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नरेगा के चार हजार करोड़ रुपये का जवाब नहीं सरकार के पास

नरेन्द्र शर्मा, जयपुर। राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में पहुंचाने में अहम भूमिका अदा करने वाली राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में इस साल प्रदेश ढाई करोड़ रुपए का ही खर्चा हुआ है। जबकि दो साल पहले इसी योजना में करीब साढ़े छह हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे। अधिकारी कहते हैं कि नरेगा योजना में सख्ती करने के कारण अब जरूरतमंद लोगों को ही रोजगार मिल रहा है। अब सवाल यह उठ रहा है कि चार हजार करोड़ रुपए की राशि कहां गई। कहीं ऐसा तो नहीं सोशल ऑडिट में जिस तरह से भ्रष्टाचार के मामले सामने आए, यह पैसा भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया हो? राजस्थान ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पहले नरेगा के लिए कोई गाइड लाइन नहीं बनी हुई थी। कलेक्टरों को परफोरमेंस भी इसी बात से आंकी जा रही थी कि कौन कितनी लेबर लगाता है। चूंकि नरेगा मांग आधारित योजना है, इसलिए इसे बजट के खर्चे से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। अब इसमें थोड़ी सख्ती की है, दिशा निर्देश बनाए हैं और गाइड लाइन जारी की है। वैसे भी अच्छा मानसून होने के कारण नरेगा में रोजगार की मांग में कमी आई है। चूंकि पहले ज्यादा सख्त नियम कायदे नहीं थे, इसीलिए सोशल ऑडिट में भ्रष्टाचार सामने आया था। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2008-09 में जहां 6175.55 करोड़ रुपए खर्च करके 63.69 लाख परिवारों को रोजगार दिया गया था, वहीं वर्ष 2010-11 में खर्च घटकर 2582 करोड़ रुपए रह गया और रोजगार भी 55.09 परिवारों को ही मिला है। औसत मजदूरी 89 रुपए के बजाय 75 रुपए आ गई है, वहीं 100 दिन पूरे करने वाले परिवारों की संख्या भी 25.94 लाख परिवारों से घटकर 2.1 लाख ही रह गई है। इसके विपरीत जॉब कार्डधारी परिवारों की संख्या बढ़ी है। पिछले दिनों जयपुर के उद्योग मैदान में हुए रोजगार मेले में 2 फरवरी को कई लोगों ने इस तरह की शिकायतें की थीं कि पंचायतों में नरेगा में रोजगार कि अर्जी नहीं ली जा रही है। इस पर हालांकि सरकार ने डाकघर और राशन की दुकानों पर भी रोजगार के फार्म उपलब्ध कराए जाने के आदेश निकाले हैं, लेकिन वहां भी रसीद नहीं दी जा रही है। जब तक रोजगार मांगने वाले को रसीद नहीं मिलेगी तब तक उसका बेरोजगारी भत्ते का हक नहीं बनेगा। यह स्थिति तो तब बनी है, जबकि केन्द्र में ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज विभाग राजस्थान के ही सांसद सी.पी. जोशी के पास था। पूरे राज्य में अब तक केवल डूंगरपुर जिले में 17 लोगों को नरेगा के तहत बेरोजगारी भत्ता दिया गया है। इसे लेने में भी काफी जोर लगाना पड़ा। जानकारी के मुताबिक पंचायतों में जब लोगों को रोजगार आवेदन की रसीद ही नहीं मिलेगी या फार्म ही नहीं लिए जाएंगे तो मजदूर को उसका हक कैसे मिलेगा? जबकि रोजगार की मांग पर आवेदन पत्र लेने के साथ ही रसीद दिए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। ग्रामीण विकास विभाग के अनुसार नरेगा में अभी तक केवल 48 प्रतिशत फंड का ही उपयोग किया जा सका है। इस फंड में 5373 करोड़ रुपए का बजट है, जबकि इसमें से मात्र 2582.51 करोड़ रुपए का ही खर्चा हुआ है।