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नक्सली खौफ से छूटा गांव, खेत-खलिहान और घर

वेदप्रकाश मिश्रा, कांकेर। जिले में कई नक्सल पीड़ित परिवार समस्याओं के बीच किसी तरह जीवनयापन कर रहे हैं। नक्सलियों के खौफ ने उन्हें अपना घर, अपना गांव व अपने लोगों को छोड़ने पर विवश कर दिया। घर से बेघर हुए ये नक्सल पीड़ित परिवार के लोगों को आज भी अपने घर की याद आती है, लेकिन नक्सलियों का खौफ इस कदर हावी है कि वे अपने गांव जाने से डरते हैं।

जिले में नक्सल पीड़ित कई परिवार शिवनगर स्थित इंदिरा आवास में निवास कर रहे हैं। यहां मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उन्हें कई प्रकार की तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं के बीच भी इन परिवार के लोगों को सबसे अधिक दुख अपने घर से दूर होने का है। आज भी यह परिवार अपने घर वापस लौटना चाहते हैं, लेकिन नक्सलियों का खौफ इस कदर हावी है कि वे कई साल बीत जाने के बाद भी उतनी हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं।

नक्सल पीड़ित मिलन सिंह आंचला ने बताया कि वे अंतागढ़ क्षेत्र के ग्राम सोढ़े के रहने वाले हैं। नक्सलियों द्वारा उनके घर में रखे सोना-चांदी, गाय-बैल व अन्य सामान को छीन लिया गया और जान से मारने की धमकी दी गई थी। उसके बाद परिवार सहित गांव छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा था। दस वर्ष का समय बीत जाने के बाद भी आज भी गांव लौटने में डर लगता है। उन्होंने बताया कि गांव में घर व बारह एकड़ से अधिक जमीन है, जो परती पड़ी हुई।

आज भी गांव वापस जाने का मन होता है, लेकिन जान का खतरा होने के कारण घर नहीं जा पाते। शोभसिंह पोटाई ने बताया कि नक्सलियों द्वारा उसके भाई की हत्या कर दी गई थी और उसे भी जान से मारने का प्रयास किया था। जान बचाकर वह वहां से भाग निकला था। उसके बाद पलटकर अपने घर की ओर जाने की हिम्मत ही नहीं हुई। उन्होंने बताया कि उनका घर व 30 एकड़ खेत ग्राम सोढ़े में है।

मिली मदद नाकाफी

इसी प्रकार गट्टाकाल निवासी सुकलाल मंडावी ने बताया कि नक्सलियों के डर के कारण उन्होंने अपना घर छोड़ा था। नक्सलियों द्वारा बैठक में नहीं आने व पुलिस की मुखबिरी करने के शक में प्रताड़ित किया जा रहा था। इसके कारण वह अपना घर व खेत छोड़कर यहां आने को विवश हुआ।

नक्सल पीड़ित परिवारों का कहना है कि बेघर होने के बाद उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ा है। हालांकि शासन प्रशासन स्तर पर मदद मिली है, जो नाकाफी साबित हुई है। आज भी इन परिवार के लोगों में अपने घर लौटने की उम्मीद बनी हुई है।

जमीन उपलब्ध कराएं

नक्सल पीड़ित परिवार के सदस्यों का कहना है कि गांव छोड़कर आने के बाद उनके खेत व जमीन छूट गए हैं और चाहकर भी वे अपने गांव नहीं लौट सकते हैं। भूमि स्वामी होते हुए भी बेघर की जिंदगी बितानी पड़ रही है। इसके कारण उन्हें घर चलाने के लिए रोजी-मजदूरी करनी पड़ती है।

इसके बाद भी वे लगातार आर्थिक दिक्कतों से गुजर रहे हैं। उनका कहना था कि शासन प्रशासन द्वारा गांव में उनकी भूमि के एवज में उन्हें भूमि प्रदान करना चाहिए, जिससे कृषि व अन्य कार्य कर अपने परिवार का उचित ढंग से पालन पोषण कर सकें।