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नदियों पर तटबंध बनाना कहीं से भी उचित नहीं-- अनिल प्रकाश

बाढ़ नियंत्रण का कॉन्सेप्ट ही गलत है. इसकी जगह बाढ़ प्रबंधन का काम होना चाहिए. नदियों को अविरल बहने देना चाहिए और जहां अवरोध हो, उसे हटाना चाहिए. यह बेसिक कॉन्सेप्ट अपनाया जाना चाहिए. नदियों पर तटबंध बनाना कहीं से भी उचित नहीं है. यह सुरक्षा का भ्रम पैदा करते हैं. एक बात और जो मैं कहना चाहता हूं, वह यह कि हम लोग जिस इलाके में रहते हैं. वहां हिमालय से आनेवाली नदियां बहती हैं.

यह पूरा इलाका इन्हीं नदियों की मिट्टी से बना है. पहले यहां समुद्र था. इसको समझना होगा कि हिमालय दुनिया का सबसे नया पहाड़ है, जो बनने की प्रक्रिया में है. इसकी ऊंचाई हर साल कुछ सेंटीमीटर बढ़ जाती है, जिससे हिमालय क्षेत्र में हलचल होती रहती है. इसकी वजह से साल में सैकड़ों भूकंप भी आते हैं, इनमें कुछ बड़े भूकंप होते हैं, जो हमें पता चलते हैं, जबकि कई भूकंप ऐसे होते हैं, जिनके बारे में हम जान नहीं पाते हैं, लेकिन इन्हें संबंधित विभाग रिकार्ड करते हैं.

भूकंप की वजह से हिमालय में भूस्खलन (लैंडस्लाइड) होता है, जिसकी मिट्टी नदियों के जरिये मैदान तक आती है. मैं कह रहा था कि हिमालय की मिट्टी से अपने इलाके का निर्माण हुआ है. इसको समझना जरूरी है. भूगर्भशास्त्री निर्माण की इस प्रक्रिया को पैंजिया कहते हैं. आपको पता होगा कि धरती 12 बड़े टुकड़ों में बंटी है. इसके बीच समुद्र है.

एक बात और आप सुनते और देखते होंगे कि कहीं खुदाई की जाती है, तो दो-ढाई हजार साल पुरानी बुद्ध की मूर्तियां व बुद्ध काल के अवशेष मिलते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि तब से अब तक में मिट्टी की परत इतनी चढ़ गयी है. यह निर्माण की प्रक्रिया लगभग 12 लाख साल से जारी है, जो लाखों साल और जारी रहेगी.

हिमालय से आनेवाली मिट्टी को दुनिया में सबसे उपजाऊ माना गया है. इसके अलावा अमेरिका के मिसिसिपी घाटी की मिट्टी को भी सबसे उपजाऊ की श्रेणी में रखा गया है. आप सोचिये, इस साल बागमती का तटबंध चार जगह टूटा है.

इससे पहले भी यह 58 बार टूट चुका है. बीती 26 जुलाई को पटना में जल संसाधन विभाग की बैठक हुई थी, जिसमें बांधों को लेकर चर्चा की गयी थी, तब इंजीनियरों ने कहा था कि रख-रखाव के अभाव में तटबंध टूटते हैं, लेकिन हम लोग काम कर रहे हैं, जिसकी वजह से 2009 के बाद तटबंध नहीं टूटे हैं. तब मैंने कहा था कि 2009 के बाद ज्यादा बाढ़ ही नहीं आयी, तो बांध कैसे टूटता. इस बार बाढ़ आयी, तो देखिये कैसे बांध टूटे.

हम केवल बागमती की बात करें, तो यह अपने साथ हर साल लगभग एक करोड़ टन उपजाऊ मिट्टी लेकर आती है. पहले ये मिट्टी बाढ़ के साथ पूरे इलाके में फैल जाती थी, जिससे खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती थी, लेकिन बांध बनने के बाद ये मिट्टी नदी के पेट में ही रह जाती है, जिससे वो ऊंचा होता जा रहा है. कई स्थानों पर नदी का पेट काफी उथला हो गया है.

यही वजह है कि जब पानी आता है, तो बांध पर दबाव बढ़ जाता है और वह टूट जाता है. शुक्र मनाइये इस बार गंगा नदी में पानी ज्यादा नहीं है, क्योंकि यूपी, उत्तराखंड के इलाके में ज्यादा बारिश नहीं हुई है. अगर बारिश हुई होती, तो क्या होता. गंगा में जब पानी बढ़ता है, तो वह बिहार की नदियों पर दबाव बनाता है. भगवान की कृपा थी कि इस बार ऐसा नहीं है, नहीं तो स्थिति और भयावह होती.

हमारा साफ तौर पर कहना और मानना है कि बाढ़ नियंत्रण नहीं, बाढ़ प्रबंधन का इंतजाम किया जाना चाहिए, क्योंकि बाढ़ नियंत्रण एक भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं है. हमारी हजारों साल की परंपरा रही है. नदी की धार खुद अपना रास्ता तय कर लेती है. तमाम किंवदंतियां, लोक कथाएं हैं, जो बाढ़ से संबंधित हैं. हमारे पूर्वज बाढ़ आने पर उत्सव मनाते थे. नाचते थे, झूमते थे, गाते थे. बाबा नागार्जुन अब से कुछ दशक पहले रिपोर्टिग कर रहे थे. उस दौरान वह बाढ़ की कवरेज करने के लिए मुसहरों के इलाके में गये, तो वहां नृत्य हो रहा था.

पास में जल रही आग पर भुट्टे भूने जा रहे थे. मुसहर समाज बाढ़ आने का जश्न मना रहा था. गांव में कहावत थी, बाढ़े जीली, सुखाड़े मरलीं. मिथिलांचल में कहावत है- "आयल बलान, तो बनल दलान. गयल बलान, तो टूटल दलान." हमें इन कहावतों से सबक लेना होगा. नदियों को अविरल बहने देना होगा, तभी हम सुरक्षित रह पायेंगे.

हां, एक बात और बाढ़ के दौरान कई जगहों पर सड़क बह जाती है और जब बाढ़ का पानी उतरता है, तो सड़क को फिर से बना दिया जाता है. मेरा कहना है कि जब इंजीनियरों को यह पता है कि वहां पर बाढ़ से कटाव हुआ है.

सड़क बही है, तो उन्हें वहां सड़क की जगह पुल का निर्माण करना चाहिए, ताकि अगली बार जब बाढ़ आये, तो वहां सड़क पर दबाव नहीं पड़े. इसके साथ हमें बड़े तालाब बनाने की प्रक्रिया फिर शुरू करनी चाहिए. पहले अपने इलाके में बड़े तालाब थे, अब तालाबों के लिए जो काम हो रहा है, वो किस तरह से कागजी है, ये किसी से छुपा नहीं है.

(शैलेंद्र से बातचीत)