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नई शिक्षा नीति क्या लड़कियों की स्कूल वापसी करा पाएगी?

-बीबीसी,

केंद्र सरकार ने बुधवार को नई शिक्षा नीति-2020 को मंज़ूरी दे दी जिसमें स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में कई बदलाव किए गए हैं. इसमें शिक्षा पर सरकारी ख़र्च को 4.43% से बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का छह फ़ीसद तक करने का लक्ष्य है.

लेकिन क्या इसमें उन लड़कियों की बात है जो 14 साल की उम्र तक आते-आते स्कूल छोड़ देती हैं.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक़, हर साल 16.88% लड़कियाँ आठवीं के बाद स्कूल छोड़ देती हैं.

इनमें से कई लड़कियाँ कम उम्र में शादी करने के लिए मजबूर की जाती हैं. कम उम्र में माँ बनने की वजह से कई लड़कियों की असमय मौत हो जाती हैं.

मगर विश्लेषकों के अनुसार, इन सभी समस्याओं की शुरुआत उस वक़्त होती है जब किसी लड़की को सातवीं – आठवीं के बाद स्कूल छोड़ना पड़ता है.

सरकार बीते कई दशकों से इस समस्या से निपटने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है.

वहीं कोरोना वायरस महामारी लड़कियों को स्कूल से दूर करती दिख रही है. ऐसे समय में केंद्र सरकार की ओर से लाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक ताज़ा हवा के झोंके जैसी है.

नई शिक्षा नीति के तहत लड़कियों और ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए 'लिंग समावेशन निधि' का गठन किया जाएगा.

इस नीति का उद्देश्य प्राथमिक विद्यालय से लेकर माध्यमिक स्तर तक सभी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराना है.

सरकार इसे एक 'ऐतिहासिक उपलब्धि' बता रही है लेकिन शिक्षा क्षेत्रों के विशेषज्ञ इस नीति में तय किये लक्ष्यों की प्राप्ति को लेकर आश्वस्त नज़र नहीं आते.

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, लड़कियों के स्कूल छोड़ने के पीछे सरकारी स्कूलों की ख़राब हालत और भारी फीस बड़ी वजह समझी जाती है.

साल 2018 में तत्कालीन एचआरडी मिनिस्टर (राज्य प्रभार) उपेंद्र कुशवाहा ने राज्य सभा में ये जानकारी दी थी कि प्रत्येक वर्ष 16.88 फीसदी लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं.

एनएसएसओ के सर्वे (पेज 107) में लड़कियों के स्कूल छोड़ने की वजहों की पड़ताल की गई है जिसके मुताबिक़ कम उम्र में शादी, स्कूल दूर होना और घर के कामकाज में लगना स्कूल छोड़ने की बड़ी वजहें हैं.

ऐसे में सरकार को उन समस्याओं को हल करना होगा जो कि लड़कियों को स्कूल छोड़ने पर मजबूर करती हैं.

शिक्षा क्षेत्र के जानकार अंबरीश राय बताते हैं कि 'बदलते समय के साथ घरवालों ने जोख़िम लेना कम कर दिया है.'

वे कहते हैं, “कहीं-कहीं स्कूल काफ़ी दूर होता है. ऐसी जगहें भी हैं जहाँ स्कूल 20 किलोमीटर दूर होता है. ऐसे में माँ-बाप अपनी बच्चियों को घर से ज़्यादा दूरी पर स्थित स्कूल में नहीं भेजना चाहते क्योंकि वे उनकी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं रहते. और आठवीं के बाद अक्सर ऐसा होता है कि बच्चियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है.”

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