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दो दशकों की हिंसा में एक लाख अनाथ

श्रीनगर [एशिया डिफेंस न्यूज़ इंटरनेशनल]। संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत बच्चों से संबंधित संस्थान यूनिसेफ ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि जम्मू-कश्मीर में गत दो दशकों से जारी हिंसा में अनाथ बच्चों की संख्या एक लाख से भी ऊपर पहुंच गई है और उनकी देखरेख के लिए कोई भी महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाया गया है।

कश्मीर मीडिया नेटवर्क के अनुसार संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत कई संस्थान सक्रिय है जो विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे है। इनमें यूनिसेफ को बच्चों से संबंधित जि़म्मेदारी दी गई है। इस संस्थान ने दुनिया भर में बच्चों के उत्थान का काम अपने हाथो में ले रखा है जिनमें उसे स्थानीय सरकारों का सहयोग भी मिलता है।

यूनिसेफ ने हाल में अनाथ बच्चों की रिपोर्ट जारी की है जिसमें जम्मू-कश्मीर की विशेष रूप से चर्चा की गई है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य में गत दो दशकों में एक लाख से अधिक बच्चे अनाथ हो गए है और उनकी स्थिति दयनीय है। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थानीय सरकार की ओर से अनाथ बच्चों की देखरेख के लिए कोई भी महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में बच्चों के अनाथ होने का कारण केवल हिंसा नहीं है बल्कि गरीबी, बीमारी और शोषण भी है। हालांकि राज्य में कई गैर सरकारी संगठन जम्मू कश्मीर के अनाथ बच्चों की स्थिति सुधारने के लिए सक्रिय है, लेकिन सरकारी स्तर पर इस बारे में कोई भी कोशिश नहीं की जा रही है।

इस बीच, एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन ने अपने आंकड़ो में बताया है कि जम्मू-कश्मीर में हिंसा के कारण गत दो दशक में 97200 बच्चे अनाथ हुए है। संगठन का कहना है कि उसने जो आंकड़े जमा किए है उनके अनुसार 2008 तक जम्मू-कश्मीर में 97200 बच्चे अनाथ और 32400 औरतें विधवा थीं और इस संख्या में बढ़ोतरी हो रही थी।

एनजीओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में आम लोगों का जीवन दयनीय बना हुआ है। दो दहाइयों में राज्य में एक लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है जिनमें अधिकतर आम नागरिक है।

सामाजिक विशेषज्ञों का कहना है कि विधवाएं दूसरी शादी कर लेती है और उनका पहले घर के बच्चों पर ध्यान नहीं होता। अनाथ बच्चों की शिक्षा के लिए हालांकि बहुत से संस्थान सक्रिय है मगर विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों की शिक्षा अपने लोगों के पास ही हो पाती है। उनका कहना है कि अनाथ हुए बच्चों को अनाथालय में डालने से अच्छा है कि उनके अपने लोग उनका पालन पोषण करें।