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नर्मदा मैया के साथ भी खिलवाड़

भोपाल. भास्कर ने रविवार के अंक में बताया था कि किस तरह नेताओं ने अपनी जमीन बचाने के लिए नर्मदा पाइप लाइन का रुख मोड़ दिया, लेकिन ‘प्रभावशालियों’ की हिमाकत यहीं खत्म नहीं हुई। इन लोगों ने तो नर्मदा नदी को तबाह करने का भी पूरा इंतजाम कर रखा है।

मध्यप्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा नदी पर प्रदूषण से बड़ा खतरा अवैध खनन में लगे माफियाओं से है। नेता, अफसर और ठेकेदार मिलकर नदी को तबाह करने में जुटे हैं। खनन की खातिर महेश्वर के पास एक गांव में बीते चार सालों में 17 हजार हरे-भरे पेड़ काट दिए गए। अब नदी को बचाने के लिए पर्यावरणप्रेमी हाईकोर्ट की शरण में पहुंचे हैं।



होशंगाबाद और बुदनी क्षेत्र से ही हर दिन एक हजार से ज्यादा ट्रक रेत ढोई जा रही है। राजघाट, खर्राघाट, तवापुल व बांद्राभान में रेत की लूट को लेकर पिछले दो महीनों में चार संघर्ष हो चुके हैं। बुदनी-बाबई-आंचलखेड़ा से लेकर हरदा-खरगोन के आसपास भी यही आलम है।



दूरदराज की खदानें प्रशासनिक नियंत्रण के बाहर हैं, वैध से ज्यादा अवैध खनन बेरोकटोक जारी है। रेत पर राज करने वालों में सत्तादल से जुड़े स्थानीय राजनेताओं के नाते-रिश्तेदार भी शामिल हैं।
मरदाना गांव की कहानी: महेश्वर के पास करीब तीन हजार की आबादी वाले मरदाना गांव के लोगों ने 1986 में 90 एकड़ जमीन पर शीशम और नीम के 17 हजार पौधे रोपे थे। बीस सालों तक इसकी कड़ी निगरानी की और हरा-भरा जंगल खड़ा हुआ, लेकिन पांच साल पहले अचानक खनिज विभाग ने इस जमीन को खदान घोषित कर दिया।



गांव की महिलाओं ने नाकेबंदी कर कुछ महीनों तक तो ठेकेदारों से इसे बचाया, लेकिन आखिरकार आपराधिक तत्वों की मदद से खदान माफिया ताकतवर साबित हुए। सारे पेड़ बेरहमी से काट दिए गए और पूरा इलाका खदानों में तब्दील हो गया। गांव के लोग दबी जुबान से कहते हैं कि भाजपा के शासन में आने के बाद पार्टी के स्थानीय समर्थकों के इशारों पर गांव की हरियाली तबाह हुई।



चप्पे-चप्पे में बदहाली: हाल ही में ओंकारेश्वर से महेश्वर तक पांच दिन की पदयात्रा से लौटे सांसद अनिल माधव दवे ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को नदी किनारे के ताजा सूरते-हाल से वाकिफ कराते हुए कहा है कि समय रहते अवैध खनन पर अंकुश नहीं लगा, तो नतीजे घातक होंगे। दैनिक भास्कर से चर्चा में उन्होंने कहा कि चप्पे-चप्पे में अवैध खनन से नदी को तो नुकसान है ही, शासन को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है। सिर्फ चंद नेताओं, अफसरों और ठेकेदारों की पौ-बारह है।



हाईकोर्ट की शरण: स्वयंसेवी संगठन प्रयत्न ने दिसंबर 2009 में खनन के पर्यावरणीय खतरों को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई है। संगठन ने नर्मदा के साथ चंबल और बाणगंगा को भी बचाने की गुहार की है। संगठन के कार्यकर्ता अजय दुबे ने बताया कि हमने 1949 के उस नियम को चुनौती दी है, जिसमें खनन के लिए पर्यावरण संबंधी स्वीकृति जरूरी नहीं मानी गई।



चुस्ती ला रहे हैं: खनिज राज्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल मानते हैं कि अमले की कमी से अवैध खनन की संभावनाएं कायम हैं। यह मामला मुख्यमंत्री की जानकारी में है। सौ पदों पर भर्ती की प्रक्रिया जारी है, अमले को वाहनों के बंदोबस्त किए जा रहे हैं। हालात ठीक करने के लिए निगरानी बढ़ाई जा रही है।



खदानों का खाता: रेत और बजरी की करीब 11 सौ खदानें हैं। इनमें से 350 खनिज निगम और बाकी जिला प्रशासन के पास। हाईकोर्ट को छह जिलों में नर्मदा किनारे की 40 ऐसी खदानों का ब्यौरा प्रयत्न ने सौंपा है, जो पर्यावरण संबंधी अनुमति के बगैर चल रही हैं।



इनका कहना है..



-अवैध खनन के कारण नदियों का पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है। हमने हाईकोर्ट में इसे लेकर याचिका लगाई है, क्योंकि सरकारी तंत्र में शिकायतें बेअसर हैं। -अजय दुबे, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रयत्न।



नर्मदा को इस वक्त प्रदूषण से ज्यादा अवैध खनन करने वाले माफियाओं से खतरा है। मैंने मुख्यमंत्री को अपनी यात्रा के इन चौंकाने वाले नतीजों से अवगत कराया है। -अनिल माधव दवे, सांसद एवं सचिव नर्मदा-समग्र



हमें अफसोस है कि हमारी 20 साल की मेहनत से लगी हरियाली अपराधियों के हाथों खत्म हो गई, हम बचा नहीं सके। शायद सरकार अब कुछ कदम उठाए। -कालूसिंह, पूर्व सरपंच, मरदाना गांव