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देसी विद्वता का लेखा-जोखा ।। रवि दत्त बाजपेयी ।।

- वर्ष 1917 में प्रख्यात विश्व कोशकार आचार्य बिजेंद्रनाथ सील ने प्रेसीडेंसी कॉलेज में भौतिक शास्त्र के एक टेम्पररी असिस्टेंट प्रोफेसर को कोलकाता विश्वविद्यालय के परीक्षा परिणामों में सांख्यिकीय प्रवर्ति का अध्ययन करने का आग्रह किया.

भौतिक शास्त्र के प्राध्यापक महोदय को आंकड़ों की नयी विद्या में बहुत आनंद आया, तो उन्होंने अपने कॉलेज की भौतिकी प्रयोगशाला में इस पर नये विषय के सिद्धांतों-धारणाओं को परखने के लिए एक सांख्यिकीय प्रयोगशाला ही बना ली.

सांख्यिकीय के साथ नये प्रयोगों को आतुर यह महानुभाव और कोई नहीं, बल्कि भारतीय सांख्यिकीय के प्रवर्तक प्रोफेसर प्रशांत चंद्र महालानोबीस थे. महालानोबीस और उनके सहयोगियों ने ही 17, दिसंबर 1931 को कोलकाता में भारतीय सांख्यिकीय संस्थान की स्थापना की.

कोलकाता से भौतिकी में स्नातक करने के बाद महालानोबीस वर्ष 1912 में उच्च अध्ययन के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय गये. वहां पढ़ाई के दौरान उन्हें सांख्यिकीय जर्नल बायोमेट्रिक देखने का अवसर मिला. महालानोबीस, बायोमेट्रिक से इतना प्रभावित हुए कि जब 1915 में वे अवकाश पर भारत आये तो इस जर्नल के सारे उपलब्ध अंक अपने साथ ले आये. प्रथम विश्व युद्ध के चलते महालानोबीस फिर तत्काल इंग्लैंड नहीं लौट पाये और उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में भौतिकी के प्राध्यापक का पद स्वीकार कर लिया.

1920 में भारतीय प्राणी विज्ञान एवं मानव विज्ञान के निदेशक ने कोलकाता के 300 एंग्लो इंडियन लोगों की शारीरिक माप के आंकड़ों पर महालानोबीस से सांख्यिकीय विश्लेषण करने को कहा. वर्ष 1922 में महालानोबीस ने इस अध्ययन पर पहला शोध पत्र प्रकाशित किया, जिससे प्रभावित होकर मौसम विभाग ने महालानोबीस से मौसम के अनुमानों में सहयोग देने का अनुरोध किया.

महालानोबीस ने पाया कि पृथ्वी की सतह पर मौसम परिवर्तन का नियंत्रण इस सतह से चार किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित क्षेत्र में होता है. इस नवीन खोज के लिए महालानोबीस को अलीपुर वेधशाला में मौसमविज्ञानी नियुक्त किया गया. प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रोफेसर के साथ ही वे 1922 -1926 में इस पद पर भी रहे.

1930 में उन्होंने बंगाल के राज्य में जूट की कुल फसल का आकलन करने के लिए एक सर्वेक्षण किया. सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़े बाद में वास्तविक व्यापार आंकड़े से बहुत करीब थे. महालानोबीस ने यह सिद्ध किया कि भारत जैसे विकासशील देश में इस प्रकार के सर्वेक्षण सस्ते और सटीक हैं. बाद में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (नेशनल सैंपल सर्वे) में इन्हीं मान्यताओं को आधार बनाया गया था.

महालानोबीस और उनके सहयोगियों ने 17, दिसंबर 1931 को कोलकाता में इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट (भारतीय सांख्यिकीय संस्थान) की स्थापना की. प्रोफेसर महालानोबीस अभ्यासवश भौतिक शास्त्री , स्वभाववश सांख्य-शास्त्री और संयोगवश अर्थशास्त्री बन गये, सबसे बड़ा आश्चर्य यह कि उनके सारे महत्वपूर्ण योगदान उन विषयों में थे, जिन विषयों में उनके पास कोई औपचारिक शैक्षणिक उपाधि नहीं थी. प्रोफेसर महालानोबीस का विश्वास था कि ‘सांख्यिकी के लिए निश्चित उद्देश्य होना अनिवार्य है, जिसका एक पहलू वैज्ञानिक प्रगति है और दूसरा पहलू मानव कल्याण एवं राष्ट्रीय विकास है.’

अपनी स्थापना के दिन भारतीय सांख्यिकीय संस्थान एक गैर सरकारी व अलाभकारी संस्था बना और पी सी महालानोबीस इसके मानद सचिव बने. पहले साल का कुल व्यय था 238 रु पये, कुल कर्मचारी संख्या थी मात्र दो. प्रो महालानोबीस और उनके सहयोगियों ने इस संस्थान की स्थापना के समय यहां ऐसे सांख्यिकीय सिद्धांत और विधियों को विकसित किया जिनसे प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान क्षेत्रों में अनुसंधान और व्यावहारिक उपयोगिता को बढ़ावा दिया जा सके.

