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देश के हृदय को बचाने की पहल- विनीत नारायण

विगत जनवरी में शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने प्रधानमंत्री की चहेती योजना ‘हृदय' की शुरुआत की। इस योजना का लक्ष्य देश के पुरातन शहरों को सजा-संवारकर दुनिया के आगे प्रस्तुत करना है, जिससे भारत की आत्मा यानी यहां की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण हो सके। इसीलिए अंग्रेजी में जो नाम रखा गया है, उसके प्रथम अक्षरों को मिलाकर ‘हृदय' शब्द बनता है।

योजना का उद्देश्य प्रशंसनीय है, क्योंकि जागरूकता के अभाव में ऐतिहासिक धरोहरें बहुत तेजी से नष्ट हो रही हैं। पिछले दो दशकों में, जब से शहरी जमीन के दाम दिन दूने-रात चौगुने बढ़े हैं, इन धरोहरों की तो शामत आ गई है। भूमाफिया इन्हें कौड़ियों के मोल खरीदकर ध्वस्त कर देते हैं। जो कुछ कलाकृतियां, भित्तिचित्र, पत्थर की नक्काशियां या लकड़ी पर कारीगरी का काम होता है, वह कबाड़ी के हाथ बेच दिया जाता है। यह ऐसा हृदय विदारक दृश्य है, जिसे देख हर कलाप्रेमी चीख उठेगा। पर भ्रष्ट नौकरशाही, नाकारा नगरपालिकाएं और संवेदनहीन भूमाफिया के दिल पर कोई असर नहीं होता।

शुरू में इस योजना में अमृतसर, अजमेर, वाराणसी, मथुरा, जगन्नाथपुरी जैसे बारह शहर शामिल किए गए हैं। बाद में इस सूची का विस्तार होगा। अब इन शहरों की धरोहरों की रक्षा का दायित्व सिर्फ पुरातत्व विभाग के पास नहीं होगा, बल्कि धरोहरों से प्रेम करने वाले लोग भी इन्हें बचाने में सक्रिय होंगे।

योजना के तहत धरोहरों के आसपास के आधारभूत ढांचे को भी सुधारा जाएगा। इसके अलावा इससे संबंधित निर्णय लेने का अधिकार केवल नौकरशाही के हाथ में ही नहीं रहेगा, बल्कि संबंधित क्षेत्र के अनुभवी लोगों पर छोड़ दिया गया है। इससे जीर्णोद्धार के काम में कलात्मकता और सजीवता आने की संभावना बढ़ गई है। इसके बावजूद यह काम इतना आसान नहीं है।

किसी भी पुराने शहर के बाजार में नक्काशीदार झरोखों से सजी दुकानें दिखाई पड़ती हैं। इन दुकानों की साज-सज्जा अगर प्राचीन तरीके से करवा दी जाए, तो ये अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हो सकती हैं। इस योजना के तहत ऐसे तमाम पुरातन शहरों की धरोहरों को सजाने-संवारने का प्रयास किया जा सकता है। पर इसके लिए स्थानीय व्यापारियों को आगे आना पड़ेगा।

इस प्रक्रिया में पुरानी धरोहरों पर नाजायज कब्जा जमाए लोगों को हटाना पड़ेगा, जो आसान काम नहीं है। लेकिन अगर जिला प्रशासन तथा राज्य और केंद्र सरकारें कमर कस लें, तो छोटी-सी जांच में साफ हो जाएगा कि कुछ लोग बिना किसी कानूनी अधिकार के अरबों की संपत्ति दबाए बैठे हैं। कब्जाधारियों को हटाने पर प्राचीन धरोहरों को संस्कृति और पर्यटन के विस्तार के लिए उपयोग में लाया जा सकेगा। जीर्णोद्धार होने से ऐसे भवनों की आयु बढ़ जाएगी और इनके छत्र तले अनेक स्थानीय कलाओं के विस्तार और प्रदर्शन के मॉडल तैयार किए जा सकेंगे। हृदय योजना के तहत नौजवानों को रोजगार देने की भी बात है, जिन्हें प्रशिक्षित कर क्षेत्रीय पर्यटन के विकास में बड़ी भूमिका दी जा सकती है।

हर पुराने शहर के नागरिकों, कलाप्रेमियों, कलाकारों, समाज सुधारकों, वकीलों और पत्रकारों को साथ लेकर जनजागृति अभियान चलाना पड़ेगा, जिससे जनता हर निर्माणाधीन परियोजना की निगरानी करे। तभी कुछ सार्थक उपलब्धि हो पाएगी। इसके बगैर हृदय योजना अपने लक्ष्य प्राप्ति में सफल नहीं हो पाएगी।