Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/धातु-से-जुड़े-विनाश-की-कहानी-आउट-ऑफ-दिस-अर्थ-सच्चिदानंद-सिन्हा-3559.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | धातु से जुड़े विनाश की कहानी : आउट ऑफ दिस अर्थ- सच्चिदानंद सिन्हा | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

धातु से जुड़े विनाश की कहानी : आउट ऑफ दिस अर्थ- सच्चिदानंद सिन्हा

गरीबों के हलके तसले और पतीलों से लेकर विशालकाय वायुयानों की काया बनाने वाले अल्युमिनियम के उत्पादन और विपणन के पीछे घोर शोषण और विध्वंस की जो गाथा छिपी है, उससे हममें से बहुत थोड़े लोग ही वाकिफ होंगे.  आधुनिक औद्योगीकरण आदम के आदिम अभिशाप की अभिव्यक्ति भर नहीं है. यह मनुष्य के परिवेश के बार-बार नष्ट होने, इससे विस्थापित होकर आजीविका की तलाश में संसार भर में भटकने और अमानवीय स्थितियों में काम करने के लिए मजबूर होने वाले आदिवासियों और कृषकों की कहानी भी है.

ऐसी त्रासदियों के पीछे एक धातु अल्युमिनियम का दूसरी धातु और उत्पादों से कहीं बड़ा हाथ है. फेलिक्

स पैडेल और समरेंद्र दास की पुस्तक ‘आउट ऑफ दिस अर्थ’ जल-जंगल-जमीन और उन पर आश्रित लोगों के जीवन को अल्युमिनियम उद्योग द्वारा नष्ट किए जाने की महागाथा है. छह सौ पृष्ठों के ग्रंथ और लगभग डेढ़ सौ पृष्ठों के नोट और संदर्भ स्रोत में औद्योगीकरण और विशेषकर अल्युमिनियम उद्योग के पीछे के अनेक अनजाने और प्रायः आक्रोशित करने वाले तथ्य उजागर होते हैं.

अल्युमिनियम की विशेषता यह है कि यह न सिर्फ युद्धक वायुयानों और तरह-तरह के गोलों का बाहरी आवरण तैयार करता है बल्कि स्वयं भी घातक विस्फोटकों, जैसे नापाम बम के रासायनिक यौगिक का हिस्सा बन जाता है. इसके उपयोग की विविधता और घातक गुणों के कारण प्रथम विश्वयुद्ध के बाद से ही संसार भर में बॉक्साइट को खोदने और इससे अल्युमिनियम उद्योग को विकसित करने की होड़ लगी रही है.

बॉक्साइट से अल्युमिना उत्पादन और फिर स्मेल्टिंग की प्रक्रिया से अल्युमिनियम तैयार करना दूसरे धातुओं को तैयार करने से अधिक जल एवं ऊर्जा गटकने वाला होता है. दूसरे खनिजों के विपरीत, जिन्हें प्रायः गहराई से खोदना होता है, बॉक्साइड धरती की ऊपरी परत और पर्वत चोटियों की उन ऊपरी परतों पर ही उपलब्ध होता है, जहां वन होते हैं. इस कारण इसके खनन से विशाल पैमाने पर पर्वतों और समतल भूमि पर फैले वन प्रदेशों को उजाड़ना पड़ता हैै. लेखक बताते हैं कि मिस्र का आस्वान डैम, जिससे एकलाख नुबियाई मूल के लोग विस्थापित हुए, चीन का थ्री गॉर्जेज डैम, पूर्व के सोवियत यूनियन के 16 में से 13 डैम एक हद तक अल्युमिनियम स्मेल्टर को बिजली आपूर्ति करते थे. भारत में कोयना की योजना के पीछे भी प्रारंभ में ऐसे ही उद्देश्य थे. तमिलनाडु में आंशिक रूप से मेट्टायूल डैम भी इस प्रयोजन को सिद्ध करता था. रिहंद का डैम, रेणुकुट स्थित बिड़ला की हिंडाल्को की जरूरत पूरा करता था, जिससे उत्पादित बिजली नामलिहाजी कीमत पर उपलब्ध कराई जाती थी. लेखकों के अनुसार वर्ष 2009 ईस्वी में उड़ीसा में 131 बड़े डैम थे जो प्रायः इस उद्योग से संबद्ध थे. चाहे यह ब्रिटिश गुयाना हो, सूरिनाम, हैती  या फिर जमैका, संसार भर में इस उद्योग से स्थानीय आबादियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ है.

पुस्तक के केंद्र में उड़ीसा के बॉक्साइट खनन की कहानी है जिसे हम आज माओवादी उभार का नाम देते हैं. वह दरअसल उड़ीसा के खनन उद्योग से निर्वासित हो रहे आदिवासी और कृषकों की जीवन रक्षा का अंतिम और प्रायः निराश अभियान है. इसके पीछे असफल, अहिंसक प्रतिरोधों का इतिहास भी रहा है. वैसे तो पुस्तक मूलतः उड़ीसा के चप्पे-चप्पे के अध्ययन पर आधारित अल्युमिनियम उत्पादन की त्रासद कहानी है लेकिन यह संसार भर में आदिवासियों और मूलवासियों के औद्योगीकरण के क्रम में विस्थापन की कहानी बन जाती है.