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धान, गेहूं का स्टॉक जरूरत से बहुत ज्यादा, फुल हो चुके हैं गोदाम, किसानों के सामने नया संकट

बजट 2020-21 पेश करते हुए देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किसानों के लिए 16 सूत्रीय फॉर्मूले की घोषणा की थी। 16 सूत्रीय फॉर्मूले में वेयर हाउस और कोल्ड स्टोरेज का भी जिक्र था। वित्त मंत्री ने कहा कि नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) नये वेयर हाउस बनायेगा और इसकी संख्या बढ़ाने के लिए पीपीपी मॉडल को अपनाया जायेगा। ब्‍लॉक स्‍तर पर भंडार गृह बनाये जाने का प्रस्‍ताव दिया गया है। ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार पहली बार भंडारण को लेकर सजग दिख रही है। वर्ष 2017 में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत 100 लाख टन क्षमता के स्टील साइलो के निर्माण लक्ष्य रखा था लेकिन 31 मई 2019 तक सरकार महज 6.75 लाख टन क्षमता के ही स्टील साइलों बना सकी। इसमें मध्य प्रदेश में 4.5 लाख टन और पंजाब में 2.25 लाख टन की क्षमता वाले स्टील साइलो बनाये गये। भारत के पास अप्रैल 2020 तक गेहूं और चावल का स्टॉक जरूरत से ढाई गुना ज्यादा हो जायेगा और हमारे गोदाम लगभग भर चुके हैं। इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ सकता है। सरकार ने गोदाम बनाने की बात तो की है, लेकिन उसे बनने में कितना समय लगेगा और निर्धारित लक्ष्य को कब तक पूरा किया जायेगा इसका भी जिक्र कहीं नहीं है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि नाबार्ड, भारतीय खाद्य निगम और केंद्रीय भंडारण निगम की मदद से गोदाम बनाये जायेंगे, लेकिन गोदामों की स्थिति पहले से ही खराब है। धान की खरीदी चल रही है जबकि मार्च के आखिरी हफ्ते से मंडियों में गेहूं की आवक शुरू हो जायेगी। इस बीच केंद्र सरकार ने पंजाब एमएसपी पर गेहूं कम खरीदने को कहा है।

आखिर क्यों जरूरी हैं वेयरहाउस और कोल्ड स्टोरेज?
 
भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (ऐसोचैम) की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में कोल्ड स्टोरेज की क्षमता बहुत कम है जिस कारण 11 फीसदी ही खराब होने वाली उपज को सुरक्षित रखा जा पाता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा फल, सब्जी उत्पादक देश है, लेकिन आश्चर्च वाली बात यह है कि इसमें कुल 40 से 50 फीसदी उपज खराब हो जाती है जिसकी कुल कीमत करोड़ों में होती है। ऐसोचैम की रिपोर्ट में संस्था के पूर्व महासचिव डीएस रावत कहते हैं, "भारत के पास कोल्ड स्टोरेज की संख्या बहुत कम है। ऐसे में जो फसलें जल्दी खराब हो जाती हैं उन्हें स्टोर नहीं जा पाता। हमारे पास 30.11 मिलियन टन उपज स्टोर करने की ही क्षमता है।" "पर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी, प्रशिक्षित कर्मियों की कमी, पुरानी तकनीक और बिजली आपूर्ति में कोल्ड स्टोरेज की राह में बाधा है।" रावत आगे कहते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात में 60 फीसदी कोल्ड स्टोरेज हैं। नेशनल सेंटर फॉर कोल्ड चेन डेवलपमेंट, उत्तर प्रदेश के खाद्य उद्योग विकास अधिकारी एसके चौहान गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, " बात अगर उत्तर प्रदेश की करेंगे तो हमारे यहां आलू के लिए पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज हैं, लेकिन दूसरी खराब होने वाली फसलों के लिए व्यवस्था नहीं है। बजट में सरकार ने कहा तो है लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि इसे कैसे बढ़ाया जाता है। दूसरी फसलों के लिए बड़ी संख्या में कोल्ड स्टोरेज बनाने की जरूरत है।"

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