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नजरें अब अगले बजट पर रहेंगी-- आर. सुकुमार

अगले साल हमारी संसद में कामकाज कुछ जल्दी ही शुरू हो जाएगा। शीतकालीन सत्र के पूरी तरह बेकाम चले जाने व जीएसटी यानी वस्तु और सेवा कर को लागू करने की समय-सीमा टलने के खतरे को देखते हुए सरकार जनवरी के दूसरे सप्ताह से संसद का बजट सत्र बुला सकती है। आम बजट भी एक फरवरी को पेश किया जाएगा। मुझे आगामी बजट में लोक-लुभावन घोषणाओं की उम्मीद है। बीते आठ नवंबर को सरकार ने 500 और 1000 के पुराने नोट को बंद करने का फैसला लिया था और करीब 86 फीसदी करेंसी को चलन से बाहर कर दिया। नोटबंदी को लेकर अब कुछ नकारात्मक स्वर उठने लगे हैं। हालांकि एक अनुमान यह है कि ज्यादातर भारतीय अब भी मुश्किलों को झेलने के लिए तैयार हैं, क्योंकि वे नोटबंदी को प्रधानमंत्री द्वारा नेक नीयत के साथ उठाया गया कदम मानते हैं। मगर इस नोटबंदी के कारण तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर) के दूसरे हिस्से में कारोबार पर खूब असर पड़ा है। यह स्थिति अगली तिमाही (जनवरी-मार्च) में भी बनी रह सकती है। लिहाजा सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है, और बजट स्वाभाविक तौर पर इसके लिए एक बढ़िया मंच है।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जल्द ही संभवत: फरवरी में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। यहां प्रधानमंत्री मोदी की भारतीय जनता पार्टी राज्य में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी, फिर से खड़ी होने की कोशिश कर रही बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस (जो सपा से गठबंधन कर भी सकती है और नहीं भी) के खिलाफ है। यह कहा जाता है कि विधानसभा चुनावों में लोग अलग तरीके से मतदान करते हैं, मगर दो साल पहले सूबे में भाजपा को काफी फायदा मिलता दिखा था, जहां इसने 2014 के संसदीय चुनाव में भारी जीत हासिल की थी। यह स्थिति अब बदल गई है, जिसकी एकमात्र वजह, हालांकि नोटबंदी नहीं है। इसलिए भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए के पास बजट एक अच्छा मौका है कि वह फिर से अपना जादुई आकर्षण पाने की कोशिश करे।

अगर उत्तर प्रदेश में फरवरी में विधानसभा चुनाव होते हैं, तो इसकी घोषणा जनवरी की शुरुआत में कभी भी हो जाएगी। जाहिर तौर पर इसके तुरंत बाद कथित आचार संहिता लागू हो जाएगी, जो केंद्र या राज्य सरकार को कोई भी लोक-लुभावन कदम उठाने से रोक देगी। यह रोक केंद्रीय बजट पर लागू होने की संभावना नहीं है। लिहाजा यह उम्मीद बेमानी नहीं है कि बजट इस तरह की लोक-लुभावन घोषणाओं का एक मंच बने। वैसे भी, भाजपा के भीतर पहले से यह कशमकश रही है कि नोटबंदी किस तरह पार्टी को नुकसान पहुंचा रही है। ऐसे में, निश्चय ही कारोबार व लोक-लुभावन उपाय परिस्थिति को पार्टी के अनुकूल बना सकती है।

इससे जीएसटी के कमजोर होने के बाद भी उद्योग जगत खुश होगा और सरकार इसे सर्वसम्मति से अंतिम रूप देने के लिए जनवरी में अपनी हरसंभव कोशिश करेगी। सरकार शायद व्यक्तिगत और कॉरपोरेट, दोनों लिहाज से इनकम टैक्स में व्यापक कटौती की घोषणा करे, जो उपभोक्ता और व्यापार-भावना को बढ़ाने वाला होना चाहिए। टैक्स में कटौती की यह घोषणा बजट में की जा सकती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था और उत्तर प्रदेश के चुनाव को देखते हुए सरकार बजट में कृषि क्षेत्र के लिए पैकेज की घोषणा भी कर सकती है। सवाल यह है कि हम बजट में और क्या-क्या घोषणा होने की उम्मीद कर सकते हैं?

चूंकि रेल बजट को इस बार केंद्रीय बजट में ही शामिल किया जा रहा है, लिहाजा इसमें स्वाभाविक तौर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बड़ा जोर दिया जाएगा। निजी निवेश अब भी उम्मीद के मुताबिक नहीं आ रहा है, इसलिए भी सरकार शायद इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करने की जरूरत को महसूस करे। सौर व पवन ऊर्जा, हाई-वे और अंतर्देशीय जलमार्गों पर ध्यान पहले की तरह ही दिया जा सकता है। चूंकि डिजिटल और कैशलेस दो ऐसे शब्द हैं, जिनका इस्तेमाल सरकार के किसी भी नुमाइंदे ने आठ नवंबर के बाद से ज्यादा किया है, लिहाजा दोनों पर बजट में भी पर्याप्त ध्यान और धन आवंटन किया जाएगा। मेरा मानना है कि कैशलेस लेन-देन के लिए अधिक रियायतें और प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं। सरकार की दूसरी (सदाबहार) महत्वाकांक्षी योजनाओं, जैसे कि मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया और स्टार्ट-अप इंडिया को भी काफी तवज्जो मिलेगी।

यह काफी महत्वपूर्ण है कि अभी भारत को किस तरह के बजट की दरकार है, इसकी संजीदगी से पड़ताल होनी चाहिए। कई बार ऐसे बजट की जरूरत होती है, जो देश में विकास को प्रोत्साहित कर सके, जबकि कई बार खर्च में कटौती कर सकने वाले बजट की मांग होती है। कुछ वक्त ऐसे भी होते हैं, जब बिल्कुल साधारण बजट चाहिए होता है, जो यथास्थिति को बनाए रखे, तो कई बार किसी खास क्षेत्र, जैसे कि कृषि आदि पर जोर देने वाले बजट की जरूरत होती है। इस लिहाज से देखें, तो एक फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली जो बजट पेश करेंगे, उसे अलहदा नजरिये के साथ पेश करने की दरकार होगी।

असल में, नोटबंदी ने लोगों को थका दिया है। यह कदम भले ही लोगों का व्यवहार बदल रहा है और उन्हें कैशलेस लेन-देन की ओर उन्मुख कर रहा है, मगर यह लोगों को अधिक से अधिक नकद जमा करने और खर्च में कटौती करने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहा है। उपभोक्ता, व्यापार व निवेशक, सभी की भावना कमजोर हुई है। इस तस्वीर को बदलने की अपेक्षा केंद्रीय बजट से है। दरअसल, हमें एक ऐसे बजट की जरूरत है, जो अक्षरश: ‘फील-गुड बजट' की हेडलाइन साकार करे। इस समय हम यही उम्मीद करेंगे, और शायद ऐसा होगा भी कि हम फरवरी में कुछ इसी तरह के बजट के गवाह बनें।