्रम का मूल्य सबसे ज्यादा है। यहां एक मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की कीमत 2,270 करोड़ रुपये है। इसकी वजह यह है कि हमारे यहां स्पेक्ट्रम के कृत्रिम अभाव का माहौल तैयार कर नीलामी में इसका बहुत कम हिस्सा रखा जाता है। सरकार को चाहिए कि वह सरकारी एजेंसियों से कुछ स्पेक्ट्रम निकालकर इसे अगले वर्ष की नीलामी में शामिल करे। दूसरा, नेटवर्क के सरल संचालन के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने की जरूरत है। दरअसल नगर निगमों के अपने नियम-कायदे होते हैं, जो हर शहर में अलग होते हैं। इस संदर्भ में अगर एक राष्ट्रीय नीति हो, तो इन सबसे तालमेल बैठाने में ऑपरेटरों को मुश्किल नहीं होगी। तीसरा, जुर्माने का निर्धारण न्यायसंगत और पारदर्शी तरीके से होना चाहिए। अभी स्थिति यह है कि मामूली-सी गलती पर भी टेलीकॉम उद्योग को भारी जुर्माना भरना पड़ता है। तिस पर लंबे समय तक चलने वाले मुकदमों से समय और संसाधन, दोनों की बर्बादी होती है। उद्योग और सरकार के बीच सहयोग बढ़ाने और भरोसे का माहौल तैयार करने के लिए जरूरी है कि कानूनों को सरल किया जाए और इनका क्रियान्वयन उचित ढंग से हो। चौथा, वित्तीय मुद्दों पर फैसला लेते समय सरकार को टेलीकॉम क्षेत्र के बढ़ते खर्चों पर भी नजर डालनी चाहिए। उसके खर्चों का बोझ कम करने के लिए अगर व्यावहारिक तरीका नहीं अपनाया गया, तो नेटवर्क के प्रसार के लिए जरूरी दीर्घकालिक निवेश पर संकट पैदा हो जाएगा।

टेलीकॉम क्षेत्र बड़े बदलाव के कगार पर है। हम एक ऐसे भविष्य की ओर देख रहे हैं, जिसमें खासकर युवा पीढ़ी के सपनों की उड़ान पर कोई रोक न हो। ऐसे में, सरकार और ऑपरेटरों से यह उम्मीद रखना लाजिमी है कि वे डाटा सेवाओं में क्रांति लाने में कुछ वैसी ही भूमिका निभाएंगे, जैसी पिछले दशक में मोबाइल पर ध्वनि आधारित सेवाओं के संदर्भ में निभाई गई थी। अपने दूरदर्शी नजरिये के साथ नई सरकार पहले ही उम्मीद का माहौल तैयार कर चुकी है। पहली बार मीडिया से रूबरू होते हुए संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा, 'अगर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार राष्ट्रीय राजमार्गों के लिए जानी जाती है, तो नरेंद्र मोदी की सरकार को ब्रॉडबैंड राजमार्गों के लिए पहचाना जाना चाहिए।' टेलीकॉम उद्योग ब्रॉडबैंड क्रांति के सपने को हकीकत में बदलने के लिए सरकार का हमराही बनने के लिए तैयार है।

(भारतीय एयरटेल के भारत और दक्षिण एशिया के एमडी और सीईओ)