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देश की नदियों को बचाने की एक नई उम्मीद-- ज्ञानेन्द्र रावत

बीते दिनों देश की सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र की दो नदियों उल्हास और वलधूनी में प्रदूषण करने के लिए राज्य सरकार पर 100 करोड़ रुपये का भारी जुर्माना लगाया है। अदालत ने कहा कि जुर्माने की इस राशि से इन दोनों प्रदूषित नदियों को फिर से उनके मूल स्वरूप में लौटाया जाएगा। वैसे 2015 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी ने महाराष्ट्र की इन दोनों नदियों में भारी प्रदूषण करने पर 95 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। राज्य सरकार ने एनजीटी के फैसले के खिलाफ मुंबई हाईकोर्ट में अपील दायर की और स्टे ले लिया। इसके बाद ह्यूमन राइट लॉ नेटवर्क ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च अदालत में अपील दायर की। यह फैसला उस समय आया है, जब नदी प्रदूषण से मुक्ति की उम्मीद अब सरकारों से करना बेमानी हो गया है। यह उस देश में नदियों की बदहाली की तस्वीर है, जहां के लोग नदियों से सांस्कृतिक और पारंपरिक दृष्टि से जुड़े हुए हैं। वे नदियों को मां मानते हैं, उनकी पूजा करते हैं और नदियों में स्नान कर खुद को धन्य मानते हैं। गंगा में डुबकी लगाना तो उनके लिए पुण्य का सबब है, लेकिन आज हमारी ज्यादातर नदियां नाले का रूप अख्तियार कर चुकी हैं, कहीं वे कुड़ाघर बन चुकी हैं, कहीं वह सूख गई हैं, कहीं मौसमी नदी बनकर रह गई हैं और कहीं उनका नामो-निशान तक नहीं रह गया है। इन्हीं हालात के मद्देनजर एनजीटी को यह कहने पर विवश होना पड़ा कि नदियां साफ होने की बजाय बीते सालों में और प्रदूषित होती चली गईं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की बात करें, तो यहां की सबसे प्रदूषित नदियों में हिंडन शीर्ष पर है। उसके बाद वरुणा, काली, गंगा और यमुना हैं। हिंडन में ऑक्सीजन का स्तर शून्य रह गया है। नदी में मानक से अधिक बैक्टीरिया होने के कारण इसका पानी जहरीला हो चुका है। इसके अलावा गुजरात की अमलाखेड़ी, खारी, हरियाणा की मारकंदा, मध्य प्रदेश की खान, आंध्र प्रदेश की मुंशी, महाराष्ट्र की भीमा भी प्रदूषित नदियों के मामले में शीर्ष पर हैं।

हालांकि बात जब प्रदूषण मुक्ति की आती है, तो सबसे पहले गंगा और यमुना का जिक्र आता है। गंगा की सफाई पर 1986 से काम जारी है। गंगा एक्शन प्लान इसका प्रमाण है। 2014 में राजग सरकार ने सत्ता में आने के बाद नमामि गंगे परियोजना प्रारंभ की। यह योजना भी 1986 में शुरू हुई तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना के रूप में जानी गई। इसकी सफलता के लिए केंद्र सरकार के सात मंत्रालयों की साख दांव पर लगी। पहले दावा था कि गंगा सफाई का नतीजा 2018 से नजर आने लगेगा। अब कहा जा रहा है कि गंगा के 150 प्रोजेक्ट मार्च 2018 से अपना काम शुरू करेंगे। इनमें नदी में प्रदूषित पानी को जाने से रोकना व गंदे जल का पुनर्चक्रण कर बिजली से चलने वाले वाहनों के लिए ईंधन के रूप में बायो सीएनजी का उत्पादन करना है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी और उत्तराखंड के हरिद्वार में हाईब्रिड पीपीपी मोड में केंद्र, राज्य और निजी कंपनियों के सहयोग से सीवेज शोधन संयंत्र बनाए जाएंगे। इन पर मार्च 2018 में काम शुरू किया जाएगा। ये अगले दो साल में बनकर तैयार होंगे।

 


यही हाल यमुना का है, जिसे बरसों पहले बड़े जोशो-खरोश के साथ टेम्स बनाने का दावा किया गया था। पर आज भी यमुना में नालों का गिरना बदस्तूर जारी है। एनजीटी यमुना सफाई के मुद्दे पर बार-बार केंद्र, दिल्ली सरकार और दिल्ली जल बोर्ड को चेतावनी दे रहा है। उसने यमुना में कचरा फेंकने पर और यमुना किनारे शौच करने पर प्रतिबंध लगाया और उल्लंघन करने पर 5,000 रुपये दंड भी लगाया, पर बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ी। नदियों के अस्तित्व की रक्षा के लिए सिर्फ सरकारी प्रयास ही नहीं, बहुत सारे आंदोलन भी हुए। साधु-संत और स्वयंसेवी संगठनों द्वारा यात्राएं भी निकाली गईं। कुंभ जैसे अवसरों पर भी नदियों को बचाने के संकल्प लिए गए। लेकिन कोई नतीजा निकलता नहीं दिखाई दिया। ताजा फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने जरूर एक उम्मीद बंधाई है। यह माना जा रहा है कि इससे नदियों की सफाई का एक बड़ा रास्ता खुलेगा। हालांकि जिम्मेदारी फिर भी उन्हीं सरकारों पर होगी, जो अभी तक इससे बचती आई हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)