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धान की बालियां आते वक्त बारिश अटकी, निपटने सरकार के पास प्लान नहीं

रायपुर। छत्तीसग़ढ़ के किसानों ने कृषि विभाग के आकस्मिक प्लान पर भरोसा करके अर्ली वैरायटी का धान तो लगा लिया लेकिन अब वे खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं। बारिश ऐसे वक्त पर रुकी है जब धान के बढ़ने का समय था। अब धान में बालियां आने का समय आ गया है लेकिन पानी नहीं मिलने के कारण पौधों की इतनी बढ़त ही नहीं हो पाई है कि उसमें बालियां आ सकें। किसानों का कहना है कि अब वक्त गुजर चुका है, अब पानी गिरता भी है तो उनकी फसल में बालियां नहीं आएंगी।

मौसम विभाग की चेतावनी के बाद कृषि विभाग ने प्रदेश भर में खरीफ की फसल के लिए कृषि विभाग ने जिलेवार आकस्मिक प्लान तैयार किया था। यह प्लान केंद्र से एप्रूवल के बाद पूरे छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए लागू किया गया। इस प्लान में कम बारिश की आशंका को देखते हुए किसानों को अर्ली वैरायटी लगाने की सलाह दी गई। धान की अधिकांश अर्ली वैरायटी की फसल 110 से 115 दिनों में तैयार हो जाती है।

किसानों ने 15 जून के बाद हुई बारिश के बाद अर्ली वैरायटी खेतों में लगा तो दी। महीने भर पानी अच्छा गिरा। इससे फसल करीब छह अंगुल तक बढ़ गई। जैसे ही बियासी और रोपाई का समय आया, पानी गिरना बंद हो गया। खेतों में पानी सूख गया और धान की बढ़त रुक गई। किसान आसमान की तरफ देखते रहे और वक्त गुजरता गया। किसानों का कहना है चूंकि फसल की बढ़त नहीं हुई है इसलिए अब पानी मिले भी तो उनमें बालियां नहीं आएंगी।

खेतों में खरपतवार की बालियां

नईदुनिया टीम ने राजधानी रायपुर से लगे गांवों का दौरा किया तो पाया कि खेतों में पानी नहीं आने से दरारें पड़ गई हैं। थोड़ी बहुत नमी है भी तो उससे खरपतवार तेजी से बढ़ गया है। यहां के असिंचित क्षेत्र के किसानों ने फसल की उम्मीद छोड़ दी है।

अर्ली वैरायटी के अलाव नहीं है दूसरा विकल्प

कृषि वैज्ञानिक डॉ. संकेत ठाकुर का कहना है कि अल्प वर्षा होने की स्थिति में किसानों के पास अर्ली वैरायटी लगाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। बारिश का कोई विकल्प नहीं है लेकिन बांधों से समय पर पानी छोड़कर फसलों को चौपट होने से बचाया जा सकता है। लेकिन असिंचित क्षेत्र के लिए बारिश के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

प्रदेश में बारिश की स्थिति अलग-अलग है। जिले वार समीक्षा के बाद हमने कृषि विभाग कै मैदानी अमले को फील्ड में उतरकर वहां की स्थिति के मुताबिक तत्काल नया आकस्मिक प्लान बनाने का निर्देश दिया है। - अजय सिंह, एसीएस, कृषि

अभनपुर और आरंग ब्लॉक के अधिकांश गांवों में खेती सूखने की कगार पर है। जल संसाधन विभाग गंगरेल बांध से तत्काल पानी छोड़कर फसल चौपट होने से बचा सकता है। इस संबंध में मैंने कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को पत्र भी लिखा है। जल संसाधन विभाग के अफसर पीने के पानी के संकट की बात कह रहे हैं। 10 फीसदी पानी बचाकर बाकी पानी छोड़ दें तो खेती को बचाया जा सकता है। - धनेंद्र साहू, विधायक, अभनपुर

किसानों ने छोड़ी उम्मीद

तीन एकड़ में छींटा बुआई जून में की थी। पानी नहीं गिरने पर अंकूरण सूख गया। जुलाई में पानी गिरा तो फिर बुआई की। कुछ दिनों की बारिश के बाद फिर पानी बंद हो गया। खेत सूख गए, धान की बाढ़ नहीं हो पाई अब पानी मिला भी तो कोई फायदा नहीं। -कंवल गेंड्रे, किसान

साढ़े तीन एकड़ में धान बोया था। अर्ली वैरायटी 1010 लगाया। करीब 90 दिन हो गए। अब धान के पोटराने यानि गर्भाधान का समय भी निकल गया है। अब यह घास भर रह गया है। - धनऊराम गिलहरे, किसान

चार एकड़ में धान लगाया था। पानी नहीं गिरने से केवल चार अंगुल ही बढ़ पाया है। रोपा बियासी नहीं हो पाई। अब खेतों में केवल खरपतवार ही नजर आ रहा है। - नंदुराम बंजारे, किसान