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नक्सली दहशत : गांव है पर रह नहीं सकते, खेत है पर बो नहीं सकते

राजेश शुक्ला, कांकेर। गांव है, पर रह नहीं पाते। खेत है, पर जोताई नहीं कर पाते। रिश्तेदार हैं, पर उनके साथ रहकर दुख-सुख नहीं बांट पाते। यह हाल है अनिल, चंद्रूराम, रामप्रसाद, बंसीलाल जैसे सैकड़ों किसानों का, जो नक्सली दहशत के चलते अपना गांव, घर-द्वार छोड़कर कई साल से दूसरे गांव में बसे हुए हैं।


इनका इससे भी बड़ा दर्द यह है कि आज जब छत्तीसगढ़ सरकार धान बोनस बांट रही है, ऐसे में खेत होते हुए भी ये बोनस के लाभ से वंचित हैं। कारण, ये अपने खेत में फसल नहीं ले पा रहे हैं।


अंतागढ़ विकासखंड के चिंगनार, कोसरोंडा जैसे अति संवेदनशील गांवों के कई किसानों को नक्सली दहशत के चलते अपना गांव और खेत छोड़ना पड़ा। 1997 के दशक में जब नक्सली उत्पात चरम पर था, इन गांवों के किसान नक्सलियों की आंख की किरकिरी बने हुए थे, क्योंकि यहां के किसानों से बराबर वसूली नहीं मिल रही थी।


इसके बाद नक्सलियों को जो दमन चला तो जान बचाने 250 से भी ज्यादा किसान अंतागढ़, नारायणपुर, भानुप्रतापपुर और पखांजूर जैसे सुरक्षित स्थानों पर शरण लिए हुए हैं। जब इन्हें नक्सलियों ने गांव से खदेड़ा तो बर्तन, कपड़े, मवेशी और जमा-पूंजी लूटने के बाद सिर्फ एक जोड़ी कपड़े में गांव छोड़ना पड़ा।


चंद्रूराम ने बताया कि जब मेरे दोनों भाई को नक्सलियों ने मार दिया तो मुझे बच्चों और बहुओं को लेकर गांव छोड़कर भागने के अलावा और कोई रास्ता न बचा। बालक अनिल का कहना है कि मेरे सभी साथी पढ़ने जाते हैं और दीवाली में मिठाइयां और नए कपड़े का आनंद लेते हैं।


मगर मुझे नक्सलियों के कारण बचपन की खुशियों में भी दूर होना पड़ा। अलग-अलग गांवों के लोगों ने अलग-अलग जगहों पर शरण ले रखी है। यदि इन सभी को वापस गांव में पुनः स्थापित किया जाए तो इनका जीवन स्तर तो सुधरेगा ही, फसल लेकर जीवन स्तर सुधार पाएंगे।


वापस बसाने पर लौटेंगी खुशियां : रंगारी


नक्सली इलाकों के बारे में गहरा अध्ययन कर चुके जयंत कुमार रंगारी ने बताया कि कई गांव में नक्सलियों के आतंक के चलते ग्रामीण और उनके बच्चे स्कूल भी नहीं जा पाते। कोसरोंड़ा गांव के ही कई बच्चों की पढ़ाई रुकी हुई है। यहां के लोग अन्य शहरों में बस गए हैं। अब चूंकि नक्सली घटनाएं कम हो रही हैं, इन्हें वापस गांवों में बसाना चाहिए।


आंकड़े के आइने में प्रभावित परिवार


अकेले कांकेर जिले में नक्सलियों ने 227 से भी ज्यादा परिवारों को खदेड़ दिया, जिसके चलते लगभग 1177 लोग शरणार्थी बनकर जीवन गुजार रहे हैं। ये सभी भानुप्रतापपुर, पखांजूर, कांकेर व अंतागढ़ के आसपास रहकर मजदूरी कर पेट पल रहे। बस्तर संभाग में नक्सलियों द्वारा प्रभावित परिवारों की संख्या 6 हजार से भी ज्यादा है। इन सभी की हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि कई वर्षों से बंजर है। घर फूट चुके हैं।


एक होकर मुकाबला करेंगे : एसपी


कांकेर पुलिस अधीक्षक कन्हैयालाल ध्रुव ने बताया कि पिछले कई सालों से नक्सलवादी बैकफुट पर हैं। जितने पीड़ित परिवार हैं, यदि सभी एक हो जाएं और नक्सलियों के विरुद्घ लड़ने शासन के साथ खड़े हों तो नक्सलियों का खात्मा हो ही जाएगा। एक नए युग की शुरुआत होगी।