वर्ष 1933 में संपादक प्रो महालानोबीस की देखरेख में ‘सांख्य’ नामक आधिकारिक मुखपत्र का प्रकाशन शुरू हुआ. यह जर्नल आज भी सांख्यिकी के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित पत्रिका के रूप में माना जाता है. गुरु देव रवींद्र नाथ टैगोर ने ‘सांख्य’ पत्रिका में प्रकाशन के लिए एक कविता भी लिख कर दी थी.

भारतीय सांख्यिकीय संस्थान अपनी स्थापना के कुछ ही दिनों के भीतर संपूर्ण विश्व में सांख्य शास्त्र के शीर्ष संस्थानों में आ गया. सन 1936 में महालानोबीस ने कोलकाता एंग्लो इंडियन व अन्य नस्ल के लोगों के बीच सांख्यिकीय दूरी का सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसे ‘महालानोबीस दूरी’ के नाम से पुकारा जाता है. 1931-1946 के बीच इस संस्थान ने कई अन्य नवीन सर्वेक्षण किये और सर्वेक्षण के नये अभिनव तरीकों, नये सिद्धांतों की व्याख्या की.

स्वतंत्र भारत में प्रोफेसर महालानोबीस नवगठित कैबिनेट के लिए सांख्यिकीय सलाहकार नियुक्त किये गये और दूसरी पंच वर्षीय योजना के निर्माता भी बने. 1955 में उन्होंने औद्योगीकरण द्वारा बेरोजगारी खत्म करने के लिए योजना बनायी. उन्होंने भारी उद्योगों और इस्पात कारखानों में बड़े पैमाने पर निवेश की सिफारिश की; उनकी इस सोच के पीछे वर्ष 1940 का गंभीर आर्थिक संकट था, जब भारत में अतिरिक्त श्रम के लिए कोई रोजगार उपलब्ध नहीं था.

भारत में इस संस्थान को राष्ट्रीय महत्व के एक संस्थान के रूप में मान्यता दी गयी और स्वयं प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद में ‘भारतीय सांख्यिकी संस्थान 1959 अधिनियम’ प्रस्तुत किया था. इस अधिनियम द्वारा इस संस्थान को सांख्यिकी में डिग्री और डिप्लोमा प्रदान करने का अधिकार दिया गया. आज इस संस्थान से सांख्यिकी के अलावा गणित, कंप्यूटर विज्ञान, क्वांटिटेटिव इकोनॉमिक्स जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में भी उच्च अध्ययन की सुविधा उपलब्ध है.

1991 के आर्थिक सुधारों, वैश्वीकरण के बाद भारत की आर्थिक योजना निर्माण में राष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका सीमित हो गयी है. इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट की भारतीय आर्थिक नीति निर्धारण में भी भागीदारी घट गयी है, लेकिन सरकारी क्षेत्र में प्रभाव के घटने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि एक शैक्षणिक-अनुसंधान संस्थान के रूप में इस संस्थान की प्रतिष्ठा में कोई कमी आयी है.

भारतीय सांख्यिकीय संस्थान की स्थापना के पीछे इसके संस्थापक का दर्शन क्या था? संस्थान के आधिकारिक मुखपत्र सांख्य के सन 1933 के सबसे पहले अंक में प्रोफेसर महालानोबीस ने संपादकीय में लिखा-‘यह हमारा विश्वास है कि स्टैटिस्टिक्स की मूल अवधारणा में अंतर्निहित भाव को प्राचीन भारतीय शब्द सांख्य भली प्रकार से निरूपित करता है. संस्कृत में सांख्य का शाब्दिक अर्थ संख्या है जबकि इसका तात्विक अर्थ यथेष्ट ज्ञान है.

हमारी व्याख्या के अनुसार स्टैटिस्टिक्स का मौलिक उद्देश्य संख्या और संख्यात्मक विश्लेषण द्वारा हमें वास्तविकता का यथेष्ट और पर्याप्त ज्ञान देना है. प्राचीन भारतीय शब्द सांख्य इसी विचार का मूर्तरूप है और इसी कारण से हमने इंडियन जर्नल ऑफस्टैटिस्टिक्स के लिए इस नाम को चुना है.’ भारतीय सांख्यिकीय संस्थान और इसके संस्थापक की बुद्धि विश्व के नवीनतम ज्ञान को पाने के लिए सातवें आसमान तक उड़ने को तत्पर है लेकिन उनके पैर अपने संस्कारों की भूमि पर दृढ़ता से जमे हैं.